वही सर्वधारात्मिका शक्ति है उनको कोई रोक नहीं सकता । अतएव दुरत्यय हैं । पण्डित साधक श्वासमात्र से उनका कुलमार्ग न रोके वही कुलाकुल के विभाग के द्वारा आत्मा को पर ( नाथ शिव ) से मिलाने वाली है ॥३४ - ३५॥
हे नाथ ! श्वास का अभ्यास तथा अष्टाङ्र योग का अभ्यास तथा इन्द्रियों के दमन के बिना ’ कुल मार्ग ’ सिद्ध नहीं होता । केवल पूरक के योग से तथा केवल रेचक से भी वे स्थिर नहीं रहती । जिस प्रकार कुम्भक के रहते हुये भी ये दोनों पूरक और रेचक नहीं रहते ॥३६ - ३७॥
इसी प्रकार हे नाथ ! योग के बिना तथा अष्टाङ्र के अभ्यास के बिना महा तत्त्ववान् ’ कुलमार्ग ’ किसी प्रकार सिद्ध नहीं होता ॥३८॥
कुलमार्ग की सिद्धि किए बिना इस पृथ्वी पर कौन ऐसा है , जिसे मोक्ष मार्ग प्राप्त हो जावे । जो कुलमार्ग नहीं जानता , योगवाक्य नहीं जानता अथवा आगम मार्ग के ’ कुल ’ को नहीं जानता , भला वह किस प्रकार देवी की पूजा कर सकता है । हे प्रभो ! उसे योग भी कैसे प्राप्त हो सकता है ? जो इसको जाने बिना वीरनाथ के परम्परागत सदाचार को करता है , उनको योग की शिक्षा बहुत दिन में प्राप्त होती है यह निश्चित है ॥३९ - ४१॥
प्राणायाम महिमा वर्णन --- प्राणायाम सबसे धर्म है जिसे वेद भी जानने में असमर्थ हैं । यह प्राणायाम सभी पुण्यों का
स्थिरांश है । पापरासि रुपी रुई को जलाने के लिए अग्नि है । करोड़ों महापातकों का उसके भी करोड़ों गुना किए गये दुष्कृत , पूर्वजन्मार्जित पाप तथा अनेक प्रकार के दुष्कर्म जन्य पातक , हे महादेव ! प्राणायाम के छः महीने के अभ्यास के योग से नष्ट हो जाते हैं ॥४१ - ४३॥
विमर्श --- पापराशिः तुलः , तूलः तयालमिव अग्निरिव । अथ तुलशब्दे हस्व - उकारश्छन्दोऽनुरोधात् ।
जो साधक सन्ध्या काल में , प्रभात में अथवा दिन रात संयमशील होकर १६ , १६ की संख्या में बारम्बार प्राणायाम करता है , वह संयमी मात्र संवत्सर काल में ध्यान से आकाश गामी योगिराज बन जाता है । योगी हो कर कौलमार्ग का आश्रय लेकर वह साधककोत्तम विचार करता हुआ विद्यापति बन देवता बन जाता है ॥४४ - ४६॥