हे नाथ ! यहाँ तक हमने सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मज्ञान का विवेचन किया है । आज्ञाचक्र के तीन खण्ड वाले कमल दल का जो कामनाओं को पूर्ण करने वाला है , यदि विचारपूर्वक उसकी भावना की जाय तो उससे अवश्य ही साधक उत्तम फल प्राप्त कर लेता है । तीन खण्ड वाले आज्ञाचक्र के ऊपर कामरुप महेश्वर का , जो चीनाचार से परिपूर्ण , श्मशानाधिप से परिवेष्टित , काल , कालकर्ता , चक्र स्वरुप , महाकाल . कलाओं के निधान , पल , अनुपल , विपल , द्ण्ड , तिथि आदि पक्ष , मास संवत्सर तथा युगादि महाकालों से समन्वित है , जिनके नेत्र , करोड़ों उल्का के समान , तथा जिनकी दाढ़ अत्यन्त तीक्ष्ण है , जो सुरेश्वर हैं जो करोड़ों - करोड़ों नेत्र समूहों से युक्त एवं करोड़ों - करोड़ों मुख कमलों से सुशोभित हैं चिद्रुप , सदसन्मुक्ति रुप , तथा , अनेक रुप वाले हैं ऐसे कालरुद्र परमेश्वर का साधक अत्यन्त सुख से नासिका के ऊपर दोनों भ्रु के मध्य में रहने वाले आज्ञा चक्र के श्रेष्ठ स्थान में ध्यान कर तत्क्षण तन्मय हो जावे । फिर रौरवादि नरकों का विनाश करने वाली हाकिनी देवी का ध्यान करना चाहिए ॥२३ - २९॥
जिनके शरीर की कन्ति करोड़ों विद्युत् की आभा के समान है , तथा शरीर अमृतानन्दमय हैं . सभी के तत्त्व से परिपूर्ण होने के कारणं जिनकी शोभा शरीर में समा नही रही हैं , ऐसी सुवर्णमय वाराणसी में निवास करने वाली , अनेक प्रकार के सलङ्गारों से सुशोभित अङ्गक वाली , नवीन यौवन से परिपूर्ण . मोते - मोटे स्तन वाली , बल से इठलाती हुई . सबकी आधार स्वरुपा , दीर्घ काल तक प्रणव के जप से त्रिविक्रम वामन को संतुष्ट करने वाली , मौन रहने वाली , मनोमयी , सर्व विद्या स्वरुपिणी देवी महाकाली , महानीला पीतवर्णा एवं चन्द्रवर्णा , त्रिपुरा , सुन्दरी , वामा , वामकामदुघा , परम पावनी शिवा का , जो परनाथ शिव के साथ वाम भाग में एक आसन पर विराजमान है , ध्यान करना चाहिए ॥३० - ३४॥