००२--०१--- बालकाण्ड
००२--राग--- आसावरी
००२--०१--- आजु सुदिन सुभ घरी सुहाई ।
००२--०१--- रूप-सील-गुन-धाम राम नृप-भवन प्रगट भए आई ॥
००२--०२--- अति पुनीत मधुमास, लगन-ग्रह-बार-जोग-समुदाई ।
००२--०२--- हरषवन्त चर-अचर, भूमिसुर-तनरुह पुलक जनाई ॥
००२--०३--- बरषहिं बिबुध-निकर कुसुमावलि, नभ दुन्दुभी बजाई ।
००२--०३--- कौसल्यादि मातु मन हरषित, यह सुख बरनि न जाई ॥
००२--०४--- सुनि दसरथ सुत-जनम लिये सब गुरुजन बिप्र बोलाई ।
००२--०४--- बेद-बिहित करि क्रिया परम सुचि, आनँद उर न समाई ॥
००२--०५--- सदन बेद-धुनि करत मधुर मुनि, बहु बिधि बाज बधाई ।
००२--०५--- पुरबासिन्ह प्रिय-नाथ-हेतु निज-निज सम्पदा लुटाई ॥
००२--०६--- मनि-तोरन, बहु केतुपताकनि, पुरी रुचिर करि छाई ।
००२--०६--- मागध-सूत द्वार बन्दीजन जहँ तहँ करत बड़ाई ॥
००२--०७--- सहज सिङ्गार किये बनिता चलीं मङ्गल बिपुल बनाई ।
००२--०७--- गावहिं देहिं असीस मुदित, चिर जिवौ तनय सुखदाई ॥
००२--०८--- बीथिन्ह कुङ्कम-कीच, अरगजा अगर अबीर उड़ाई ।
००२--०८--- नाचहिं पुर-नर-नारि प्रेम भरि देहदसा बिसराई ॥
००२--०९--- अमित धेनु-गज-तुरग-बसन-मनि, जातरुप अधिकाई ।
००२--०९--- देत भूप अनुरुप जाहि जोइ, सकल सिद्धि गृह आई ॥
००२--१०--- सुखी भए सुर-सन्त-भूमिसुर, खलगन-मन मलिनाई ।
००२--१०--- सबै सुमन बिकसत रबि निकसत, कुमुद-बिपिन बिलखाई ॥
००२--११--- जो सुखसिन्धु-सकृत-सीकर तें सिव-बिरञ्चि-प्रभुताई ।
००२--११--- सोइ सुख अवध उमँगि रह्यो दस दिसि, कौन जतन कहौं गाई ॥
००२--१२--- जे रघुबीर-चरन-चिन्तक, तिन्हकी गति प्रगट दिखाई ।
००२--१२--- अबिरल अमल अनुप भगति दृढ़ तुलसिदास तब पाई ॥
००३--राग--- जैतश्री
००३--०१--- सहेली सुनु सोहिलो रे ।
००३--०१--- सोहिलो, सोहिलो, सोहिलो, सोहिलो सब जग आज ।
००३--०१--- पूत सपूत कौसिला जायो, अचल भयो कुल-राज ॥
००३--०२--- चैत चारु नौमी तिथि सितपख, मध्य-गगन-गत भानु ।
००३--०२--- नखत जोग ग्रह लगन भले दिन मङ्गल-मोद-निधान ॥
००३--०३--- ब्योम, पवन, पावक, जल, थल, दिसि दसहु सुमङ्गल-मूल।
००३--०३--- सुर दुन्दुभी बजावहिं, गावहिं, हरषहिं, बरषहिं फूल ॥
००३--०४--- भूपति-सदन सोहिलो सुनि बाजैं गहगहे निसान ।
००३--०४--- जहँ-तहँ सजहिं कलस धुज चामर तोरन केतु बितान ॥
००३--०५--- सीञ्चि सुगन्ध रचैं चौकें गृह-आँगन गली-बजार ।
००३--०५--- दल फल फूल दूब दधि रोचन, घर-घर मङ्गलचार ॥
००३--०६--- सुनि सानन्द उठे दसस्यन्दन सकल समाज समेत ।
००३--०६--- लिये बोलि गुर-सचिव-भूमिसुर, प्रमुदित चले निकेत ॥
००३--०७--- जातकरम करि, पूजि पितर-सुर, दिये महिदेवन दान ।
००३--०७--- तेहि औसर सुत तीनि प्रगट भए मङ्गल, मुद, कल्यान ॥
००३--०८--- आनँद महँ आनन्द अवध, आनन्द बधावन होइ ।
००३--०८--- उपमा कहौं चारि फलकी, मोहिं भलो न कहै कबि कोइ ॥
००३--०९--- सजि आरती बिचित्र थारकर जूथ-जूथ बरनारि ।
००३--०९--- गावत चलीं बधावन लै लै निज-निज कुल अनुहारि ॥
००३--१०--- असही दुसही मरहु मनहि मन, बैरिन बढ़हु बिषाद ।
००३--१०--- नृपसुत चारि चारु चिरजीवहु सङ्कर-गौरि-प्रसाद ॥
००३--११--- लै लै ढोव प्रजा प्रमुदित चले भाँति-भाँति भरि भार ।
००३--११--- करहिं गान करि आन रायकी, नाचहिं राजदुवार ॥
००३--१२--- गज, रथ, बाजि, बाहिनी, बाहन सबनि सँवारे साज।
००३--१२--- जनु रतिपति ऋतुपति कोसलपुर बिहरत सहित समाज ॥
००३--१३--- घण्टा-घण्टि, पखाउज-आउज, झाँझ, बेनु डफ-तार ।
००३--१३--- नूपुर धुनि, मञ्जीर मनोहर, कर कङ्कन-झनकार ॥
००३--१४--- नृत्य करहिं नट-नटी, नारि-नर अपने-अपने रङ्ग ।
००३--१४--- मनहुँ मदन-रति बिबिध बेष धरि नटत सुदेस सुढङ्ग ॥
००३--१५--- उघटहिं छन्द-प्रबन्ध, गीत-पद, राग-तान-बन्धान ।
००३--१५--- सुनि किन्नर गन्धरब सराहत, बिथके हैं, बिबुध-बिमान ॥
००३--१६--- कुङ्कुम-अगर-अरगजा छिरकहिं, भरहिं गुलाल-अबीर ।
००३--१६--- नभ प्रसून झरि, पुरी कोलाहल, भै मन भावति भीर ॥
००३--१७--- बड़ी बयस बिधि भयो दाहिनो सुर-गुर-आसिरबाद ।
००३--१७--- दसरथ-सुकृत-सुधासागर सब उमगे हैं तजि मरजाद ॥
००३--१८--- बाह्मण बेद, बन्दि बिरदावलि, जय-धुनि, मङ्गल-गान ।
००३--१८--- निकसत पैठत लोग परसपर बोलत लगि लगि कान ॥
००३--१९--- बारहिं मुकुता-रतन राजमहिषि पुर-सुमुखि समान ।
००३--१९--- बगरे नगर निछावरि मनिगन जनु जुवारि-जव-धान ॥
००३--२०--- कीन्हि बेदबिधि लोकरीति नृप, मन्दिर परम हुलास ।
००३--२०--- कौसल्या, कैकयी, सुमित्रा, रहस-बिबस रनिवास ॥
००३--२१--- रानिन दिए बसन-मनि-भूषन, राजा सहन-भँडार ।
००३--२१--- मागध-सूत-भाट-नट-जाचक जहँ तहँ करहिं कबार ॥
००३--२२--- बिप्रबधू सनमानि सुआसिनि, जन-पुरजन पहिराइ ।
००३--२२--- सनमाने अवनीस, असीसत ईस-रमेस मनाइ ॥
००३--२३--- अष्टसिद्धि, नवनिद्धि, भूति सब भूपति भवन कमाहिं ।
००३--२३--- समौ-समाज राज दसरथको लोकप सकल सिहाहिं ॥
००३--२४--- को कहि सकै अवधबासिनको प्रेम-प्रमोद-उछाह ।
००३--२४--- सारद सेस-गनेस-गिरीसहिं अगम निगम अवगाह ॥
००३--२५--- सिव-बिरञ्चि-मुनि-सिद्ध प्रसंसत, बड़े भूप के भाग ।
००३--२५--- तुलसिदास प्रभु सोहिलो गावत उमगि-उमगि अनुराग ॥
००४--राग--- बिलावल
००४--०१--- आजु महामङ्गल कोसलपुर सुनि नृपके सुत चारि भए ।
००४--०१--- सदन-सदन सोहिलो सोहावनो, नभ अरु नगर-निसान हए ॥
००४--०२--- सजि-सजि जान अमर-किन्नर-मुनि जानि समय-सम गान ठए ।
००४--०२--- नाचहिं नभ अपसरा मुदित मन, पुनि-पुनि बरषहिं सुमन-चए ॥
००४--०३--- अति सुख बेगि बोलि गुरु भूसुर भूपति भीतर भवन गए ।
००४--०३--- जातकरम करि कनक, बसन, मनि भूषित सुरभि-समूह दए ॥
००४--०४--- दल-फल-फूल, दूब-दधि-रोचन, जुबतिन्ह भरि-भरि थार लए ।
००४--०४--- गावत चलीं भीर भै बीथिन्ह, बन्दिन्ह बाँकुरे बिरद बए ॥
००४--०५--- कनक-कलस, चामर-पताक-धुज, जहँ तहँ बन्दनवार नए ।
००४--०५--- भरहिं अबीर, अरगजा छिरकहिं, सकल लोक एक रङ्ग रए ॥
००४--०६--- उमगि चल्यौ आनन्द लोक तिहुँ, देत सबनि मन्दिर रितए ।
००४--०६--- तुलसिदास पुनि भरेइ देखियत, रामकृपा चितवनि चितए ॥
००५--राग--- जैतश्री
००५--०१--- गावैं बिबुध बिमल बर बानी ।
००५--०१--- भुवन-कोटि-कल्यान-कन्द जो, जायो पूत कौसिला रानी ॥
००५--०२--- मास, पाख, तिति, बार, नखत, ग्रह, जोग, लगन सुभ ठानी ।
००५--०२--- जल-थल-गगन प्रसन्न साधु-मन, दस दिसि हिय हुलसानी ॥
००५--०३--- बरषत सुमन, बधाव नगर-नभ, हरष न जात बखानी ।
००५--०३--- ज्यों हुलास रनिवास नरेसहि, त्यों जनपद रजधानी ॥
००५--०४--- अमर, नाग, मुनि, मनुज सपरिजन बिगतबिषाद-गलानी ।
००५--०४--- मिलेहि माँझ रावन रजनीचर लङ्क सङ्क अकुलानी ॥
००५--०५--- देव-पितर, गुरु-बिप्र पूजि नृप दिये दान रुचि जानी ।
००५--०५--- मुनि-बनिता, पुरनारि, सुआसिनि सहस भाँति सनमानी ॥
००५--०६--- पाइ अघाइ असीसत निकसत जाचक-जन भए दानी ।
००५--०६--- "यों प्रसन्न कैकयी सुमित्रहि होउ महेस-भवानी ॥
००५--०७--- दिन दूसरे भूप-भामिनि दोउ भईं सुमङ्गल-खानी ।
००५--०७--- भयो सोहिलो सोहिले मो जनु सृष्टि सोहिले-सानी ॥
००५--०८--- गावत-नाचत, मो मन भावत, सुख सों अवध अधिकानी ।
००५--०८--- देत-लेत, पहिरत-पहिरावत प्रजा प्रमोद-अघानी ॥
००५--०९--- गान-निसान-कुलाहल-कौतुक देखत दुनी सिहानी ।
००५--०९--- हरि बिरञ्चि-हर-पुर सोभा कुलि कोसलपुरी लोभानी ॥
००५--१०--- आनँद-अवनि, राजरानी सब माँगहु कोखि जुड़ानी ।
००५--१०--- आसिष दै दै सराहहिं सादर उमा-रमा-ब्रह्मानी ॥
००५--११--- बिभव-बिलास-बाढ़ि दसरथकी देखि न जिनहिं सोहानी ।
००५--११--- कीरति, कुसल, भूति, जय, ऋधि-सिधि तिन्हपर सबै कोहानी ॥
००५--१२--- छठी-बारहौं लोक-बेद-बिधि करि सुबिधान बिधानी ।
००५--१२--- राम-लषन-रिपुदवन-भरत धरे नाम ललित गुर ग्यानी ॥
००५--१३--- सुकृत-सुमन तिल-मोद बासि बिधि जतन-जन्त्र भरि घानी ।
००५--१३--- सुख-सनेह सब दिये दसरथहि खरि खलेल थिर-थानी ॥
००५--१४--- अनुदिन उदय-उछाह, उमग जग, घर-घर अवध कहानी ।
००५--१४--- तुलसी राम-जनम-जस गावत सो समाज उर आनी ॥
००६--राग--- केदारा
००६--०१--- घर-घर अवध बधावने मङ्गल-साज-समाज ।
००६--०१--- सगुन सोहावने मुदित-मन कर सब निज-निज काज ॥
००६--०१--- निज काज सजत सँवारि पुर-नर-नारि रचना अनगनी ।
००६--०१--- गृह, अजिर, अटनि, बजार, बीथिन्ह चारु चौकैं बिधि घनी ॥
००६--०१--- चामर, पताक, बितान, तोरन, कलस, दीपावलि बनी ।
००६--०१--- सुख-सुकृत-सोभामय पुरी बिधि सुमति जननी जनु जनी ॥
००६--०२--- चैत चतुरदसि चाँदनी, अमल उदित निसिराज ।
००६--०२--- उडुगन अवलि प्रकासहीं, उमगत आनँद आज ॥
००६--०२--- आनन्द उमगत आजु, बिबुध बिमान बिपुल बनाइकै ।
००६--०२--- गावत, बजावत, नटत, हरषत, सुमन बरषत आइकै ॥
००६--०२--- नर निरखि नभ, सुर पेखि पुरछबि परसपर सचु पाइकै ।
००६--०२--- रघुराज-साज सराहि लोचन-लाहु लेत अघाइकै ॥
००६--०३--- जागिय राम छठी सजनि रजनी रुचिर निहारि ।
००६--०३--- मङ्गल-मोद-मढ़ी मुरति नृपके बालक चारि ॥
००६--०३--- मूरति मनोहर चारि बिरचि बिरञ्चि परमारथमई ।
००६--०३--- अनुरुप भूपति जानि पूजन-जोग बिधि सङ्कर दई ॥
००६--०३--- तिन्हकी छठी मञ्जुलमठी, जग सरस जिन्हकी सरसई ।
००६--०३--- किए नीन्द-भामिनि जागरन, अभिरामिनी जामिनि भई ॥
००६--०४--- सेवक सजग भए समय-साधन सचिव सुजान ।
००६--०४--- मुनिबर सिखये लौकिकौ बैदिक बिबिध बिधान ॥
००६--०४--- बैदिक बिधान अनेक लौकिक आचरत सुनि जानिकै ।
००६--०४--- बलिदान-पूजा मूलिकामनि साधि राखी आनिकै ॥
००६--०४--- जे देव-देवी सेइयत हित लागि चित सनमानिकै ।
००६--०४--- ते जन्त्र-मन्त्र सिखाइ राखत सबनिसों पहिचानिकै ॥
००६--०५--- सकल सुआसिनि, गुरजन, पुरजन, पाहुन लोग ।
००६--०५--- बिबुध-बिलासिनि, सुर-मुनि, जाचक, जो जेहि जोग ॥
००६--०५--- जेहि जोग जे तेहि भाँति ते पहिराइ परिपूरन किये ।
००६--०५--- जय कहत, देत असीस, तुलसीदास ज्यों हुलसत हिये ॥
००६--०५--- ज्यों आजु कालिहु परहुँ जागन होहिङ्गे, नेवते दिये ।
००६--०५--- ते धन्य पुन्य-पयोधि जे तेहि समै सुख-जीवन जिये ॥
००६--०६--- भूपति-भाग बली सुर-बर नाग सराहि सिहाहिं ।
००६--०६--- तिय-बरबेष अली रमा सिधि अनिमादि कमाहिं ॥
००६--०६--- अनिमादि, सारद, सैलनन्दिनि बाल लालहि पालहीं ।
००६--०६--- भरि जनम जे पाए न, ते परितोष उमा-रमा लहीं ॥
००६--०६--- निज लोक बिसरे लोकपति, घरकी न चरचा चालहीं ।
००६--०६--- तुलसी तपत तिहु ताप जग, जनु प्रभुछठी-छाया लहीं ॥
००७--०१--- नामकरण
००७--राग--- जैतश्री
००७--०१--- बाजत अवध गहागहे अनन्द-बधाए ।
००७--०१--- नामकरन रघुबरनिके नृप सुदिन सोधाए ॥
००७--०२--- पाय रजायसु रायको ऋषिराज बोलाए ।
००७--०२--- सिष्य-सचिव-सेवक-सखा सादर सिर नाए ॥
००७--०३--- साधु सुमति समरथ सबै सानन्द सिखाए ।
००७--०३--- जल, दल, फल, मनि-मूलिका, कुलि काज लिखाए ॥
००७--०४--- गनप-गौरि-हर पूजिकै गोवृन्द दुहाए ।
००७--०४--- घर-घर मुद मङ्गल महा गुन-गान सुहाए ॥
००७--०५--- तुरत मुदित जहँ तहँ चले मनके भए भाए ।
००७--०५--- सुरपति-सासनु घन मनो मारुत मिलि धाए ॥
००७--०६--- गृह, आँगन, चौहट, गली, बाजार बनाए ।
००७--०६--- कलस, चँवर, तोरन, धुजा, सुबितान तनाए ॥
००७--०७--- चित्र चारु चौकैं रचीं, लिखि नाम जनाए ।
००७--०७--- भरि-भरि सरवर-बापिका अरगजा सनाए ॥
००७--०८--- नर-नारिन्ह पल चारिमें सब साज सजाए ।
००७--०८--- दसरथ-पुर छबि आपनी सुरनगर लजाए ॥
००७--०९--- बिबुध बिमान बनाइकै आनन्दित आए ।
००७--०९--- हरषि सुमन बरसन लगे, गए धन जनु पाए ॥
००७--१०--- बरे बिप्र चहुँ बेदके, रबिकुल-गुर ग्यानी ।
००७--१०--- आपु बसिष्ठ अथरबणी, महिमा जग जानी ॥
००७--११--- लोक-रीति बिधि बेदकी करि कह्यो सुबानी-
००७--११--- "सिसु-समेत बेगि बोलिए कौसल्या रानी ॥
००७--१२--- सुनत सुआसिनि लै चलीं गावत बड़भागीं ।
००७--१२--- उमा-रमा, सारद-सची लखि सुनि अनुरागीं ॥
००७--१३--- निज-निज रुचि बेष बिरचिकै हिलि-मिलि सङ्ग लागीं ।
००७--१३--- तेहि अवसर तिहु लोककी सुदसा जनु जागीं ॥
००७--१४--- चारु चौक बैठत भई भूप-भामिनी सोहैं ।
००७--१४--- गोद मोद-मूरति, लिए, सुकृती जन जोहैं ॥
००७--१५--- सुख-सुखमा, कौतुक कला देखि-सुनि मुनि मोहैं ।
००७--१५--- सो समाज कहैं बरनिकै, ऐसे कबि को हैं ? ॥
००७--१६--- लगे पढ़न रच्छा-ऋचा ऋषिराज बिराजे ।
००७--१६--- गगन सुमन-झरि, जय-जय, बहु बाजन बाजे ॥
००७--१७--- भए अमङ्गल लङ्कमें, सङ्क-सङ्कट गाजे ।
००७--१७--- भुवन चारिदसके बड़े दुख-दारिद भाजे ॥
००७--१८--- बाल बिलोकि अथरबणी हँसि हरहि जनायो ।
००७--१८--- सुभको सुभ, मोद मोदको, राम नाम सुनायो ॥
००७--१९--- आलबाल कल कौसिला, दल बरन सोहायो ।
००७--१९--- कन्द सकल आनन्दको जनु अंकुर आयो ॥
००७--२०--- जोहि, जानि, जपि जोरिकै करपुट सिर राखे ।
००७--२०--- "जय जय जय करुनानिधे! सादर सुर भाषे ॥
००७--२१--- "सत्यसन्ध ! साँचे सदा जे आखर आषे ।
००७--२१--- प्रनतपाल ! पाए सही, जे फल अभिलाषे ॥
००७--२२--- भूमिदेव देव देखिकै नरदेव सुखारी ।
००७--२२--- बोलि सचिव सेवक सखा पटधारि भँडारी ॥
००७--२३--- देहु जाहि जोइ चाहिए सनमानि सँभारी ।
००७--२३--- लगे देन हिय हरषिकै हेरि-हेरि हँकारी ॥
००७--२४--- राम-निछावरि लेनको हठि होत भिखारी ।
००७--२४--- बहुरि देत तेहि देखिए मानहुँ धनधारी ॥
००७--२५--- भरत लषन रिपुदवनहूँ धरे नाम बिचारी ।
००७--२५--- फलदायक फल चारिके दसरथ-सुत चारी ॥
००७--२६--- भए भूप बालकनिके नाम निरुपम नीके ।
००७--२६--- सबै सोच-सङ्कट मिटे तबतें पुर-तीके ॥
००७--२७--- सुफल मनोरथ बिधि किए सब बिधि सबहीके ।
००७--२७--- अब होइहै गाए सुने सबके तुलसीके ॥
००८--०१--- दुलार
००८--राग--- बिलावल
००८--०१--- सुभग सेज सोभित कौसिल्या रुचिर राम-सिसु गोद लिये ।
००८--०१--- बार-बार बिधुबदन बिलोकति लोचन चारु चकोर किये ॥
००८--०२--- कबहुँ पौढ़ि पयपान करावति, कबहूँ राखति लाइ हिये ।
००८--०२--- बालकेलि गावति हलरावति, पुलकति प्रेम-पियूष पिये ॥
००८--०३--- बिधि-महेस, मुनि-सुर सिहात सब, देखत अंबुद ओट दिये ।
००८--०३--- तुलसिदास ऐसो सुख रघुपति पै काहू तो पायो न बिये ॥
००९--राग--- सोरठ
००९--०१--- ह्वै हौ लाल कबहिं बड़े बलि मैया ।
००९--०१--- राम लखन भावते भरत-रिपुदवन चारु चार्यो भैया ॥
००९--०२--- बाल बिभूषन बसन मनोहर अंगनि बिरचि बनैहों ।
००९--०२--- सोभा निरखि, निछावरि करि, उर लाइ बारने जैहों ॥
००९--०३--- छगन-मगन अँगना खेलिहौ मिलि, ठुमुकु-ठुमुकु कब धैहौ ।
००९--०३--- कलबल बचन तोतरे मञ्जुल कहि "माँ मोहिं बुलैहौ ॥
००९--०४--- पुरजन-सचिव, राउ-रानी सब, सेवक-सखा-सहेली ।
००९--०४--- लैहैं लोचन लाहु सुफल लखि ललित मनोरथ-बेली ॥
००९--०५--- जा सुखकी लालसा लटू सिव, सुक-सनकादि उदासी ।
००९--०५--- तुलसी तेहि सुखसिन्धु कौसिला मगन, पै प्रेम-पियासी ॥
०१०--०१--- पगनि कब चलिहौ चारौ भैया ?
०१०--०१--- प्रेम-पुलकि, उर लाइ सुवन सब, कहति सुमित्रा मैया ॥
०१०--०२--- सुन्दर तनु सिसु-बसन-बिभुषन नखसिख निरखि निकैया ।
०१०--०२--- दलि तृन, प्रान निछावरि करि करि लैहैं मातु बलैया ॥
०१०--०३--- किलकनि, नटनि, चलनि,चितवनि, भजि मिलनि मनोहर तैया ।
०१०--०३--- मनि-खम्भनि-प्रतिबिम्ब झलक, छबि छलकिहै भरि अँगनैया ॥
०१०--०४--- बालबिनोद, मोद मञ्जुल बिधु, लीला ललित जुन्हैया ।
०१०--०४--- भूपति पुन्य-पयोधि उमँग, घर-घर आनन्द-बधैया ॥
०१०--०५--- ह्वै हैं सकल सुकृत-सुख-भाजन, लोचन-लाहु लुटैया ।
०१०--०५--- अनायास पाइहैं जनमफल तोतरें बचन सुनैया ॥
०१०--०६--- भरत, राम, रिपुदवन, लषनके चरित-सरित अन्हवैया ।
०१०--०६--- तुलसी तबके-से अजहुँ जानिबे रघुबर-नगर-बसैया ॥
०११--राग--- केदारा
०११।०१--- चुपरि उबटि अनाहवाइकै नयन आँजे,
०११।०१--- चिर रुचि तिलक गोरोचनको कियो है ।
०११।०१--- भ्रूपर अनूप मसिबिन्दु, बारे बारे बार
०११।०१--- बिलसत सीसपर, हेरि हरै हियो है ॥
०११।०२--- मोदभरी गोद लिये लालति सुमित्रा देखि
०११।०२--- देव कहैं, सबको सुकृत उपवियो है ।
०११।०२--- मातु, पितु, प्रिय, परिजन, पुरजन धन्य,
०११।०२--- पुन्यपुञ्ज पेखि पेखि प्रेमरस पियो है ॥
०११।०३--- लोहित ललित लघु चरन-कमल चारु,
०११।०३--- चाल चाहि सो छबि सुकबि जिय जियो है ।
०११।०३--- बालकेलि बातबस झलकि झलमलत
०११।०३--- सोभाकी दीयटि मानो रुप-दीप दियो है ॥
०११।०४--- राम-सिसु सानुज चरित चारु गाइ-सुनि
०११।०४--- सुजन सादर जनम-लाहु लियो है ।
०११।०४--- तुलसी बिहाइ दसरथ दसचारिपुर
०११।०४--- ऐसे सुख जोग बिधि बिरच्यो न बियो है ॥
०१२--०१--- राम-सिसु गोद महामोद भरे दसरथ,
०१२--०१--- कौसिलाहु ललकि लषनलाल लये हैं ।
०१२--०१--- भरत सुमित्रा लये, कैकयी सत्रुसमन,
०१२--०१--- तन प्रेम-पुलक मगन मन भये हैं ॥
०१२--०२--- मेढ़ी लटकन मनि-कनक-रचित, बाल-
०१२--०२--- भूषन बनाइ आछे अंग अंग ठये हैं ।
०१२--०२--- चाहि चुचुकारि चूमि लालत लावत उर
०१२--०२--- तैसे फल पावत जैसे सुबीज बये हैं ॥
०१२--०३--- घन-ओट बिबुध बिलोकि बरषत फूल
०१२--०३--- अनुकूल बचन कहत नेह नये हैं ।
०१२--०३--- ऐसे पितु, मातु, पूत, त्रिय, परिजन बिधि
०१२--०३--- जानियत आयु भरि येई निरमये हैं ॥
०१२--०४--- "अजर अमर होहु, "करौ हरिहर छोहु
०१२--०४--- जरठ जठेरिन्ह आसिरबाद दये हैं ।
०१२--०४--- तुलसी सराहैं भाग तिन्हके, जिन्हके हिये
०१२--०४--- डिम्भ-राम-रुप-अनुराग रङ्ग रये हैं ॥
०१३--राग--- आसावरी
०१३--०१---
०१३--०१--- "आजु अनरसे हैं भोरके, पय पियत न नीके ।
०१३--०१--- रहत न बैठे, ठाढ़े, पालने झुलावत हू, रोवत राम मेरो
०१३--०१--- सो सोच सबहीके ॥
०१३--०२--- देव, पितर, ग्रह पूजिये तुला तौलिये घीके ।
०१३--०२--- तदपि कबहुँ कबहुँक सखी ऐसेहि अरत जब
०१३--०२--- परत दृष्टि दुष्ट तीके ॥
०१३--०३--- बेगि बोलि कुलगुर, छुऔ माथे हाथ अमीके ।
०१३--०३--- सुनत आइ ऋषि कुस हरे नरसिंह मन्त्र पढ़े, जो
०१३--०३--- सुमिरत भय भीके ॥
०१३--०४--- जासु नाम सरबस सदासिव-पारबतीके ।
०१३--०४--- ताहि झरावति कौसिला, यह रीति प्रीतिकी हिय
०१३--०४--- हुलसति तुलसीके ॥
०१४--०१--- माथे हाथ ऋषि जब दियो राम किलकन लागे ।
०१४--०१--- महिमा समुझि, लीला बिलोकि गुरु सजल नयन, तनु पुलक,
०१४--०१--- रोम रोम जागे ॥
०१४--०२--- लिये गोद, धाए गोदतें, मोद मुनि मन अनुरागे ।
०१४--०२--- निरखि मातु हरषी हिये आली-ओट कहति मृदु बचन
०१४--०२--- प्रेमके-से पागे ॥
०१४--०३--- तुम्ह सुरतरु रघुबंसके, देत अभिमत माँगे ।
०१४--०३--- मेरे बिसेषि गति रावरी, तुलसी प्रसाद जाके सकल
०१४--०३--- अमङ्गल भागे ॥
०१५--०१--- अमिय-बिलोकनि करि कृपा मुनिबर जब जोए ।
०१५--०१--- तबतें राम अरु भरत, लषन, रिपुदवन, सुमुख सखि, सकल
०१५--०१--- सुवन सुख सोए ॥
०१५--०२--- सुमित्रा लाय हिये फनि मनि ज्यों गोए ।
०१५--०२--- तुलसी नेवछावरि करति मातु अतिप्रेम-मगन-मन,
०१५--०२--- सजल सुलोचन कोये ॥
०१६--०१--- मातु सकल, कुल-गुर-बधू, प्रिय सखी सुहाई ।
०१६--०१--- सादर सब मङ्गल किए महि-मनि-महेस पर
०१६--०१--- सबनि सुधेनु दुहाई ॥
०१६--०२--- बोलि भूपभूसुर लिये अति बिनय बड़ाई ।
०१६--०२--- पूजि पायँ, सनमानि, दान दिये, लहि असीस, सुनि
०१६--०२--- बरषैं सुमन सुरसाईँ ॥
०१६--०३--- घर-घर पुर बाजन लगीं आनन्द-बधाई ।
०१६--०३--- सुख-सनेह तेहि समयको तुलसी जानै जाको चोर्यो
०१६--०३--- है चित चहुँ भाई ॥
०१७--राग--- धनाश्री
०१७--०१--- या सिसुके गुन नाम-बड़ाई ।
०१७--०१--- को कहि सकै, सुनहु नरपति, श्रीपति समान प्रभुताई ॥
०१७--०२--- जद्यपि बुधि, बय, रुप, सील, गुन समै चारु चार्यो भाई ।
०१७--०२--- तदपि लोक-लोचन-चकोर-ससि राम भगत-सुखदाई ॥
०१७--०३--- सुर, नर, मुनि करि अभय, दनुज हति, हरहि, धरनि गरुआई ।
०१७--०३--- कीरति बिमल बिस्व-अघमोचनि रहिहि सकल जग छाई ॥
०१७--०४--- याके चरन-सरोज कपट तजि जे भजिहै मन लाई ।
०१७--०४--- ते कुल जुगल सहित तरिहैं भव, यह न कछू अधिकाई ॥
०१७--०५--- सुनि गुरबचन पुलक तन दम्पति, हरष न हृदय समाई ।
०१७--०५--- तुलसिदास अवलोकि मातु-मुख प्रभु मनमें मुसुकाई ॥
०१८--राग--- बिलावल
०१८--०१--- अवध आजु आगमी एकु आयो ।
०१८--०१--- करतल निरखि कहत सब गुनगन, बहुतन्ह परिचौ पायो ॥
०१८--०२--- बूढ़ो बड़ो प्रमानिक ब्राह्मन सङ्कर नाम सुहायो ।
०१८--०२--- सँग सिसुसिष्य, सुनत कौसल्या भीतर भवन बुलायो ॥
०१८--०३--- पायँ पखारि, पूजि दियो आसन असन बसन पहिरायो ।
०१८--०३--- मेले चरन चारु चार्यो सुत माथे हाथ दिवायो ॥
०१८--०४--- नखसिख बाल बिलोकि बिप्रतनु पुलक, नयन जल छायो ।
०१८--०४--- लै लै गोद कमल-कर निरखत, उर प्रमोद न अमायो ॥
०१८--०५--- जनम प्रसङ्ग कह्यो कौसिक मिस सीय-स्वयम्बर गायो ।
०१८--०५--- राम, भरत, रिपुदवन, लखनको जय सुख सुजस सुनायो ॥
०१८--०६--- तुलसिदास रनिवास रहसबस, भयो सबको मन भायो ।
०१८--०६--- सनमान्यो महिदेव असीसत सानँद सदन सिधायो ॥
०१९--राग--- केदारा
०१९--०१--- पौढ़िये लालन, पालने हौं झुलावौं ।
०१९--०१--- कर पद मुख चखकमल लसत लखि लोचन-भँवर भुलावौं ॥
०१९--०२--- बाल-बिनोद-मोद-मञ्जुलमनि किलकनि-खानि खुलावौं ।
०१९--०२--- तेइ अनुराग ताग गुहिबे कहँ मति मृगनयनि बुलावौं ॥
०१९--०३--- तुलसी भनित भली भामिनि उर सो पहिराइ फुलावौं ।
०१९--०३--- चारु चरित रघुबर तेरे तेहि मिलि गाइ चरन चितु लावौं ॥
०२०--०१--- सोइये लाल लाडिले रघुराई ।
०२०--०१--- मगन मोद लिये गोद सुमित्रा बार बार बलि जाई ॥
०२०--०२--- हँसे हँसत, अनरसे अनरसत प्रतिबिम्बनि ज्यों झाँई ।
०२०--०२--- तुम सबके जीवनके जीवन, सकल सुमङ्गलदाई ॥
०२०--०३--- मूल मूल सुरबीथि-बेलि, तम-तोम सुदल अधिकाई ।
०२०--०३--- नखत-सुमन, नभ-बिटप बौण्डि मानो छपा छिटकि छबि छाई ॥
०२०--०४--- हौ जँभात, अलसात, तात! तेरी बानि जानि मैं पाई ।
०२०--०४--- गाइ गाइ हलराइ बोलिहौं सुख नीन्दरी सुहाई ॥
०२०--०५--- बछरु, छबीलो छगनमगन मेरे, कहति मल्हाइ मल्हाई ।
०२०--०५--- सानुज हिय हुलसति तुलसीके प्रभुकी ललित लरिकाई ॥
०२१।०१--- ललन लोने लेरुआ, बलि मैया ।
०२१।०१--- सुख सोइए नीन्द-बेरिया भई, चारु-चरित चार्यो भैया ॥
०२१।०२--- कहति मल्हाइ लाइ उर छिन-छिन, "छगन छबीले छोटे छैया ।
०२१।०२--- मोद-कन्द कुल कुमुद-चन्द्र मेरे रामचन्द्र रघुरैया॥
०२१।०३--- रघुबर बालकेलि सन्तनकी सुभग सुभद सुरगैया ।
०२१।०३--- तुलसी दुहि पीवत सुख जीवत पय सप्रेम घनी घैया ॥
०२२--०१--- सुखनीन्द कहति आलि आइहौं ।
०२२--०१--- राम, लखन, रिपुदवन, भरत सिसु करि सब सुमुख सोआइहौं ॥
०२२--०२--- रोवनि, धोवनि, अनखानि, अनरसनि, डिठि-मुठि निठुर नसाइहौं ।
०२२--०२--- हँसनि, खेलनि, किलकनि, आनन्दनि भूपति-भवन बसाइहौं ॥
०२२--०३--- गोद बिनोद-मोदमय मूरति हरषि हरषि हलराइहौं ।
०२२--०३--- तनु तिल तिल करि, बारि रामपर, लेहौं रोग बलाइहौं ॥
०२२--०४--- रानी-राउ सहित सुत परिजन निरखि नयन-फल पाइहौं ।
०२२--०४--- चारु चरित रघुबंस-तिलकके तहँ तुलसी मिलि गाइहौं ॥
०२३--राग--- आसावरी
०२३--०१--- कनक-रतनमय पालनो रच्यो मनहुँ मार-सुतहार ।
०२३--०१--- बिबिध खेलौना, किङ्किनी, लागे मञ्जुल मुकुताहार ॥
०२३--०१--- रघुकुल-मण्डन राम लला ॥
०२३--०२--- जननि उबटि, अन्हवाइकै, मनिभूषन सजि लिये गोद ।
०२३--०२--- पौढ़ाए पटु पालने, सिसु निरखि मगन मन मोद ॥
०२३--०२--- दसरथनन्दन राम लला ॥
०२३--०३--- मदन, मोरकै चन्दकी झलकनि, निदरति तनु जोति ।
०२३--०३--- नील कमल, मनि जलदकी उपमा कहे लघु मति होति ॥
०२३--०३--- मातु-सुकृत-फल राम लला ॥
०२३--०४--- लघु, लघु लोहित ललिक हैं पद, पानि, अधर एक रङ्ग ।
०२३--०४--- को कबि जो छबि कहि सकै नखसिख सुन्दर सब अंग ॥
०२३--०४--- परिजन-रञ्जन राम लला ॥
०२३--०५--- पग नूपुर कटि किङ्किनी, कर-कञ्जनि पहुँची मञ्जु ।
०२३--०५--- हिय हरि नख अदभुत बन्यो मानो मनसिज मनि-गन-गञ्जु ॥
०२३--०५--- पुरजन-सिरमनि राम लला ॥
०२३--०६--- लोयन नील सरोजसे, भ्रूपर मसिबिन्दु बिराज ।
०२३--०६--- जनु बिधु-मुख-छबि-अमियको रच्छक राखै रसराज ॥
०२३--०६--- सोभासागर राम लला ॥
०२३--०७--- गभुआरी अलकावली लसै, लटकन ललित ललाट ।
०२३--०७--- जनु उडुगन बिधु मिलनको चले तम बिदारि करि बाट ॥
०२३--०७--- सहज सोहावनो राम लला ॥
०२३--०८--- देखि खेलौना किलकहीं, पद पानि बिलोचन लोल ।
०२३--०८--- बिचित्र बिहँग अलि-जलज ज्यों सुखमा-सर करत कलोल ॥
०२३--०८--- भगत-कलपतरु राम लला ॥
०२३--०९--- बाल-बोल बिनु अरथके सुनि देत पदारथ चारि ।
०२३--०९--- जनु इन्ह बचनन्हितें भए सुरतरु तापस त्रिपुरारि ॥
०२३--०९--- नाम-कामधुक राम लला ॥
०२३--१०--- सखी सुमित्रा वारहीं मनि भूषन बसन बिभाग ।
०२३--१०--- मधुर झुलाइ मल्हावहीं गावैं उमँगि उमँगि अनुराग ॥
०२३--१०--- हैं जग-मङ्गल राम लला ॥
०२३--११--- मोती जायो सीपमें अरु अदिति जन्यो जग-भानु ।
०२३--११--- रघुपति जायो कौसिला गुन-मङ्गल-रूप-निधान ॥
०२३--११--- भुवन-बिभूषन राम लला ॥
०२३--१२--- राम प्रगट जबतें भए गए सकल अमङ्गल-मूल ।
०२३--१२--- मीत मुदित, हित उदित हैं, नित बैरिनके चित सूल ॥
०२३--१२--- भव-भय-भञ्जन राम लला ॥
०२३--१३--- अनुज-सखा-सिसु सङ्ग लै खेलन जैहैं चौगान ।
०२३--१३--- लङ्का खरभर परैगी, सुरपुर बाजिहैं निसान ॥
०२३--१३--- रिपुगन-गञ्जन राम लला ॥
०२३--१४--- राम अहेरे चलहिङ्गे जब गज रथ बाजि सँवारि ।
०२३--१४--- दसकन्धर उर धुकधुकी अब जनि धावै धनु-धारि ॥
०२३--१४--- अरि-करि-केहरि राम लला ॥
०२३--१५--- गीत सुमित्रा सखिन्हकै सुनि सुनि सुर मुनि अनुकूल ।
०२३--१५--- दै असीस जय जय कहैं हरषैं बरषैं फूल ॥
०२३--१५--- सुर-सुखदायक राम लला ॥
०२३--१६--- बालचरितमय चन्द्रमा यह सोरह-कला-निधान ।
०२३--१६--- चित-चकोर तुलसी कियो कर प्रेम-अमिय-रसपान ॥
०२३--१६--- तुलसीको जीवन राम लला ॥
०२४--राग--- कान्हरा
०२४--०१--- पालने रघुपति झुलावै ।
०२४--०१--- लै लै नाम सप्रेम सरस स्वर कौसल्या कल कीरति गावै ॥
०२४--०२--- केकिकण्ठ दुति स्यामबरन बपु, बाल-बिभूषन बिरचि बनाए ।
०२४--०२--- अलकैं कुटिल, ललित लटकनभ्रू, नील नलिन दोउ नयन सुहाए ॥
०२४--०३--- सिसु-सुभाय सोहत जब कर गहि बदन निकट पदपल्लव लाए ।
०२४--०३--- मनहुँ सुभग जुग भुजग जलज भरि लेत सुधा ससि सों सचु पाए ॥
०२४--०४--- उपर अनूप बिलोकि खेलौना किलकत पुनि-पुनि पानि पसारत ।
०२४--०४--- मनहुँ उभय अंभोज अरुन सों बिधु-भय बिनय करत अति आरत ॥
०२४--०५--- तुलसिदास बहु बास बिबस अलि गुञ्जत, सुछबि न जाति बखानी ।
०२४--०५--- मनहुँ सकल श्रुति ऋचा मधुप ह्वै बिसद सुजस बरनत बर बानी ॥
०२५--राग--- बिलावल
०२५--०१--- झूलत राम पालने सोहैं । भूरि-भाग जननीजन जोहैं ॥
०२५--०२--- तन मृदु मञ्जुल मेचकताई । झलकति बाल बिभूषन झाँई ॥
०२५--०३--- अधर-पानि-पद लोहित लोने । सर-सिङ्गार-भव सारस सोने ॥
०२५--०४--- किलकत निरखि बिलोल खेलौना । मनहुँ बिनोद लरत छबि छौना ॥
०२५--०५--- रञ्जित-अंजन कञ्ज-बिलोचन । भ्राजत भाल तिलक गोरोचन ॥
०२५--०६--- लस मसिबिन्दु बदन-बिधु नीको । चितवत चितचकोर तुलसीको ॥
०२६--राग--- कल्याण
०२६--०१--- राजत सिसुरूप राम सकल गुन-निकाय-धाम,
०२६--०१--- कौतुकी कृपालु ब्रह्म जानु-पानि-चारी ।
०२६--०१--- नीलकञ्ज-जलदपुञ्ज-मरकतमनि-सरिस स्याम,
०२६--०१--- काम कोटि सोभा अंग अंग उपर बारी ॥
०२६--०२--- हाटक-मनि-रत्न-खचित रचित इंद्र-मन्दिराभ,
०२६--०२--- इंदिरानिवास सदन बिधि रच्यो सँवारी ।
०२६--०२--- बिहरत नृप-अजिर अनुज सहित बालकेलि-कुसल,
०२६--०२--- नील-जलज-लोचन हरि मोचन भय भारी ॥
०२६--०३--- अरुन चरन अंकुस-धुज-कञ्ज-कुलिस-चिन्ह रुचिर,
०२६--०३--- भ्राजत अति नूपुर बर मधुर मुखरकारी ।
०२६--०३--- किङ्किनी बिचित्र जाल, कम्बुकण्ठ ललित माल,
०२६--०३--- उर बिसाल केहरि-नख, कङ्कन करधारी ॥
०२६--०४--- चारु चिबुक नासिका कपोल, भाल तिलक, भ्रुकुटि,
०२६--०४--- श्रवन अधर सुन्दर, द्विज-छबि अनूप न्यारी ।
०२६--०४--- मनहुँ अरुन कञ्ज-कोस मञ्जुल जुगपाँति प्रसव,
०२६--०४--- कुन्दकली जुगल जुगल परम सुभ्रवारी ॥
०२६--०५--- चिक्कन चिकुरावली मनो षडङ्घ्रि-मण्डली,
०२६--०५--- बनी, बिसेषि गुञ्जत जनु बालक किलकारी ।
०२६--०५--- इकटक प्रतिबिम्ब निरखि पुलकत हरि हरषि हरषि,
०२६--०५--- लै उछङ्ग जननी रसभङ्ग जिय बिचारी ॥
०२६--०६--- जाकहँ सनकादि सम्भु नारदादि सुक मुनीन्द्र,
०२६--०६--- करत बिबिध जोग काम क्रोध लोभ जारी ।
०२६--०६--- दसरथ गृह सोइ उदार, भञ्जन संसार-भार,
०२६--०६--- लीला अवतार तुलसिदास-त्रासहारी ॥
०२७--राग--- कान्हरा
०२६--०१--- आँगन फिरत घुटुरुवनि धाए ।
०२६--०१--- नील-जलद तनु-स्याम राम-सिसु जननि निरखि मुख निकट बोलाए ॥
०२६--०२--- बन्धुक सुमन अरुन पद-पङ्कज अंकुस प्रमुख चिन्ह बनि आए ।
०२६--०२--- नूपुर जनु मुनिबर-कलहंसनि रचे नीड़ दै बाँह बसाए ॥
०२६--०३--- कटिमेखल, बर हार ग्रीव-दर, रुचिर बाँह भूषन पहिराए ।
०२६--०३--- उर श्रीवत्स मनोहर हरिनख हेम मध्य मनिगन बहु लाए ॥
०२६--०४--- सुभग चिबुक, द्विज, अधर, नासिका, श्रवन, कपोल मोहि अति भाए ।
०२६--०४--- भ्रू सुन्दर करुनारस-पूरन, लोचन मनहु जुगल जलजाए ॥
०२६--०५--- भाल बिसाल ललित लटकन बर, बालदसाके चिकुर सोहाए ।
०२६--०५--- मनु दोउ गुर सनि कुज आगे करि ससिहि मिलन तमके गन आए ॥
०२६--०६--- उपमा एक अभूत भई तब जब जननी पट पीत ओढ़ाए ।
०२६--०६--- नील जलदपर उडुगन निरखत तजि सुभाव मनो तड़ित छपाए ॥
०२६--०७--- अंग-अंगपर मार-निकर मिलि छबि समूह लै-लै जनु छाए ।
०२६--०७--- तुलसिदास रघुनाथ रूप-गुन तौ कहौं जो बिधि होहिं बनाए ॥
०२८--राग--- केदारा
०२८--०१--- रघुबर बाल छबि कहौं बरनि ।
०२८--०१--- सकल सुखकी सींव, कोटि-मनोज-सोभाहरनि ॥
०२८--०२--- बसी मानहु चरन-कमलनि अरुनता तजि तरनि ।
०२८--०२--- रुचिर नूपुर किङ्किनी मन हरति रुनझुनु करनि ॥
०२८--०३--- मञ्जु मेचक मृदुल तनु अनुहरति भूषन भरनि ।
०२८--०३--- जनु सुभग सिङ्गार सिसु तरु फर्यो है अदभुत फरनि ॥
०२८--०४--- भुजनि भुजग, सरोज नयननि, बदन बिधु जित्यो लरनि ।
०२८--०४--- रहे कुहरनि सलिल, नभ, उपमा अपर दुरि डरनि ॥
०२८--०५--- लसत कर-प्रतिबिम्ब मनि-आँगन घुटुरुवनि चरनि ।
०२८--०५--- जनु जलज-सम्पुट सुछबि भरि-भरि धरति उर धरनि ॥
०२८--०६--- पुन्यफल अनुभवति सुतहि बिलोकि दसरथ-घरनि ।
०२८--०६--- बसति तुलसी-हृदय प्रभु-किलकनि ललित लरखरनि ॥
०२९--०१--- नेकु बिलोकि धौं रघुबरनि ।
०२९--०१--- चारु फल त्रिपुरारि तोको दिये कर नृप-घरनि ॥
०२९--०२--- बाल भूषन बसन, तन सुन्दर रुचिर रजभरनि ।
०२९--०२--- परसपर खेलनि अजिर, उठि चलनि, गिरि गिरि परनि ॥
०२९--०३--- झुकनि, झाँकनि, छाँह सों किलकनि, नटनि हठि लरनि ।
०२९--०३--- तोतरी बोलनि, बिलोकनि, मोहनी मनहरनि ॥
०२९--०४--- सखि-बचन सुनि कौसिला लखि सुढर पासे ढरनि ।
०२९--०४--- लेति भरि भरि अंक सैन्तति पैन्त जनु दुहु करनि ॥
०२९--०५--- चरित निरखत बिबुध तुलसी ओट दै जलधरनि ।
०२९--०५--- चहत सुर सुरपति भयो सुरपति भये चहै तरनि ॥
०३०--राग--- जैतश्री
०३०--०१--- भूमितल भूपके बड़े भाग ।
०३०--०१--- राम लखन रिपुदमन भरत सिसु निरखत अति अनुराग ॥
०३०--०२--- बालबिभूषन लसत पायँ मृदु मञ्जुल अंग-बिभाग ।
०३०--०२--- दसरथ-सुकृत मनोहर बिरवनि रूप-करह जनु लाग ॥
०३०--०३--- राजमराल बिराजत बिहरत जे हर-हृदय-तड़ाग ।
०३०--०३--- ते नृप-अजिर जानु कर धावत धरन चटक चल काग ॥
०३०--०४--- सिद्ध सिहात, सराहत मुनिगन, कहैं सुर किन्नर नाग ।
०३०--०४--- "ह्वै बरु बिहँग बिलोकिय बालक बसि पुर उपबन बाग॥
०३०--०५--- परिजन सहित राय रानिन्ह कियो मज्जन प्रेम-प्रयाग ।
०३०--०५--- तुलसी फल ताके चार्यो मनि मरकत पङ्कजराग ॥
०३१--राग--- आसावरी
०३१।०१--- छँगन मँगन अँगना खेलत चारु चार्यो भाई ।
०३१।०१--- सानुज भरत लाल लषन राम लोने लोने
०३१।०१--- लरिका लखि मुदित मातु समुदाई ॥
०३१।०२--- बाल बसन भूषन धरे, नख-सिख छबि छाई ।
०३१।०२--- नील पीत मनसिज-सरसिज मञ्जुल
०३१।०२--- मालनि मानो है देहनितें दुति पाई ॥
०३१।०३--- ठुमुकु ठुमुकु पग धरनि, नटनि, लरखरनि सुहाई ।
०३१।०३--- भजनि, मिलनि, रुठनि, तूठनि, किलकनि,
०३१।०३--- अवलोकनि, बोलनि बरनि न जाई ॥
०३१।०४--- जननि सकल चहुँ ओर आलबाल मनि-अँगनाई ।
०३१।०४--- दसरथ-सुकृत बिबुध-बिरवा बिलसत
०३१।०४--- बिलोकि जनु बिधि बर बारि बनाई ॥
०३१।०५--- हरि बिरञ्चि हर हेरि राम प्रेम-परबसताई ।
०३१।०५--- सुख-समाज रघुराजके बरनत
०३१।०५--- बिसुद्ध मन सुरनि सुमन झरि लाई ॥
०३१।०६--- सुमिरत श्रीरघुबरनिकी लीला लरिकाई ।
०३१।०६--- तुलसिदास अनुराग अवध आनँद
०३१।०६--- अनुभवत तब को सो अजहुँ अघाई ॥
०३२--राग--- बिलावल
०३२--०१--- आँगन खेलत आनँदकन्द । रघुकुल-कुमुद-सुखद चारु चन्द ॥
०३२--०२--- सानुज भरत लषन सँग सोहैं । सिसु-भूषन भूषित मन मोहैं ।
०३२--०२--- तन दुति मोरचन्द जिमि झलकैं । मनहुँ उमगि अँग-अँग छबि छलकैं ॥
०३२--०३--- कटि किङ्किनि पग पैजनि बाजैं । पङ्कज पानि पहुँचिआँ राजैं ।
०३२--०३--- कठुला कण्ठ बघनहा नीके । नयन-सरोज-मयन-सरसीके ॥
०३२--०४--- लटकन लसत ललाट लटूरीं । दमकति द्वै द्वै दँतुरियाँ रुरीं ।
०३२--०४--- मुनि-मन हरत मञ्जु मसि बुन्दा । ललित बदन बलि बाल मुकुन्दा ॥
०३२--०५--- कुलही चित्र बिचित्र झँगूलीं । निरखत मातु मुदित मन फूलीं ।
०३२--०५--- गहि मनिखम्भ डिम्भ डगि डोलत । कल बल बचन तोतरे बोलत ॥
०३२--०६--- किलकत, झुकि झाँकत प्रतिबिम्बनि । देत परम सुख पितु अरु अंबनि ।
०३२--०६--- सुमिरत सुखमा हिय हुलसी है । गावत प्रेम पुलकि तुलसी है ॥
०३३--राग--- कान्हरा
०३३--०१--- ललित सुतहि लालति सचु पाये ।
०३३--०१--- कौसल्या कल कनक अजिर महँ सिखवति चलन अँगुरियाँ लाये ॥
०३३--०२--- कटि किङ्किनी, पैजनी पायनि बाजति रुनझुन मधुर रेङ्गाये ।
०३३--०२--- पहुँची करनि, कण्ठ कठुला बन्यो केहरि नख मनि-जरित जराये ॥
०३३--०३--- पीत पुनीत बिचित्र झँगुलिया सोहति स्याम सरीर सोहाये ।
०३३--०३--- दँतियाँ द्वै-द्वै मनोहर मुख छबि, अरुन अधर चित लेत चोराये ॥
०३३--०४--- चिबुक कपोल नासिका सुन्दर, भाल तिलक मसिबिन्दु बनाये ।
०३३--०४--- राजत नयन मञ्जु अंजनजुत खञ्जन कञ्ज मीन मद नाये ॥
०३३--०५--- लटकन चारु भ्रुकुटिया टेढ़ी, मेढ़ी सुभग सुदेस सुभाये ।
०३३--०५--- किलकि किलकि नाचत चुटकी सुनि, डरपति जननि पानि छुटकाये ॥
०३३--०६--- गिरि घुटुरुवनि टेकि उठि अनुजनि तोतरि बोलत पूप देखाये ।
०३३--०६--- बाल-केलि अवलोकि मातु सब मुदित मगन आनँद न अमाये ॥
०३३--०७--- देखत नभ घन-ओट चरित मुनि जोग समाधि बिरति बिसराये ।
०३३--०७--- तुलसिदास जे रसिक न यहि रस ते नर जड जीवत जग जाये ॥
०३४--राग--- ललित
०३४--०१--- छोटी छोटी गोड़ियाँ अँगुरियाँ छबीलीं छोटी,
०३४--०१--- नख-जोति मोती मानो कमल-दलनिपर ।
०३४--०१--- ललित आँगन खेलैं, ठुमुकु ठुमुकु चलैं,
०३४--०१--- झुँझुनु झुँझुनु पाँय पैजनी मृदु मुखर ॥
०३४--०२--- किङ्किनी कलित कटि हाटक जटित मनि,
०३४--०२--- मञ्जु कर-कञ्जनि पहुँचियाँ रुचिरतर ।
०३४--०२--- पियरी झीनी झँगुली साँवरे सरीर खुली,
०३४--०२--- बालक दामिनि ओढ़ी मानो बारे बारिधर ॥
०३४--०३--- उर बघनहा, कण्ठ कठुला, झँडूले केश,
०३४--०३--- मेढ़ी लटकन मसिबिन्दु मुनि-मन-हर ।
०३४--०३--- अंजन-रञ्जित नैन, चित चोरै चितवनि,
०३४--०३--- मुख-सोभापर वारौं अमित असमसर ॥
०३४--०४--- चुटकी बजावती नचावती कौसल्या माता,
०३४--०४--- बालकेलि गावती मल्हावती सुप्रेम-भर ।
०३४--०४--- किलकि किलकि हँसैं, द्वै-द्वै दँतुरियाँ लसैं,
०३४--०४--- तुलसीके मन बसैं तोतरे बचन बर ॥
०३५--०१--- सादर सुमुखि बिलोकि राम-सिसुरूप, अनूप भूप लिये कनियाँ ।
०३५--०१--- सुदंर स्याम सरोज बरन तनु, नखसिख सुभग सकल सुखदनियाँ ॥
०३५--०२--- अरुन चरन नखजोति जगमगति, रुनझुनु करति पाँय पैञ्जनियाँ ।
०३५--०२--- कनक-रतन-मनि जटित रटति कटि किङ्किनि
०३५--०२--- कलित पीतपट-तनियाँ ॥२--।
०३५--०३--- पहुँची करनि, पदिक हरिनख उर, कठुला कण्ठ, मञ्जु गजमनियाँ ।
०३५--०३--- रुचिर चिबुक, रद, अधर मनोहर, ललित
०३५--०३--- नासिका लसति नथुनियाँ ॥
०३५--०४--- बिकट भ्रुकुटि, सुखमानिधि आनन, कल
०३५--०४--- कपोल, काननि नगफनियाँ ।
०३५--०४--- भाल तिलक मसिबिन्दु बिराजत, सोहति सीस लाल चौतनियाँ ॥
०३५--०५--- मनमोहनी तोतरी बोलनि, मुनि-मन-हरनि हँसनि किलकनियाँ ।
०३५--०५--- बाल सुभाय बिलोल बिलोचन, चोरति चितहि चारु चितवनियाँ ॥
०३५--०६--- सुनि कुलबधू झरोखनि झाँकति रामचन्द्र-छबि चन्दबदनियाँ ।
०३५--०६--- तुलसीदास प्रभु देखि मगन भईं प्रेमबिबस कछु सुधि न अपनियाँ ॥
०३६--राग--- बिलावल
०३६--०१--- सोहत सहज सुहाये नैन ।
०३६--०१--- खञ्जन मीन कमल सकुचत तब जब उपमा चाहत कबि दैन ॥
०३६--०२--- सुन्दर सब अंगनि सिसु-भूषन राजत जनु सोभा आये लैन ।
०३६--०२--- बड़ो लाभ, लालची लोभबस रहि गयो लखि सुखमा बहु मैन ॥
०३६--०३--- भोर भूप लिये गोद मोद भरे, निरखत बदन, सुनत कल बैन ।
०३६--०३--- बालक-रूप अनूप राम-छबि निवसति तुलसिदास-उर-ऐन ॥
०३७--राग--- बिभास
०३७--०१--- भोर भयो जागहु, रघुनन्दन । गत-व्यलीक भगतनि उर-चन्दन ॥
०३७--०२--- ससि करहीन, छीन दुति तारे । तमचुर मुखर, सुनहु मेरे प्यारे ॥
०३७--०३--- बिकसित कञ्ज, कुमुद बिलखाने । लै पराग रस मधुप उड़ाने ॥
०३७--०४--- अनुज सखा सब बोलनि आये । बन्दिन्ह अति पुनीत गुन गाये ॥
०३७--०५--- मनभावतो कलेऊ कीजै । तुलसिदास कहँ जूठनि दीजै ॥
०३८--०१--- प्रात भयो तात, बलि मातु बिधु-बदनपर
०३८--०१--- मदन वारौं कोटि, उठो प्रान-प्यारे !
०३८--०१--- सूत-मागध-बन्दि बदत बिरुदावली,
०३८--०१--- द्वार सिसु अनुज प्रियतम तिहारे ॥
०३८--०२--- कोक गतसोक अवलोकि ससि छीनछबि,
०३८--०२--- अरुनमय गगन राजत रुचि तारे ।
०३८--०२--- मनहुँ रबि बाल मृगराज तमनिकर-करि
०३८--०२--- दलित, अति ललित मनिगन बिथारे ॥
०३८--०३--- सुनहु तमचुर मुखर,कीर कलहंस पिक
०३८--०३--- केकि रव कलित, बोलत बिहँग बारे ।
०३८--०३--- मनहुँ मुनिबृन्द रघुबंसमनि! रावरे
०३८--०३--- गुनत गुन आश्रमनि सपरिवारे ॥
०३८--०४--- सरनि बिकसित कञ्जपुञ्ज मकरन्दवर,
०३८--०४--- मञ्जुतर मधुर मधुकर गुँजारे ।
०३८--०४--- मनहुँ प्रभुजनम सुनि चैन अमरावती,
०३८--०४--- इन्दिरानन्द-मन्दिर सँवारे ॥
०३८--०५--- प्रेम-सम्मिलित बर बचन-रचना अकनि
०३८--०५--- राम राजीव-लोचन उघारे ।
०३८--०५--- दास तुलसी मुदित, जननि करै आरती,
०३८--०५--- सहज सुन्दर अजिर पाँव धारे ॥
०३९--०१--- जागिये कृपानिधान जानराय रामचन्द्र
०३९--०१--- जननी कहै बार-बार भोर भयो प्यारे ।
०३९--०१--- राजिवलोचन बिसाल, प्रीति-बापिका मराल,
०३९--०१--- ललित कमल-बदन ऊपर मदन कोटि बारे ॥
०३९--०२--- अरुन उदित, बिगत सरबरी, ससाङ्क किरनहीन,
०३९--०२--- दीन दीपजोति, मलिन, दुति समूह तारे ।
०३९--०२--- मनहुँ ग्यानघन-प्रकास, बीते सब भव-बिलास
०३९--०२--- आस-त्रास तिमिर तोष तरनि-तेज जारे ॥
०३९--०३--- बोलत खगनिकर मुखर मधुर करि प्रतीति सुनहु
०३९--०३--- श्रवन, प्रानजीवन धन, मेरे तुम बारे ।
०३९--०३--- मनहुँ बेद-बन्दी-मुनिबृन्द-सूत-मागधादि
०३९--०३--- बिरुद बदत "जय जय जय जयति कैटभारे॥
०३९--०४--- बिकसित कमलावली, चले प्रपुञ्ज चञ्चरीक,
०३९--०४--- गुञ्जत कल कोमल धुनि त्यागि कञ्ज न्यारे ।
०३९--०४--- जनु बिराग पाइ सकल सोक-कूप-गृह बिहाइ
०३९--०४--- भृत्य प्रेममत्त फिरत गुनत गुन तिहारे ॥
०३९--०५--- सुनत बचन प्रिय रसाल जागे अतिसय दयाल
०३९--०५--- भागे जञ्जाल बिपुल, दुख-कदम्ब दारे ।
०३९--०५--- तुलसिदास अति अनन्द देखिकै मुखारबिन्द,
०३९--०५--- छूटे भ्रमफन्द परम मन्द द्वन्द भारे ॥
०४०--०१--- बोलत अवनिप-कुमार ठाढ़े नृपभवन-द्वार,
०४०--०१--- रुप-सील-गुन उदार जागहु मेरे प्यारे ।
०४०--०१--- बिलखित कुमुदनि, चकोर, चक्रवाक हरष भोर,
०४०--०१--- करत सोर तमचुर खग, गुञ्जत अलि न्यारे ॥
०४०--०२--- रुचिर मधुर भोजन करि, भूषन सजि सकल अंग,
०४०--०२--- सङ्ग अनुज बालक सब बिबिध बिधि सँवारे ।
०४०--०२--- करतल गहि ललित चाप भञ्जन रिपु-निकर-दाप,
०४०--०२--- कटितट पटपीत, तून सायक अनियारे ॥
०४०--०३--- उपबन मृगया-बिहार-कारन गवने कृपाल,
०४०--०३--- जननी मुख निरखि पुन्यपुञ्ज निज बिचारे ।
०४०--०३--- तुलसिदास सङ्ग लीजै, जानि दीन अभय कीजै
०४०--०३--- दीजै मति बिमल गावै चरित बर तिहारे ॥
०४१--राग--- नट
०४१।०१--- खेलन चलिये आनँदकन्द ।
०४१।०१--- सखा प्रिय नृपद्वार ठाढ़े बिपुल बालक-बृन्द ॥
०४१।०२--- तृषित तुम्हरे दरस कारन चतुर चातक-दास ।
०४१।०२--- बपुष-बारिद बरषि छबि-जल हरहु लोचन-प्यास ॥
०४१।०३--- बन्धु-बचन बिनीत सुनि उठे मनहुँ केहरि-बाल ।
०४१।०३--- ललित लघु सर-चाप कर, उर-नयन-बाहु बिसाल ॥
०४१।०४--- चलत पद प्रतिबिम्ब राजत अजिर सुखमा-पुञ्ज ।
०४१।०४--- प्रेमबस प्रति चरन महि मानो देति आसन कञ्ज ॥
०४१।०५--- निरखि परम बिचित्र सोभा चकित चितवहिं मात ।
०४१।०५--- हरष-बिबस न जात कहि, "निज भवन बिहरहु, तात ॥
०४१।०६--- देखि तुलसीदास प्रभु-छबि रहे सब पल रोकि ।
०४१।०६--- थकित निकर चकोर मानहुँ सरद इंदु बिलोकि ॥
०४२--०१--- बिहरत अवध-बीथिन राम ।
०४२--०१--- सङ्ग अनुज अनेक सिसु, नव-नील-नीरद स्याम ॥
०४२--०२--- तरुन अरुन-सरोज-पद बनी कनकमय पदत्रान ।
०४२--०२--- पीत-पट कटि तून बर, कर ललित लघु धनु-बान ॥
०४२--०३--- लोचननिको लहत फल छबि निरखि पुर-नर-नारि ।
०४२--०३--- बसत तुलसीदास उर अवधेसके सुत चारि ॥
०४३--०१--- जैसे राम ललित तैसे लोने लषन लालु ।
०४३--०१--- तैसेई भरत सील-सुखमा-सनेह-निधि, तैसेई सुभग सँग सत्रुसालु ॥
०४३--०२--- धरे धनु-सर कर, कसे कटि तरकसी, पीरे पट ओढ़े चले चारु चालु ।
०४३--०२--- अंग-अंग भूषन जरायके जगमगत, हरत जनके जीको तिमिरजालु ॥
०४३--०३--- खेलत चौहट घाट बीथी बाटिकनि प्रभु सिव सुप्रेम-मानस-महालु ।
०४३--०३--- सोभा-दान दै दै सनमानत जाचकजन करत लोक-लोचन निहालु ॥
०४३--०४--- रावन-दुरित-दुख दलैं सुर कहैं आजु "अवध सकल सुखको सुकालु।
०४३--०४--- तुलसी सराहैं सिद्ध सुकृत कौसल्याजूके, भूरि भाग-भाजन भुवालु ॥
०४४--राग--- ललित
०४४--०१--- ललित-ललित लघु-लघु धनु-सर कर,
०४४--०१--- तैसी तरकसी कटि कसे, पट पियरे ।
०४४--०१--- ललित पनही पाँय पैञ्जनी-किङ्किनि-धुनि,
०४४--०१--- सुनि सुख लहै मनु, रहै नित नियरे ॥
०४४--०२--- पहुँची अंगद चारु, हृदय पदिक हारु,
०४४--०२--- कुण्डल-तिलक-छबि गड़ी कबि जियरे ।
०४४--०२--- सिरसि टिपारो लाल, नीरज-नयन बिसाल,
०४४--०२--- सुन्दर बदन, ठाढ़े सुरतरु सियरे ॥
०४४--०३--- सुभग सकल अंग, अनुज बालक सङ्ग,
०४४--०३--- देखि नर-नारि रहैं ज्यों कुरङ्ग दियरे ।
०४४--०३--- खेलत अवध-खोरि, गोली भौंरा चक डोरि,
०४४--०३--- मुरति मधुर बसै तुलसीके हियरे ॥
०४५--०१--- छोटिऐ धनुहियाँ, पनहियाँ पगनि छोटी,
०४५--०१--- छोटिऐ कछौटी कटि, छोटिऐ तरकसी ।
०४५--०१--- लसत झँगूली झीनी, दामिनिकी छबि छीनी,
०४५--०१--- सुन्दर बदन, सिर पगिया जरकसी ॥
०४५--०२--- बय-अनुहरत बिभूषन बिचित्र अंग,
०४५--०२--- जोहे जिय आवति सनेह की सरक सी ।
०४५--०२--- मुरतिकी सूरति कही न परै तुलसी पै,
०४५--०२--- जानै सोई जाके उर कसकै करक सी ॥
०४६--राग--- टोड़ी
०४६--०१--- राम-लषन इक ओर, भरत-रिपुदवन लाल इक ओर भये ।
०४६--०१--- सरजुतीर सम सुखद भूमि-थल, गनि-गनि गोइयाँ बाँटि लये ॥
०४६--०२--- कन्दुक-केलि-कुसल हय चढ़ि-चढ़ि, मन कसि-कसि ठोङ्कि-ठोङ्कि खये ।
०४६--०२--- कर-कमलनि बिचित्र चौगानैं, खेलन लगे खेल रिझये ॥
०४६--०३--- ब्योम बिमाननि बिबुध बिलोकत खेलक पेखक छाँह छये ।
०४६--०३--- सहित समाज सराहि दसरथहि बरषत निज तरु-कुसुम-चये ॥
०४६--०४--- एक लै बढ़त एक फेरत, सब प्रेम-प्रमोद-बिनोद-मये ।
०४६--०४--- एक कहत भै हार रामजूकी, एक कहत भैया भरत जये ॥
०४६--०५--- प्रभु बकसत गज बाजि, बसन-मनि, जय धुनि गगन निसान हये ।
०४६--०५--- पाइ सखा-सेवक जाचक भरि जनम न दुसरे द्वार गये ॥
०४६--०६--- नभ-पुर परति निछावरि जहँ तहँ, सुर-सिद्धनि बरदान दये ।
०४६--०६--- भूरि-भाग अनुराग उमगि जे गावत-सुनत चरित नित ये ॥
०४६--०७--- हारे हरष होत हिय भरतहि, जिते सकुच सिर नयन नये ।
०४६--०७--- तुलसी सुमिरि सुभाव-सील सुकृती तेइ जे एहि रङ्ग रए ॥
०४६--०२--- खेलि खेल सुखेलनिहारे ।
०४६--०२--- उतरि उतरि, चुचुकारि तुरङ्गनि, सादर जाइ जोहारे ॥१।
०४६--०२--- बन्धु-सखा-सेवक सराहि, सनमानि सनेह सँभारे ।
०४६--०२--- दिये बसन-गज-बाजि साजि सुभ साज सुभाँति सँवारे ॥
०४६--०३--- मुदित नयन-फल पाइ, गाइ गुन सुर सानन्द सिधारे ।
०४६--०३--- सहित समाज राजमन्दिर कहँ राम राउ पगु धारे ॥
०४६--०४--- भूप-भवन घर-घर घमण्ड कल्यान कोलाहल भारे ।
०४६--०४--- निरखि हरषि आरती-निछावरि करत सरीर बिसारे ॥
०४६--०५--- नित नए मङ्गल-मोद अवध सब, सब बिधि लोग सुखारे ।
०४६--०५--- तुलसी तिन्ह सम तेउ जिन्हके प्रभुतें प्रभु-चरित पियारे ॥
०४७--०१--- विश्र्वामित्रजीका आगमन
०४७--राग--- सारङ्ग
०४७--०१--- चहत महामुनि जाग जयो ।
०४७--०१--- नीच निसाचर देत दुसह दुख, कृस तनु ताप तयो ॥
०४७--०२--- सापे पाप, नये निदरत खल, तब यह मन्त्र ठयो ।
०४७--०२--- बिप्र-साधु-सुर-धेनु-धरनि-हित हरि अवतार लयो ॥
०४७--०३--- सुमिरत श्रीसारङ्गपानि छनमें सब सोच गयो ।
०४७--०३--- चले मुदित कौसिक कोसलपुर, सगुननि साथ दयो ॥
०४७--०४--- करत मनोरथ जात पुलकि, प्रगटत आनन्द नयो ।
०४७--०४--- तुलसी प्रभु-अनुराग उमगि मग मङ्गल मूल भयो ॥
०४८--०१--- आजु सकल सुकृत फलु पाइहौं ।
०४८--०१--- सुखकी सींव, अवधि आनँदकी अवध बिलोकि हौं पाइहौं ॥
०४८--०२--- सुतनि सहित दसरथहि देखिहौं, प्रेम पुलकि उर लाइहौं ।
०४८--०२--- रामचन्द्र-मुखचन्द्र-सुधा-छबि नयन-चकोरनि प्याइहौं ॥
०४८--०३--- सादर समाचार नृप बुझिहैं, हौं सब कथा सुनाइहौं ।
०४८--०३--- तुलसी ह्वै कृतकृत्य आश्रमहिं राम लषन लै आइहौं ॥
०४९--राग--- नट
०४९--०१--- देखि मुनि! रावरे पद आज ।
०४९--०१--- भयो प्रथम गनतीमें अबतें हौं जहँ लौं साधु समाज ॥
०४९--०२--- चरन बन्दि, कर जोरि निहोरत, "कहिय कृपा करि काज ।
०४९--०२--- मेरे कछु न अदेय राम बिनु, देह-गेह सब राज॥
०४९--०३--- भली कही भूपति त्रिभुवनमें को सुकृती-सिरताज? ।
०४९--०३--- तुलसि राम-जनमहितें जनियत सकल सुकृत को साज ॥
०५०--०१--- राजन! राम-लषन जो दीजै ।
०५०--०१--- जस रावरो, लाभ ढोटनिहूँ, मुनि सनाथ सब कीजै ॥
०५०--०२--- डरपत हौ साँचे सनेह-बस सुत-प्रभाव बिनु जाने ।
०५०--०२--- बूझिय बामदेव अरु कुलगुरु, तुम पुनि परम सयाने ॥
०५०--०३--- रिपु रन दलि, मख राखि, कुसल अति अलप दिननि घर ऐहैं ।
०५०--०३--- तुलसिदास रघुबंसतिलककी कबिकुल कीरति गैहैं ॥
०५१।०१--- रहे ठगिसे नृपति सुनि मुनिबरके बयन ।
०५१।०१--- कहि न सकत कछु राम-प्रेमबस, पुलक गात, भरे नीर नयन ॥
०५१।०२--- गुरु बसिष्ठ समुझाय कह्यो तब हिय हरषाने, जाने सेष-सयन ।
०५१।०२--- सौम्पे सुत गहि पानि, पाँय परि, भूसुर उर चले उमँगि चयन ॥
०५१।०३--- तुलसी प्रभु जोहत पोहत चित, सोहत मोहत कोटि मयन ।
०५१।०३--- मधु-माधव-मूरति दोउ सँग मानो दिनमनि गवन कियो उतर अयन ॥
०५२--राग--- सारङ्ग
०५२--०१--- ऋषि सँग हरषि चले दोउ भाई ।
०५२--०१--- पितु-पद बन्दि सीस लियो आयसु, सुनि सिष आसिष पाई ॥
०५२--०२--- नील पीत पाथोज बरन बपु, बय किसोर बनि आई ।
०५२--०२--- सर धनु-पानि, पीत पट कटितट, कसे निखङ्ग बनाई ॥
०५२--०३--- कलित कण्ठ मनि-माल, कलेवर चन्दन खौरि सुहाई ।
०५२--०३--- सुन्दर बदन, सरोरुह-लोचन, मुखछबि बरनि न जाई ॥
०५२--०४--- पल्लव, पङ्ख, सुमन सिर सोहत क्यों कहौं बेष-लुनाई ?
०५२--०४--- मनु मूरति धरि उभय भाग भै त्रिभुवन सुन्दरताई ॥
०५२--०५--- पैठत सरनि, सिलनि चढ़ि चितवत, खग-मृग-बन रुचराई ।
०५२--०५--- सादर सभय सप्रेम पुलकि मुनि पुनि-पुनि लेत बुलाई ॥
०५२--०६--- एक तीर तकि हती ताडका, बिद्या बिप्र पढ़ाई ।
०५२--०६--- राख्यो जग्य जीति रजनीचर, भै जग-बिदित बड़ाई ॥
०५२--०७--- चरन-कमल-रज-परस अहल्या, निज पति-लोक पठाई ।
०५२--०७--- तुलसिदास प्रभुके बूझे मुनि सुरसरि कथा सुनाई ॥
०५३--राग--- नट
०५३--०१--- दोउ राजसुवन राजत मुनिके सङ्ग ।
०५३--०१--- नखसिख लोने, लोने बदन, लोने लोने लोयन,
०५३--०१--- दामिनि-बारिद-बरबरन अंग ॥
०५३--०२--- सिरनि सिखा सुहाइ, उपबीत पीत पट, धनु-सर कर, कसे कटि निखङ्ग ।
०५३--०२--- मानो मख-रुज निसिचर हरिबेको सुत पावकके साथ पठये पतङ्ग ॥
०५३--०३--- करत छाँह घन, बरषैं सुमन सुर, छबि बरनत अतुलित अनङ्ग ।
०५३--०३--- तुलसी प्रभु बिलोकि मग, लोग, खग-मृग प्रेम मगन रँगे रुप-रङ्ग ॥
०५४--राग--- कल्याण
०५४--०१--- मुनिके सङ्ग बिराजत बीर
०५४--०१--- काकपच्छ धर, कर कोदण्ड-सर, सुभग
०५४--०१--- पीतपट कटि तूनीर ॥
०५४--०२--- बदन इंदु, अंभोरुह लोचन, स्याम गौर
०५४--०२--- सोभा-सदन सरीर ।
०५४--०२--- पुलकत ऋषि अवलोकि अमित छबि, उर न
०५४--०२--- समाति प्रेमकी भीर ॥
०५४--०३--- खेलत, चलत,करत मग कौतुक, बिलँबत
०५४--०३--- सरित-सरोबर-तीर ।
०५४--०३--- तोरत लता, सुमन, सरसीरुह, पियत
०५४--०३--- सुधासम सीतल नीर ॥
०५४--०४--- बैठत बिमल सिलनि बिटपनि तर, पुनि पुनि बरनत छाँह समीर ।
०५४--०४--- देखत नटत केकि, कल गावत मधुप, मराल, कोकिला, कीर ॥
०५४--०५--- नयननिको फल लेत निरखि खग, मृग, सुरभी, ब्रजबधू, अहीर ।
०५४--०५--- तुलसी प्रभुहि देत सब आसन निज निज मन मृदु कमल कुटीर ॥
०५५--राग--- कान्हरा
०५५--०१--- सोहत मग मुनि सँग दोउ भाई ।
०५५--०१--- तरुन तमाल चारु चम्पक-छबि कबि-सुभाय कहि जाई ॥
०५५--०२--- भूषन बसन अनुहरत अंगनि, उमगति सुन्दरताई ।
०५५--०२--- बदन मनोज सरोज लोचननि रही है लुभाइ लुनाई ॥
०५५--०३--- अंसनि धनु, सर कर-कमलनि, कटि कसे हैं निखङ्ग बनाई ।
०५५--०३--- सकल भुवन सोभा सरबस लघु लागति निरखि निकाई ॥
०५५--०४--- महि मृदु पथ, घन छाँह, सुमन सुर बरष, पवन सुखदाई ।
०५५--०४--- जल-थल-रुह फल, फूल, सलिल सब करत प्रेम पहुनाई ॥
०५५--०५--- सकुच सभीत बिनीत साथ गुरु बोलनि-चलनि सुहाई ।
०५५--०५--- खग-मृग-चित्र बिलोकत बिच-बिच, लसति ललित लरिकाई ॥
०५५--०६--- बिद्या दई जानि बिद्यानिधि, बिद्यहु लही बड़ाई ।
०५५--०६--- ख्याल दली ताडुका, देखि ऋषि देत असीस अघाई ॥
०५५--०७--- बूझत प्रभु सुरसरि-प्रसङ्ग कहि निज कुल कथा सुनाई ।
०५५--०७--- गाधिसुवन-सनेह-सुख-सम्पति उर-आश्रम न समाई ॥
०५५--०८--- बनबासी बटु, जती, जोगि-जन साधु-सिद्ध-समुदाई ।
०५५--०८--- पूजत पेखि प्रीति पुलकत तनु नयन लाभ लुटि पाई ॥
०५५--०९--- मख राख्यो खलदल दलि भुजबल, बाजत बिबुध बधाई ।
०५५--०९--- नित पथ-चरित-सहित तुलसी-चित बसत लखन रघुराई ॥
०५६--०१--- मञ्जुल मङ्गलमय नृप-ढोटा ।
०५६--०१--- मुनि, मुनितिय, मुनिसिसु बिलोकि कहैं मधुर मनोहर जोटा ॥
०५६--०२--- नाम-रुप-अनुरुप बेष बय, राम लखन लाल लोने ।
०५६--०२--- इन्हतें लही है मानो घन-दामिनि दुति मनसिज, मरकत, सोने ॥
०५६--०३--- चरनसरोज, पीतपट, कटितट, तून-तीर-धनुधारी ।
०५६--०३--- केहरिकन्ध काम-करि-करवर बिपुल बाहु, बल भारी ॥
०५६--०४--- दूषन-रहित समय सम भूषन पाइ सुअंगनि सोहैं ।
०५६--०४--- नव-राजीव-नयन, पुरन बिधुबदन मदन मन मोहैं ॥
०५६--०५--- सिरनि सिखण्ड, सुमन-दल-मण्डन बाल सुभाय बनाये ।
०५६--०५--- केलि-अंक तनु-रेनुपङ्क जनु प्रगटत चरित चोराये ॥
०५६--०६--- मख राखिबे लागि दसरथ सों माँगि आश्रमहि आने ।
०५६--०६--- प्रेम पूजि पाहुने प्रानप्रिय गाधिसुवन सनमाने ॥
०५६--०७--- साधन-फल साधक सिद्धनिके, लोचन-फल सबहीके ।
०५६--०७--- सकल सुकृत-फल, मातु-पिताके, जीवन-धन तुलसीके ॥
०५७--०१--- अहल्योद्धार
०५७--राग--- सूहो
०५७--०१--- रामपद-पदुम-पराग परी ।
०५७--०१--- ऋषितिय तुरत त्यागि पाहन-तनु छबिमय देह धरी ॥
०५७--०२--- प्रबल पाप पति-साप दुसह दव दारुन जरनि जरी ।
०५७--०२--- कृपासुधा सिँचि बिबुध-बेलि ज्यौं फिरि सुख-फरनि फरी ॥
०५७--०३--- निगम-अगम मूरति महेस-मति-जुबति बराय बरी ।
०५७--०३--- सोइ मूरति भै जानि नयनपथ इकटकतें न टरी ॥
०५७--०४--- बरनति हृदय सरुप, सील गुन प्रेम-प्रमोद-भरी ।
०५७--०४--- तुलसिदास अस केहि आरतकी आरति प्रभु न हरी? ॥
०५८--०१--- परत पद-पङ्कज ऋषि-रवनी ।
०५८--०१--- भई है प्रगट अति दिब्य देह धरि मानो त्रिभुवन-छबि-छवनी ॥
०५८--०२--- देखि बड़ो आचरज, पुलकि तनु कहति मुदित मुनि-भवनी ।
०५८--०२--- जो चलिहैं रघुनाथ पयादेहि, सिला न रहिहि अवनी ॥
०५८--०३--- परसि जो पाँय पुनीत सुरसरी सोहै तीनि-गवनी ।
०५८--०३--- तुलसिदास तेहि चरन-रेनुकी महिमा कहै मति कवनी ॥
०५९--०१--- भूरिभाग-भाजनु भई ।
०५९--०१--- रुपरासि अवलोकि बन्धु दोउ प्रेम-सुरङ्ग रई ॥
०५९--०२--- कहा कहैं, केहि भाँति सराहैं, नहि करतूति नई ।
०५९--०२--- बिनु कारन करुनाकर रघुबर केहि-केहि गति न दई ॥
०५९--०३--- करि बहु बिनय, राखि उर मूरति मङ्गल-मोदिमई ।
०५९--०३--- तुलसी ह्वै बिसोक पति-लोकहि प्रभुगुन गनत गई ॥
०६०--राग--- कान्हरा
०६०--०१--- कौसिकके मखके रखवारे ।
०६०--०१--- नाम राम अरु लखन ललित अति, दसरथ-राज-दुलारे ॥
०६०--०२--- मेचक पीत कमल कोमल कल काकपच्छ-धर बारे ।
०६०--०२--- सोभा सकल सकेलि मदन-बिधि सुकर सरोज सँवारे ॥
०६०--०३--- सहस समूह सुबाहु सरिस खल समर सूर भट भारे ।
०६०--०३--- केलि-तून-धनु-बान-पानि रन निदरि निसाचर मारे ॥
०६०--०४--- ऋषितिय तारि स्वयम्बर पेखन जनकनगर पगु धारे ।
०६०--०४--- मग नर-नारि निहारत सादर, कहैं बड़ भाग हमारे ॥
०६०--०५--- तुलसी सुनत एक-एकनि सो चलत बिलोकनिहारे ।
०६०--०५--- मूकनि बचन-लाहु, मानो अंधनि लहे हैं बिलोचन-तारे ॥
०६१।०१--- जनकपुर-प्रवेश
०६१--राग--- टोड़ी
०६१।०१--- आये सुनि कौसिक जनक हरषाने हैं ।
०६१।०१--- बोलि गुर भूसुर, समाज सों मिलन चले,
०६१।०१--- जानि बड़े भाग अनुराग अकुलाने हैं ॥
०६१।०२--- नाइ सीस पगनि, असीस पाइ प्रमुदित,
०६१।०२--- पाँवड़े अरघ देत आदर सों आने हैं ।
०६१।०२--- असन, बसन, बासकै सुपास सब बिधि,
०६१।०२--- पूजि प्रिय पाहुने, सुभाय सनमाने हैं ॥
०६१।०३--- बिनय बड़ाई ऋषि-राजौउ परसपर
०६१।०३--- करत पुलकि प्रेम आनँद अघाने हैं ।
०६१।०३--- देखे राम-लखन निमेषै बिथकित भईं
०६१।०३--- प्रानहु ते प्यारे लागे बिनु पहिचाने हैं ॥
०६१।०४--- ब्रह्मानन्द हृदय, दरस-सुख लोयननि
०६१।०४--- अनभये उभय, सरस राम जाने हैं ।
०६१।०४--- तुलसी बिदेहकी सनेहकी दसा सुमिरि,
०६१।०४--- मेरे मन माने राउ निपट सयाने हैं ॥
०६२--राग--- मलार
०६२--०१--- कोसलरायके कुअँरोटा ।
०६२--०१--- राजत रुचिर जनक-पुर पैठत स्याम गौर नीके जोटा ॥
०६२--०२--- चौतनि सिरनि, कनककली काननि, कटि पट पीत सोहाये ।
०६२--०२--- उर मनि-माल, बिसाल बिलोचन, सीय-स्वयम्बर आये ॥
०६२--०३--- बरनि न जात, मनहिं मन भावत, सुभग अबहिं बय थोरी ।
०६२--०३--- भई हैं मगन बिधुबदन बिलोकत बनिता चतुर चकोरी ॥
०६२--०४--- कहँ सिवचाप, लरिकवनि बूझत, बिहँसि चितै तिरछौंहैं ।
०६२--०४--- तुलसी गलिन भीर, दरसन लगि लोग अटनि आरोहैं ॥
०६३--०१--- ये अवधेसके सुत दोऊ ।
०६३--०१--- चढ़ि मन्दिरनि बिलोकत सादर जनकनगर सब कोऊ ॥
०६३--०२--- स्याम गौर सुन्दर किसोर तनु, तून-बान-धनुधारी ।
०६३--०२--- कटि पट पीत, कण्ठ मुकुतामनि, भुज बिसाल, बल भारी ॥
०६३--०३--- मुख मयङ्क, सरसीरुह लोचन, तिलक भाल, टेढ़ी भौंहैं ।
०६३--०३--- कल कुण्डल, चौतनी चारु अति, चलत मत्त-गज-गौंहैं ॥
०६३--०४--- बिस्वामित्र हेतु पठये नृप,इनहि ताडुका मारी ।
०६३--०४--- मख राख्यो रिपु जीति, जान जग, मग मुनिबधू उधारी ॥
०६३--०५--- प्रिय पाहुने जानि नर-नारिन नयननि अयन दये ।
०६३--०५--- तुलसिदास प्रभु देखि लोग सब जनक समान भये ॥
०६४--राग--- टोड़ी
०६४--०१--- बूझत जनक नाथ, ढोटा दोउ काके हैं ?
०६४--०१--- तरुन तमाल चारु चम्पक-बरन तनु
०६४--०१--- कौन बड़े भागीके सुकृत परिपाके हैं ॥
०६४--०२--- सुखके निधान पाये, हियके पिधान लाये,
०६४--०२--- ठगके-से लाडू खाये, प्रेम-मधु छाके हैं ।
०६४--०२--- स्वारथ-रहित परमारथी कहावत हैं,
०६४--०२--- भे सनेह-बिबस बिदेहता बिबाके हैं ॥
०६४--०३--- सील-सुधाके अगार, सुखमाके पारावार,
०६४--०३--- पावत न पैरि पार पैरि पैरि थाके हैं ।
०६४--०३--- लोचन ललकि लागे, मन अति अनुरागे,
०६४--०३--- एक रसरुप चित सकल सभाके हैं ॥
०६४--०४--- जिय जिय जोरत सगाई राम लखनसों
०६४--०४--- आपने आपने भाय जैसे भाय जाके हैं ।
०६४--०४--- प्रीतिको, प्रतीतिको, सुमिरिबेको, सेइबेको,
०६४--०४--- सरनको समरथ तुलसिहु ताके हैं ॥
०६५--०१--- ए कौन कहाँतें आए ?
०६५--०१--- नील-पीत पाथोज-बरन, मन-हरन, सुभाय सुहाए ॥
०६५--०२--- मुनि सुत किधौं भूप-बालक, किधौं ब्रह्म-जीव जग जाए ।
०६५--०२--- रुप जलधिके रतन, सुछबि-तिय-लोचन ललित ललाए ॥
०६५--०३--- किधौं रबि-सुवन, मदन-ऋतुपति, किधौं हरि-हर बेष बनाए ।
०६५--०३--- किधौं आपने सुकृत-सुरतरुके सुफल रावरेहि पाए ॥
०६५--०४--- भए बिदेह बिदेह नेहबस देहदसा बिसराए ।
०६५--०४--- पुलक गात, न समात हरष हिय, सलिल सुलोचन छाए ॥
०६५--०५--- जनक-बचन मृदु मञ्जु मधु-भरे भगति कौसिकहि भाए ।
०६५--०५--- तुलसी अति आनन्द उमगि उर राम लषन गुन गाए ॥
०६६--०१--- कौसिक कृपालहूको पुलकित तनु भौ ।
०६६--०१--- उमगत अनुराग, सभाके सराहे भाग,
०६६--०१--- देखि दसा जनककी कहिबेको मनु भौ ॥
०६६--०२--- प्रीतिके न पातकी, दियेहू साप पाप बड़ो,
०६६--०२--- मख-मिस मेरो तब अवध-गवनु भौ ।
०६६--०२--- प्रानहूते प्यारे सुत माँगे दिये दसरथ,
०६६--०२--- सत्यसिन्धु सोच सहे, सूनो सो भवनु भौ ॥
०६६--०३--- काकसिखा सिर, कर केलि-तून-धनु-सर,
०६६--०३--- बालक-बिनोद जातुधाननिसों रनु भौ ।
०६६--०३--- बूझत बिदेह अनुराग-आचरज-बस,
०६६--०३--- ऋषिराज जाग भयो, महाराज अनु भौ ॥
०६६--०४--- भूमिदेव, नरदेव, सचिव परसपर
०६६--०४--- कहत, हमहिं सुरतरु सिवधनु भौ ।
०६६--०४--- सुनत राजाकी रीति उपजी प्रतीति-प्रीति,
०६६--०४--- भाग तुलसीके, भले साहेबको जनु भौ ॥
०६७--०१--- चार्यो भले बेटा देव दसरथ रायके ।
०६७--०१--- जैसे राम-लषन, भरत-रिपुहन तैसे,
०६७--०१--- सील-सोभा-सागर, प्रभाकर प्रभायके ॥
०६७--०२--- ताड़का सँहारि मख राखे, नीके पाले ब्रत,
०६७--०२--- कोटि-कोटि भट किये एक एक घायके ।
०६७--०२--- एक बान बेगही उड़ाने जातुधान-जात,
०६७--०२--- सूखि गये गात हैं, पतौआ भये बायके ॥
०६७--०३--- सिलाछोर छुवत अहल्या भई दिब्यदेह,
०६७--०३--- गुन पेखे पारसके पङ्करुह पायके ।
०६७--०३--- रामके प्रसाद गुर गौतम खसम भये,
०६७--०३--- रावरेहु सतानन्द पूत भये मायके ॥
०६७--०४--- प्रेम-परिहास-पोख बचन परसपर
०६७--०४--- कहत सुनत सुख सब ही सुभायके ।
०६७--०४--- तुलसी सराहैं भाग कौसिक जनकजूके,
०६७--०४--- बिधिके सुढर होत सुढर सुदायके ॥
०६८--०१--- ये दोऊ दसरथके बारे ।
०६८--०१--- नाम राम घनस्याम, लखन लघु, नखसिख अँग उजियारे ॥
०६८--०२--- निज हित लागि माँगि आने मैं धरमसेतु-रखवारे ।
०६८--०२--- धीर, बीर बिरुदैत, बाँकुरे, महाबाहु, बल भारे ॥
०६८--०३--- एक तीर तकि हती ताडका, किये सुर-साधु सुखारे ।
०६८--०३--- जग्य राखि, जग साखि, तोषि ऋषि, निदरि निसाचर मारे ॥
०६८--०४--- मुनितिय तारि स्वयम्बर पेखन आये सुनि बचन तिहारे ।
०६८--०४--- एउ देखिहैं पिनाकु नेकु, जेहि नृपति लाज-ज्वर जारे ॥
०६८--०५--- सुनि, सानन्द सराहि सपरिजन, बारहि बार निहारे ।
०६८--०५--- पूजि सप्रेम, प्रसंसि कौसिकहि भूपति सदन सिधारे ॥
०६८--०६--- सोचत सत्य-सनेह-बिबस निसि, नृपहि गनत गये तारे ।
०६८--०६--- पठये बोलि भोर, गुरके सँग रङ्गभूमि पगु धारे ॥
०६८--०७--- नगर-लोग सुधि पाइ मुदित, सबही सब काज बिसारे ।
०६८--०७--- मनहु मघा-जल उमगि उदधि-रुख चले नदी-नद-नारे ॥
०६८--०८--- ए किसोर, धनु घोर बहुत, बिलखात बिलोकनिहारे ।
०६८--०८--- टर्यो न चाप तिन्हते, जिन्ह सुभटनि कौतुक कुधर उखारे ॥
०६८--०९--- ए जाने बिनु जनक जानियत करि पन भूप हँकारे ।
०६८--०९--- नतरु सुधसागर परिहरि कत कूप खनावत खारे ॥
०६८--१०--- सुखमा सील-सनेह सानि मनो रुप बिरञ्चि सँवारे ।
०६८--१०--- रोम-रोमपर सोम-काम सत कोटि बारि फेरि डारे ॥
०६८--११--- कोउ कहै, तेज-प्रताप-पुञ्ज चितये नहिं जात, भिया रे !
०६८--११--- छुअत सरासन-सलभ जरैगो ए दिनकर-बंस-दिया रे ॥
०६८--१२--- एक कहै, कछु होउ, सुफल भये जीवन-जनम हमारे ।
०६८--१२--- अवलोके भरि नयन आजु तुलसीके प्रानपियारे ॥
०६९--०१--- जनक बिलोकि बार-बार रघुबरको ।
०६९--०१--- मुनिपद सीस नाय, आयसु-असीस पाय,
०६९--०१--- एई बातैं कहत गवन कियो घरको ॥
०६९--०२--- नीन्द न परति राति, प्रेम-पन एक भाँति,
०६९--०२--- सोचत, सकोचत बिरञ्चि-हरि-हरको ।
०६९--०२--- तुम्हते सुगम सब देव! देखिबेको अब
०६९--०२--- जस हंस किए जोगवत जुग परको ॥
०६९--०३--- ल्याए सङ्ग कौसिक, सुनाए कहि गुनगन,
०६९--०३--- आए देखि दिनकर कुल-दिनकरको ।
०६९--०३--- तुलसी तेऊ सनेहको सुभाउ बाउ मानो
०६९--०३--- चलदलको सो पात करै चित चरको ॥
०७०--राग--- केदारा
०७०--०१--- रङ्ग-भूमि भोरे ही जाइकै ।
०७०--०१--- राम-लषन लखि लोग लूटिहैं लोचन-लाभ अघाइकै ॥
०७०--०२--- भूप-भवन, घर घर, पुर बाहर, इहै चरचा रही छाइकै ।
०७०--०२--- मगन मनोरथ-मोद नारि-नर, प्रेम-बिबस उठैं गाइकै ॥
०७०--०३--- सोचत बिधि-गति समुझि, परसपर कहत बचन बिलखाइकै ।
०७०--०३--- कुँवर किसोर, कठोर सरासन, असमञ्जस भयो आइकै ॥
०७०--०४--- सुकृत सँभारि, मनाइ पितर-सुर, सीस ईसपद नाइकै ।
०७०--०४--- रघुबर-करधनु-भङ्ग चहत सब अपनो सो हितु चितु लाइकै ॥
०७०--०५--- लेत फिरत कनसुई सगुन सुभ, बूझत गनक बोलाइकै ।
०७०--०५--- सुनि अनुकूल, मुदित मन मानहु धरत धीरजहि धाइकै ॥
०७०--०६--- कौसिक-कथा एक एकनिसों कहत प्रभाउ जनाइकै ।
०७०--०६--- सीय-राम सञ्जोग जानियत, रच्यो बिरञ्चि बनाइकै ॥
०७०--०७--- एक सराहि सुबाहु-मथन बर बाहू, उछाह बढ़ाइकै ।
०७०--०७--- सानुज राज-समाज बिराजिहैं राम पिनाक चढ़ाइकै ॥
०७०--०८--- बड़ी सभा बड़ो लाभ, बड़ो जस, बड़ी बड़ाई पाइकै ।
०७०--०८--- को सोहिहै, और को लायक रघुनायकहि बिहाइकै?॥
०७०--०९--- गवनिहैं गँवहिं गवाँइ गरब गृह नृपकुल बलहि लजाइकै ।
०७०--०९--- भलीभाँति साहब तुलसीके चलिहैं ब्याहि बजाइकै ॥
०७१।०१--- पुष्पवाटिकामें
०७१--राग--- टोड़ी
०७१।०१--- भोर फूल बीनबेको गये फुलवाई हैं ।
०७१।०१--- सीसनि टिपारे, उपबीत, पीत पट कटि,
०७१।०१--- दोना बाम करनि सलोने भे सवाई हैं ॥
०७१।०२--- रुपके अगार, भूपके कुमार, सुकुमार,
०७१।०२--- गुरके प्रानाधार सङ्ग सेवकाई हैं ।
०७१।०२--- नीच ज्यों टहल करैं, राखैं रुख अनुसरैं,
०७१।०२--- कौसिक-से कोही बस किये दुहुँ भाई हैं ॥
०७१।०३--- सखिनसहित तेहि औसर बिधिके सँजोग
०७१।०३--- गिरिजाजू पूजिबेको जानकीजू आई हैं ।
०७१।०३--- निरखि लषन-राम जाने ऋतुपति-काम,
०७१।०३--- मोहि मानो मदन मोहनी मूड़ नाई हैं ॥
०७१।०४--- राघौजू-श्रीजानकी-लोचन मिलिबेको मोद
०७१।०४--- कहिबेको जोगु न, मैं बातैं-सी बनाई हैं ।
०७१।०४--- स्वामी, सीय, सखिन्ह, लषन तुलसीको तैसो
०७१।०४--- तैसो मन भयो जाकी जैसिये सगाई हैं ॥
०७२--०१--- पूजि पारबती भले भाय पाँय परिकै ।
०७२--०१--- सजल सुलोचन, सिथिल तनु पुलकित,
०७२--०१--- आवै न बचन, मन रह्यो प्रेम भरिकै ॥
०७२--०२--- अंतरजामिनि भवभामिनि स्वामिनिसों हौं,
०७२--०२--- कही चाहौं बात, मातु अंत तौ हौं लरिकै ।
०७२--०२--- मूरति कृपालु मञ्जु माल दै बोलत भई,
०७२--०२--- पूजो मन कामना भावतो बरु बरिकै ॥
०७२--०३--- राम कामतरु पाइ, बेलि ज्यों बौण्ड़ी बनाइ,
०७२--०३--- माँग-कोषि तोषि-पोषि, फैलि-फूलि-फरिकै ।
०७२--०३--- रहौगी, कहौगी तब, साँची कही अंबा सिय,
०७२--०३--- गहे पाँय द्वै, उठाय, माथे हाथ धरिकै ॥
०७२--०४--- मुदित असीस सुनि, सीस नाइ पुनि पुनि,
०७२--०४--- बिदा भई देवीसों जननि डर डरिकै ।
०७२--०४--- हरषीं सहेली, भयो भावतो, गावतीं गीत,
०७२--०४--- गवनी भवन तुलसीस-हियो हरिकै ॥
०७३--०१--- रङ्गभूमिमें
०७३--०१--- रङ्गभूमि आए, दसरथके किसोर हैं ।
०७३--०१--- पेखनो सो पेखन चले हैं पुर-नर-नारि,
०७३--०१--- बारे-बूढ़े, अंध-पङ्गु करत निहोर हैं ॥
०७३--०२--- नील पीत नीरज कनक मरकत घन
०७३--०२--- दामिनी-बरन तनु रुपके निचोर हैं ।
०७३--०२--- सहज सलोने, राम-लषन ललित नाम,
०७३--०२--- जैसे सुने तैसेई कुँवर सिरमौर हैं ॥
०७३--०३--- चरन-सरोज, चारु जङ्घा जानु ऊरु कटि,
०७३--०३--- कन्धर बिसाल, बाहु बड़े बरजोर हैं ।
०७३--०३--- नीकेकै निषङ्ग कसे, करकमलनि लसै
०७३--०३--- बान-बिसिषासन मनोहर कठोर हैं ॥
०७३--०४--- काननि कनकफूल, उपबीत अनुकूल,
०७३--०४--- पियरे दुकूल बिलसत आछे छोर हैं ।
०७३--०४--- राजिव नयन, बिधुबदन टिपारे सिर,
०७३--०४--- नख-सिख अंगनि ठगौरी ठौर ठौर हैं ॥
०७३--०५--- सभा-सरवर लोक-कोक-नद-कोकगन
०७३--०५--- प्रमुदित मन देखि दिनमनि भोर हैं ।
०७३--०५--- अबुध असैले मन-मैले महिपाल भये,
०७३--०५--- कछुक उलूक कछु कुमुद चकोर हैं ॥
०७३--०६--- भाईसों कहत बात, कौसिकहि सकुचात,
०७३--०६--- बोल घन घोर-से बोलत थोर-थोर हैं ।
०७३--०६--- सनमुख सबहि, बिलोकत सबहि नीके,
०७३--०६--- कृपासों हेरत हँसि तुलसीकी ओर हैं ॥
०७४--०१--- एई राम-लषन जे मुनि-सँग आये हैं ।
०७४--०१--- चौतनी-चोलना काछे, सखि सोहैं आगे-पाछे,
०७४--०१--- आछेहुते आछे, आछे आछे भाय भाये हैं ॥
०७४--०२--- साँवरे गोरे सरीर, महाबाहु महाबीर,
०७४--०२--- कटि तून तीर धरे, धनुष सुहाये हैं ।
०७४--०२--- देखत कोमल, कल, अतुल बिपुल बल,
०७४--०२--- कौसिक कोदण्ड-कला कलित सिखाये हैं ॥
०७४--०३--- इन्हहीं ताडका मारी, गौतमकी तिय तारी,
०७४--०३--- भारी भारी भूरि भट रन बिचलाये हैं ।
०७४--०३--- ऋषि मख रखवारे, दसरथके दुलारे,
०७४--०३--- रङ्गभूमि पगु धारे, जनक बुलाये हैं ॥
०७४--०४--- इन्हके बिमल गुन गनत पुलकि तनु
०७४--०४--- सतनन्द-कौसिक नरेसहि सुनाये हैं ।
०७४--०४--- प्रभु पद मन दिये, सो समाज चित किये
०७४--०४--- हुलसि हुलसि हिये तुलसिहुँ गाये हैं ॥
०७५--राग--- कान्हरा
०७५--०१--- सीय स्वयम्बरु, माई दोउ भाई आए देखन ।
०७५--०१--- सुनत चलीं प्रलदा प्रमुदित मन,
०७५--०१--- प्रेम पुलकि तनु मनहुँ मदन मञ्जुल पेखन ॥
०७५--०२--- निरखि मनोहरताई सुख पाई कहैं एक-एक सों,
०७५--०२--- भूरिभाग हम धन्य, आलि ! ए दिन, एखन।
०७५--०२--- तुलसी सहज सनेह सुरँग सब
०७५--०२--- सो समाज चित-चित्रसार लागी लेखन ॥
०७६--राग--- गौरी
०७६--०१--- राम-लषन जब दृष्टि परे, री ।
०७६--०१--- अवलोकत सब लोग जनकपुर मानो बिधि बिबिध बिदेह करे, री ॥
०७६--०२--- धनुषजग्य कमनीय अलनि-तल कौतुकही भए आय खरे, री ।
०७६--०२--- छबि-सुरसभा मनहु मनसिजके कलित कलपतरु रुप फरे, री ॥
०७६--०३--- सकल काम बरषत मुख निरखत, करषत, चित, हित हरष भरे, री ।
०७६--०३--- तुलसी सबै सराहत भूपहि भलै पैत पासे सुढर ढरे, री ॥
०७७--०१--- नेकु, सुमुखि, चित लाइ चितौ, री ।
०७७--०१--- राजकुँवर-मूरति रचिबेकी रुचि सुबिरञ्चि श्रम कियो है कितौ, री ॥
०७७--०२--- नख-सिख-सुदंरता अवलोकत कह्यो न परत सुख होत जितौ, री ।
०७७--०२--- साँवर रुप-सुधा भरिबे कहँ नयन-कमल कल कलस रितौ, री ॥
०७७--०३--- मेरे जान इन्हैं बोलिबे कारन चतुर जनक ठयो ठाट इतौ, री ।
०७७--०३--- तुलसी प्रभु भञ्जिहैं सम्भु-धनु, भूरिभाग सिय मातु-पितौ, री ॥
०७८--राग--- सारङ्ग
०७८--०१--- जबतें राम-लषन चितए, री ।
०७८--०१--- रहे इकटक नर-नारि जनकपुर, लागत पलक कलप बितए, री ॥
०७८--०२--- प्रेम-बिबस माँगत महेस सों, देखत ही रहिये नित ए, री ।
०७८--०२--- कै ए सदा बसहु इन्ह नयनन्हि, कै ए नयन जाहु जित ए, री ॥
०७८--०३--- कौऊ समुझाइ कहै किन भूपहि, बड़े भाग आए इत ए री ।
०७८--०३--- कुलिस-कठोर कहाँ सङ्कर-धनु, मृदुमूरति किसोर कित ए, री ॥
०७८--०४--- बिरचत इन्हहिं बिरञ्चि भुवन सब सुन्दरता खोजत रित ए, री ।
०७८--०४--- तुलसिदास ते धन्य जनम जन, मन-क्रम-बच जिन्हके हित ए, री ॥
०७९--०१--- सुनु, सखि!भूपति भलोई कियो, री ।
०७९--०१--- जेहि प्रसाद अवधेस-कुवँर दोउ नगर-लोग अवलोकि जियो, री ॥
०७९--०२--- मानि प्रतीति कहे मेरे तैं कत सँदेह-बस करति हियो, री ।
०७९--०२--- तौलौं है यह सम्भु सरासन, श्रीरघुबर जौलौं न लियो, री ॥
०७९--०३--- जेहि बिंरचि रचि सीय सँवारी, औ रामहि एसो रुप दियो, री ।
०७९--०३--- तुलसिदास तेहि चतुर बिधाता निजकर यह सञ्जोग सियो, री ॥
०८०--०१--- अनुकूल नृपहि सूलपानि हैं ।
०८०--०१--- नीलकण्ठ कारुन्यसिन्धु हर दीनबन्धु दिनदानि हैं ॥
०८०--०२--- जो पहिले ही पिनाक जनक कहँ गये सौम्पि जिय जानि हैं ।
०८०--०२--- बहुरि त्रिलोचन लोचनके फल सबहि सुलभ किये आनि हैं ॥
०८०--०३--- सुनियत भव-भाव ते राम हैं, सिय भावती-भवानि हैं ।
०८०--०३--- परखत प्रीति-प्रतीति, पयज-पनु रहे काज ठटु ठानि हैं ॥
०८०--०४--- भये बिलोकि बिदेह नेहबस बालक बिनु पहिचानि हैं ।
०८०--०४--- होत हरे होने बिरवनि दल सुमति कहति अनुमानि हैं ॥
०८०--०५--- देखियत भूप भोर-के-से उडुगन, गरत गरीब गलानि हैं ।
०८०--०५--- तेज-प्रताप बढ़त कुँवरनको, जदपि सँकोची बानि हैं ॥
०८०--०६--- बय किसोर, बरजोर, बाहुबल-मेरु मेलि गुन तानिहैं ।
०८०--०६--- अवसि राम राजीव-बिलोचन सम्भु-सरासन भानिहैं ॥
०८०--०७--- देखिहैं ब्याह-उछाह नारि-नर, सकल सुमङ्गल-खानि हैं ।
०८०--०७--- भूरिभाग तुलसी तेऊ, जे सुनिहैं, गाइहैं, बखानिहैं ॥
०८१--राग--- केदारा
०८१।०१--- रामहि नीके कै निरखि, सुनैनी !
०८१।०१--- मनसहुँ अगम समुझि, यह अवसरु कत सकुचति, पिकबैनी ॥
०८१।०२--- बड़े भाग मख-भूमि प्रगट भई सीय सुमङ्गल-ऐनी ।
०८१।०२--- जा कारन लोचन-गोचर भै मूरति सब सुखदैनी ॥
०८१।०३--- कुलगुर-तियके मधुर बचन सुनि जनक-जुबति मति-पैनी ।
०८१।०३--- तुलसी सिथिल देह-सुधि-बुधि करि सहज सनेह-बिषैनी ॥
०८२--०१--- मिलो बरु सुन्दर सुन्दरि सीतहि लायकु
०८२--०१--- साँवरो सुभग, शोभाहूँको परम सिङ्गारु ।
०८२--०१--- मनहूको मन मोहै, उपमाको को है?
०८२--०१--- सोहै सुखमासागर सङ्ग अनुज राजकुमारु ॥
०८२--०२--- ललित सकल अंग, तनु धरे कै अनङ्ग,
०८२--०२--- नैननिको फल कैन्धौं, सियको सुकृत-सारु ।
०८२--०२--- सरद-सुधा-सदन-छबिहि निन्दै बदन,
०८२--०२--- अरुन आयत नवनलिन-लोचन चारु ॥
०८२--०३--- जनक-मनकी रीति जानि बिरहित प्रीति,
०८२--०३--- ऐसी औ मूरति देखे रह्यो पहिलो बिचारु ।
०८२--०३--- तुलसी नृपहि ऐसो कहि न बुझावै कोउ,
०८२--०३--- पन औ कुँअर दोऊ प्रेमकी तुला धौं तारु॥
०८३--०१--- देखि देखि री! दोउ राजसुवन ।
०८३--०१--- गौर स्याम सलोने लोने लोने, लोयननि,
०८३--०१--- जिन्हकी सोभा तें सोहै सकल भुवन ॥
०८३--०२--- इन्हहीं ताडका मारी, मग मुनि-तिय तारी,
०८३--०२--- ऋषिमख राख्यो, रन दले हैं दुवन ।
०८३--०२--- तुलसी प्रभुको अब जनकनगर-नभ,
०८३--०२--- सुजस-बिमल-बिधु चहत उवन ॥
०८४--राग--- टोड़ी
०८४--०१--- राजा रङ्गभूमि आज बैठे जाइ जाइकै ।
०८४--०१--- आपने आपने थल, आपने आपने साज,
०८४--०१--- आपनी आपनी बर बानिक बनाइकै ॥
०८४--०२--- कौसिक सहित राम-लषन ललित नाम,
०८४--०२--- लरिका ललाम लोने पठए बुलाइकै ।
०८४--०२--- दरसलालसा-बस लोग चले भाय भले,
०८४--०२--- बिकसित-मुख निकसत धाइ धाइ कै ॥
०८४--०३--- सानुज सानन्द हिये आगे ह्वै जनक लिये,
०८४--०३--- रचना रुचिर सब सादर देखाइकै ।
०८४--०३--- दिये दिब्य आसन सुपास सावकास अति,
०८४--०३--- आछे आछे बीछे बीछे बिछौना बिछाइकै ॥
०८४--०४--- भूपतिकिसोर दुहुँ ओर, बीच मुनिराउ
०८४--०४--- देखिबेको दाउँ, देखौ देखिबो बिहाइकै ।
०८४--०४--- उदय-सैल सोहैं सुन्दर कुँवर, जोहैं,
०८४--०४--- मानौ भानु भोर भूरि किरनि छिपाइकै ॥
०८४--०५--- कौतुक कोलाहल निसान-गान पुर, नभ
०८४--०५--- बरषत सुमन बिमान रहे छाइकै ।
०८४--०५--- हित-अनहित, रत-बिरत बिलोकि बाल,
०८४--०५--- प्रेम-मोद-मगन जनम-फल पाइकै ॥
०८४--०६--- राजाकी रजाइ पाइ सचिव-सहेली धाइ,
०८४--०६--- सतानन्द ल्याए सिय सिबिका चढ़ाइकै ।
०८४--०६--- रुप-दीपिका निहारि मृग-मृगी नर-नारि,
०८४--०६--- बिथके बिलोचन-निमेषै बिसराइकै ॥
०८४--०७--- हानि, लाहु, अनख, उछाहु, बाहुबल कहि
०८४--०७--- बन्दि बोले बिरद अकस उपजाइकै ।
०८४--०७--- दीप दीपके महीप आए सुनि पैज पन,
०८४--०७--- कीजै पुरुषारथको अवसर भौ आइकै ॥
०८४--०८--- आनाकानी, कण्ठ-हँसी मुँहा-चाही होन लगी,
०८४--०८--- देखि दसा कहत बिदेह बिलखाइकै ।
०८४--०८--- घरनि सिधारिए, सुधारिए आगिलो काज,
०८४--०८--- पूजि पूजि धनु कीजै बिजय बजाइकै ॥
०८४--०९--- जनक-बचन छुए बिरवा लजारु के से
०८४--०९--- बीर रहे सकल सकुचि सिर नाइकै ।
०८४--०९--- तुलसी लषन माषे, रोषे, राखे रामरुख
०८४--०९--- भाषे मृदु परुष सुभायन रिसाइकै ॥
०८५--०१--- भूपति बिदेह कही नीकियै जो भई है ।
०८५--०१--- बड़े ही समाज आजु राजनिकी लाज-पति
०८५--०१--- हाँकि आँक एक ही पिनाक छीनि लई है ॥
०८५--०२--- मेरो अनुचित न कहत लरिकाई-बस,
०८५--०२--- पन परमिति और भाँति सुनि गई है ।
०८५--०२--- नतरु प्रभु-प्रताप उतरु चढ़ाय चाप
०८५--०२--- देतो पै देखाइ बल, फल, पापमई है ॥
०८५--०३--- भूमिकै हरैया उखरैया भूमिधरनिके,
०८५--०३--- बिधि बिरचे प्रभाउ जाको जग जई है ।
०८५--०३--- बिहँसि हिये हरषि हटके लषन राम,
०८५--०३--- सोहत सकोच सील नेह नारि नई है ॥
०८५--०४--- सहमी सभा सकल, जनक भए बिकल,
०८५--०४--- राम लखि कौसिक असीस-आग्या दई है ।
०८५--०४--- तुलसी सुभाय गुरुपाँय लागि रघुराज
०८५--०४--- ऋषिराजकी रजाइ माथे मानि लई है ॥
०८६--०१--- सोचत जनक पोच पेच परि गई है ।
०८६--०१--- जोरि कर कमल निहोरि कहैं कौसिकसों,
०८६--०१--- आयसु भौ रामको सो मेरे दुचितई है ॥
०८६--०२--- बान, जातु-धानपति, भूप दीप सातहूके,
०८६--०२--- लोकप बिलोकत पिनाक भूमि लई है ।
०८६--०२--- जोतिलिङ्ग कथा सुनि जाको अंत पाये बिनु
०८६--०२--- आए बिधि हरि हारि सोई हाल भई है ॥
०८६--०३--- आपुही बिचारिए, निहारिए सभाकी गति,
०८६--०३--- बेद-मरजाद मानौ हेतुबाद हई है ।
०८६--०३--- इन्हके जितैहैं मन सोभा अधिकानी तन,
०८६--०३--- मुखनकी सुखमा सुखद सरसई है ॥
०८६--०४--- रावरो भरोसो बल, कै है कोऊ कियो छल,
०८६--०४--- कैधों कुलको प्रभाव, कैधों लरिकई है ?
०८६--०४--- कन्या, कल कीरति, बिजय बिस्वकी बटोरि
०८६--०४--- कैधों करतार इन्हहीको निर्मई है ॥
०८६--०५--- पनको न मोह, न बिसेष चिन्ता सीताहूकी,
०८६--०५--- लुनिहै पै सोई सोई जोई जेहि बई है ।
०८६--०५--- रहै रघुनाथकी निकाई नीकी नीके नाथ,
०८६--०५--- हाथ सो तिहारे करतूति जाकी नई है ॥
०८६--०६--- कहि साधु साधु गाधि-सुवन सराहे राउ,
०८६--०६--- महाराज! जानि जिय ठीक भली दई है।
०८६--०६--- हरषै लखन, हरषाने बिलखाने लोग,
०८६--०६--- तुलसी मुदित जाको राजा राम जई है ॥
०८७--०१--- सुजन सराहैं जो जनक बात कही है ।
०८७--०१--- रामहि सोहानी जानि, मुनिमनमानी सुनि,
०८७--०१--- नीच महिपावली दहन बिनु दही है ॥
०८७--०२--- कहैं गाधिनन्दन मुदित रघुनन्दनसों,
०८७--०२--- नृपगति अगह, गिरा न जाति गही है ।
०८७--०२--- देखे-सुने भूपति अनेक झूठे झूठे नाम,
०८७--०२--- साँचे तिरहुतिनाथ, साखि देति मही है ॥
०८७--०३--- रागौउ बिराग, भोग जोग जोगवत मन,
०८७--०३--- जोगी जागबलिक प्रसाद सिद्धि लही है ।
०८७--०३--- ताते न तरनितें न सीरे सुधाकरहू तें,
०८७--०३--- सहज समाधि निरुपाधि निरबही है ॥
०८७--०४--- ऐसेउ अगाध बोध रावरे सनेह-बस,
०८७--०४--- बिकल बिलोकति, दुचितई सही है ।
०८७--०४--- कामधेनु-कृपा हुलसानी तुलसीस उर,
०८७--०४--- पन-सिसु हेरि, मरजाद बाँधी रही है ॥
०८८--०१--- ऋषिराज राजा आजु जनक समान को ?
०८८--०१--- आपु यहि भाँति प्रीति सहित सराहित,
०८८--०१--- रागी औ बिरागी बड़भागी ऐसो आन को ?॥
०८८--०२--- भूमि-भोग करत अनुभवत जोग-सुक
०८८--०२--- मुनि-मन-अगम अलख गति जान को ?
०८८--०२--- गुर-हर-पद-नेहु, गेह बसि भौ बिदेह,
०८८--०२--- अगुन-सगुन-प्रभु-भजन-सयान को ?॥
०८८--०३--- कहनि रहनि एक, बिरति बिबेक नीति,
०८८--०३--- बेद-बुध-सम्मत पथीन निरबानको ?
०८८--०३--- गाँठि बिनु गुनकी कठिन जड़-चेतनकी,
०८८--०३--- छोरी अनायास, साधु सोधक अपान को ॥
०८८--०४--- सुनि रघुबीरकी बचन-रचनाकी रीति,
०८८--०४--- भयो मिथिलेस मानो दीपक बिहानको ।
०८८--०४--- मिट्यो महामोह जीको, छूट्यो पोच सोच सीको,
०८८--०४--- जान्यो अवतार भयो पुरुष पुरानको ॥
०८८--०५--- सभा, नृप, गुर, नर-नारि पुर, नभ सुर,
०८८--०५--- सब चितवत मुख करुनानिधानको ।
०८८--०५--- एकै एक कहत प्रगट एक प्रेम-बस,
०८८--०५--- तुलसीस तोरिये सरासन इसानको ॥
०८९--राग--- मारु
०८९--०१--- सुनो भैया भूप सकल दै कान ।
०८९--०१--- बज्ररेख गजदसन जनक-पन बेद-बिदित, जग जान ॥
०८९--०२--- घोर कठोर पुरारि-सरासन, नाम प्रसिद्ध पिनाकु ।
०८९--०२--- जो दसकण्ठ दियो बाँवों, जेहि हर-गिरि कियो है मनाकु ॥
०८९--०३--- भूमि-भाल भ्राजत, न चलत सो, ज्यों बिरञ्चिको आँकु ।
०८९--०३--- धनु तोरै सोई बरै जानकी, राउ होइ कि राँकु ॥
०८९--०४--- सुनि आमरषि उठे अवनीपति, लगै बचन जनु तीर ।
०८९--०४--- टरै न चाप, करैं अपनी सी महा महा बलधीर ॥
०८९--०५--- नमित-सीस सोचहिं सलज्ज सब श्रीहत भए सरीर।
०८९--०५--- बोले जनक बिलोकि सीय तन दुखित सरोष अधीर ॥
०८९--०६--- सप्त दीप नव खण्ड बूमिके भूपतिबृन्द जुरे ।
०८९--०६--- बड़ो लाभ कन्या-कीरतिको, जहँ-तहँ महिप मुरे ॥
०८९--०७--- डग्यौ न धनु, जनु बीर-बिगत महि, किधौं कहुँ सुभट दुरे ।
०८९--०७--- रोषे लखन बिकट भृकुटी करि, भुज अरु अधर फुरे ॥
०८९--०८--- सुनहु भानुकुल-कमल-भानु ! जो तव अनुसासन पावौं ।
०८९--०८--- का बापुरो पिनाकु, मेलि गुन मन्दर मेरु नवावौं ॥
०८९--०९--- देखौ निज किङ्करको कौतुक, क्यों कोदण्ड चढ़ावौं ।
०८९--०९--- लै धावौं, भञ्जौं मृनाल, ज्यों, तौ प्रभु-अनुग कहावौं ॥
०८९--१०--- हरषै पुर-नर-नारि, सचिव, नृप कुँवर कहे बर बैन ।
०८९--१०--- मृदु मुसुकाइ राम बरज्यौ प्रिय बन्धु नयनकी सैन ॥
०८९--११--- कौसिक कह्यो, उठहु रघुनन्दन, जगबन्दन, बलाइन ।
०८९--११--- तुलसिदास प्रभु चले मृगपति ज्यौं निज भगतनि सुखदैन ॥
०९०--०१--- जबहिं सब नृपति निरास भए ।
०९०--०१--- गुरुपद-कमल बन्दि रघुपति तब चाप-समीप गए ॥
०९०--०२--- स्याम-तामरस-दाम-बरन बपु, उर-भुज-नयन बिसाल ।
०९०--०२--- पीत बसन कटि, कलित कण्ठ सुन्दर सिन्धुर-मनिपाल ॥
०९०--०३--- कल कुण्डल, पल्लव प्रसून सिर चारु चौतनी लाल ।
०९०--०३--- कोटि-मदन-छबि-सदन बदन-बिधु, तिलक मनोहर भाल ॥
०९०--०४--- रुप अनूप बिलोकत सादर पुरजन राजसमाज ।
०९०--०४--- लषन कह्यो थिर होहु धरनिधरु, धरनि, धरनिधर आज ॥
०९०--०५--- कमठ, कोल, दिग-दन्ति सकल अँग सजग करहु प्रभु-काज ।
०९०--०५--- चहत चपरि सिव-चाप चढ़ावन दसरथको जुबराज ॥
०९०--०६--- गहि करतल, मुनि-पुलक सहित, कौतुकहि, उठाइ लियो ।
०९०--०६--- नृपगन-मुखनि समेत नमित करि सजि सुख सबहि जियो ॥
०९०--०७--- आकरष्यो सिय-मन समेत हरि, हरष्यो जनक-हियो ।
०९०--०७--- भञ्ज्यो भृगुपति-गरब सहित, तिहुँ लोक-बिमोह कियो ॥
०९०--०८--- भयो कठिन कोदण्ड-कोलाहल प्रलय-पयोद समान ।
०९०--०८--- चौङ्के सिव, बिरञ्चि, दिसिनायक, रहे मूँदि कर कान ॥
०९०--०९--- सावधान ह्वै चढ़े बिमाननि चले बजाइ निसान ।
०९०--०९--- उमगि चल्यौ आनन्द नगर, नभ जयधुनि, मङ्गलगान ॥
०९०--१०--- बिप्र-बचन सुनि सुखी सुआसिनि चलीं जानकिहि ल्याइ ।
०९०--१०--- कुँवर निरखि, जयमाल मेलि उर कुँवरि रही सकुचाइ ॥
०९०--११--- बरषहिं सुमन, असीसहिं सुर-मुनि, प्रेम न हृदय समाइ ।
०९०--११--- सीय-रामकी सुन्दरतापर तुलसिदास बलि जाइ ॥
०९१--राग--- मलार
०९१।०१--- जब दोउ दसरथ-कुँवर बिलोके ।
०९१।०१--- जनक नगर नर-नारि मुदित मन निरखि नयन पल रोके ॥
०९१।०२--- बय किसोर, घन-तड़ित-बरन तनु नखसिख अंग लोभारे ।
०९१।०२--- दै चित, कै हित, लै सब छबि-बित बिधि निज हाथ सँवारे ॥
०९१।०३--- सङ्कट नृपहि, सोच अति सीतहि, भूप सकुचि सिर नाए ।
०९१।०३--- उठे राम रघुकुल-कुल-केहरि, गुर-अनुसासन पाए ॥
०९१।०४--- कौतुक ही कोदण्ड खण्डि प्रभु, जय अरु जानकि पाई ।
०९१।०४--- तुलसिदास कीरति रघुपतिकी मुनिन्ह तिहूँ पुर गाई ॥
०९२--राग--- टोड़ी
०९२--०१--- मुनि-पदरेनु रघुनाथ माथे धरी है ।
०९२--०१--- रामरुख निरखि लषनकी रजाइ पाइ,
०९२--०१--- धरा धरा-धरनि सुसावधान करी है ॥
०९२--०२--- सुमिरि गनेस-गुर, गौरि-हर भूमिसुर,
०९२--०२--- सोचत सकोचत सकोची बानि धरी है ।
०९२--०२--- दीनबन्धु, कृपसिन्धु साहसिक, सीलसिन्धु,
०९२--०२--- सभाको सकोच कुलहूकी लाज परी है ॥
०९२--०३--- पेखि पुरुषारथ, परखि पन, पेम, नेम,
०९२--०३--- सिय-हियकी बिसेषि बड़ी खरभरी है ।
०९२--०३--- दाहिनोदियो पिनाकु, सहमि भयो मनाकु,
०९२--०३--- महाब्याल बिकल बिलोकि जनु जरी है ॥
०९२--०४--- सुर हरषत, बरषत फूल बार बार,
०९२--०४--- सिद्ध-मुनि कहत, सगुन, सुभ घरी है ।
०९२--०४--- राम बाहु-बिटप बिसाल बौण्ड़ी देखियत,
०९२--०४--- जनक-मनोरथ कलपबेलि फरी है ॥
०९२--०५--- लख्यो न चढ़ावत, न तानत, न तोरत हू,
०९२--०५--- घोर धुनि सुनि सिवकी समाधि टरी है ।
०९२--०५--- प्रभुके चरित चारु तुलसी सुनत सुख,
०९२--०५--- एक ही सुलाभ सबहीकी हानि हरी है ॥
०९३--राग--- सारङ्ग
०९३--०१--- राम कामरिपु-चाप चढ़ायो ।
०९३--०१--- मुनिहि पुलक, आनन्द नगर, नभ निरखि निसान बजायो ॥
०९३--०२--- जेहि पिनाक बिनु नाक किए नृप, सबहि बिषाद बढ़ायो ।
०९३--०२--- सोइ प्रभु कर परसत टुट्यो, जनु हुतो पुरारि पढ़ायो ॥
०९३--०३--- पहिराई जयमाल जानकी, जुबतिन्ह मङ्गल गायो ।
०९३--०३--- तुलसी सुमन बरषि हरषे सुर, सुजस तिहू पुर छायो ॥
०९४--राग--- टोड़ी
०९४--०१--- जनक मुदित मन टूटत पिनाकके ।
०९४--०१--- बाजे हैं बधावने, सुहावने मङ्गल-गान,
०९४--०१--- भयो सुख एकरस रानी राजा राँकके ॥
०९४--०२--- दुन्दुभी बजाइ, गाइ हरषि बरषि फूल,
०९४--०२--- सुरगन नाचैं नाच नायकहू नाकके ।
०९४--०२--- तुलसी महीस देखे दिन रजनीस जैसे,
०९४--०२--- सूने परे सून-से मनो मोटाए आँकके ॥
०९५--०१--- लाज तोरि, साजि साज राजा राढ़ रोषे हैं ।
०९५--०१--- कहा भौ चढ़ाए चाप, ब्याह ह्वै है बड़े खाए,
०९५--०१--- बोलैं, खोलैं सेल, असि चमकत चोखे हैं ॥
०९५--०२--- जानि पुरजन त्रसे, धीर दै लषन हँसे,
०९५--०२--- बल इनको पिनाक नीके नापे-जोखे हैं ।
०९५--०२--- कुलहि लजावैं बाल, बालिस बजावैं गाल,
०९५--०२--- कैधौं कूर कालबस, तमकि त्रिदोषे हैं ॥
०९५--०३--- कुँवर चढ़ाई भौंहैं, अब को बिलोकै सोहैं,
०९५--०३--- जहँ तहँ भे अचेत, खेतके-से धोखे हैं ।
०९५--०३--- देखे नर-नारि कहैं, साग खाइ जाए माइ,
०९५--०३--- बाहु पीन पाँवरनि पीना खाइ पोखे हैं ॥
०९५--०४--- प्रमुदित-मन लोक-कोक-नद कोकगन,
०९५--०४--- रामके प्रताप-रबि सोच-सर सोखे हैं ।
०९५--०४--- तबके देखैया तोषे, तबके लोगनि भले,
०९५--०४--- अबके सुनैया साधु तुलसिहु तोषे हैं ॥
०९६--०१--- जयमाल जानकी जलजकर लई है ।
०९६--०१--- सुमन सुमङ्गल सगुनकी बनाइ मञ्जु,
०९६--०१--- मानहु मदनमाली आपु निरमई है ॥
०९६--०२--- राज-रुख लखि गुर भूसुर सुआसिनिन्ह,
०९६--०२--- समय-समाजकी ठवनि भली ठई है ।
०९६--०२--- चलीं गान करत, निसान बाजे गहगहे,
०९६--०२--- लहलहे लोयन सनेह सरसई है ॥
०९६--०३--- हनि देव दुन्दुभी हरषि बरषत फूल,
०९६--०३--- सफल मनोरथ भौ, सुख-सुचितई है ।
०९६--०३--- पुरजन-परिजन, रानी-राउ प्रमुदित,
०९६--०३--- मनसा अनूप राम-रुप-रङ्ग रई है ॥
०९६--०४--- सतानन्द-सिष सुनि पाँय परि पहिराई,
०९६--०४--- माल सिय पिय-हिय, सोहत सो भई है ।
०९६--०४--- मानसतें निकसि बिसाल सुतमालपर,
०९६--०४--- मानहुँ मरालपाँति बैठी बनि गई है ॥
०९६--०५--- हितनिके लाहकी, उछाहकी, बिनोद-मोद,
०९६--०५--- सोभाकी अवधि नहि अब अधिकई है ।
०९६--०५--- याते बिपरीत अनहितनकी जानि लीबी
०९६--०५--- गति, कहै प्रगट, खुनिस खासी खई है ॥
०९६--०६--- निज निज बेदकी सप्रेम जोग-छेम-मई,
०९६--०६--- मुदित असीस बिप्र बिदुषनि दई है ।
०९६--०६--- छबि तेहि कालकी कृपालु सीतादूलहकी
०९६--०६--- हुलसति हिये तुलसीके नित नई है ॥
०९७--राग--- केदारा
०९७--०१--- लेहु री! लोचननिको लाहु ।
०९७--०१--- कुँवर सुन्दर साँवरो, सखि सुमुखि ! सादर चाहु ॥
०९७--०२--- खण्डि हर-कोदण्ड ठाढ़े, जानु-लम्बित-बाहु ।
०९७--०२--- रुचिर उर जयमाल राजति, देत सुख सब काहु ॥
०९७--०३--- चितै चित-हित-सहित नख-सिख अंग-अंग निबाहु ।
०९७--०३--- सुकृत निज, सियराम-रुप, बिरञ्चि-मतिहि सराहु ॥
०९७--०४--- मुदित मन बरबदन-सोभा उदित अधिक उछाहु ।
०९७--०४--- मनहु दूरि कलङ्क करि ससि समर सूद्यो राहु ॥
०९७--०५--- नयन सुखमा-अयन हरत सरोज-सुन्दरताहु ।
०९७--०५--- बसत तुलसीदास-उरपुर जानकीकौ नाहु ॥
०९८--राग--- सारङ्ग
०९८--०१--- भूपके भागकी अधिकाई ।
०९८--०१--- टूट्यो धनुष, मनोरथ पूज्यौ, बिधि सब बात बनाई ॥
०९८--०२--- तबतें दिन-दिन उदय जनकको जबतें जानकी जाई ।
०९८--०२--- अब यहि ब्याह सफल भयो जीवन, त्रिभुवन बिदित बड़ाई ॥
०९८--०३--- बारहि बार पहुनई ऐहैं राम लषन दोउ भाई ।
०९८--०३--- एहि आनन्द मगन पुरबासिन्ह देहदसा बिसराई ॥
०९८--०४--- सादर सकल बिलोकत रामहि, काम-कोटि छबि छाई ।
०९८--०४--- यह सुख समौ समाज एक मुख क्यों तुलसी कहै गाई ॥
०९९--०१--- विवाहकी तैयारी
०९९--राग--- सोरठ
०९९--०१--- मेरे बालक कैसे धौं मग निवहहिङ्गे ?
०९९--०१--- भूख, पियास, सीत, श्रम सकुचनि क्यों कौसिकहि कहहिङ्गे ॥
०९९--०२--- को भोर ही उबटि अन्हवैहै, काढ़ि कलेऊ दैहै?
०९९--०२--- को भूषन पहिराइ निछावरि करि लोचन-सुख लैहै ?॥
०९९--०३--- नयन निमेषनि ज्यों जोगवैं नित पितु-परिजन-महतारी ।
०९९--०३--- ते पठए ऋषि साथ निसाचर मारन, मख रखवारी ॥
०९९--०४--- सुन्दर सुठि सुकुमार सुकोमल काकपच्छ-धर दोऊ ।
०९९--०४--- तुलसी निरखि हरषि उर लैहौं बिधि ह्वैहै दिन सोऊ?॥
१००--०१--- ऋषि नृप-सीस ठगौरी-सी डारी ।
१००--०१--- कुलगुर, सचिव, निपुन नेवनि अवरेब न समुझि सुधारी ॥
१००--०२--- सिरिस-सुमन-सुकुमार कुँवर दोउ, सूर सरोष सुरारी ।
१००--०२--- पठए बिनहि सहाय पयादेहि केलि-बान-धनुधारी ॥
१००--०३--- अति सनेह-कातरि माता कहै, सुनि सखि ! बचन दुखारी ।
१००--०३--- बादि बीर-जननी-जीवन जग, छत्रि-जाति-गति भारी ॥
१००--०४--- जो कहिहै फिरे राम-लखन घर करि मुनिमख-रखवारी ।
१००--०४--- सो तुलसी प्रिय मोहिं लागिहै ज्यौं सुभाय सुत चारी ॥
१०१।०१--- जबतें लै मुनि सङ्ग सिधाए ।
१०१।०१--- राम लखनके समाचार, सखि तबतें कछुअ न पाए ॥
१०१।०२--- बिनु पानही गमन, फल भोजन, भूमि सयन तरुछाहीं ।
१०१।०२--- सर-सरिता जलपान, सिसुनके सँग सुसेवक नाहीं ॥
१०१।०३--- कौसिक परम कृपालु परमहित, समरथ, सुखद, सुचाली ।
१०१।०३--- बालक सुठि सुकुमार सकोची, समुझि सोच मोहि आली ॥
१०१।०४--- बचन सप्रेम सुमित्राके सुनि सब सनेह-बस रानी ।
१०१।०४--- तुलसी आइ भरत तेहि औसर कही सुमङ्गल बानी ॥
१०२--०१--- सानुज भरत भवन उठि धाए ।
१०२--०१--- पितु-समीप सब समाचार सुनि, मुदित मातु पहँ आए ॥
१०२--०२--- सजल नयन, तनु पुलक, अधर फरकत लखि प्रीति सुहाई ।
१०२--०२--- कौसल्या लिये लाइ हृदय, बलि कहौ, कछु है सुधि पाई ॥
१०२--०३--- सतानन्द उपरोहित अपने तिरहुति-नाथ पठाए ।
१०२--०३--- खेम कुसल रघुबीर-लषनकी ललित पत्रिका ल्याए ॥
१०२--०४--- दलि ताडुका, मारि निसिचर, मख राखि, बिप्र-तिय तारी ।
१०२--०४--- दै बिद्या लै गये जनकपुर, हैं गुरु-सङ्ग सुखारी ॥
१०२--०५--- करि पिनाक-पन, सुता-स्वयम्बर सजि, नृप-कटक बटोर्यो ।
१०२--०५--- राजसभा रघुबर मृनाल ज्यों सम्भु-सरासन तोर्यो ॥
१०२--०६--- यों कहि सिथिल-सनेह बन्धु दोउ, अंब अंक भरि लीन्हें ।
१०२--०६--- बार-बार मुख चूमि, चारु मनि-बसन निछावरि कीन्हें ॥
१०२--०७--- सुनत सुहावनि चाह अवध घर घर आनन्द बधाई ।
१०२--०७--- तुलसिदास रनिवास रहस-बस, सखी सुमङ्गल गाई ॥
१०३--०१--- रागकान्हरा
१०३--०१--- राम-लषन सुधि आई बाजै अवध बधाई ।
१०३--०१--- ललित लगन लिखि पत्रिका,
१०३--०१--- उपरोहितके कर जनक-जनेस पठाई ॥
१०३--०२--- कन्या भूप बिदेहकी रुपकी अधिकाई,
१०३--०२--- तासु स्वयम्बर सुनि सब आए
१०३--०२--- देस देसके नृप चतुरङ्ग बनाई ॥
१०३--०३--- पन पिनाक, पबि मेरु तें गुरुता कठिनाई ।
१०३--०३--- लोकपाल, महिपाल, बान बानैत,
१०३--०३--- दसानन सके न चाप चढ़ाई ॥
१०३--०४--- तेहि समाज रघुराजके मृगराज जगाई ।
१०३--०४--- भञ्जि सरासन सम्भुको जग जय,
१०३--०४--- कल कीरति, तिय तियमनि सिय पाई ॥
१०३--०५--- पुर घर घर आनन्द महा सुनि चाह सुहाई ।
१०३--०५--- मातु मुदित मङ्गल सजैं,
१०३--०५--- कहैं मुनि प्रसाद भये सकल सुमङ्गल, माई ॥
१०३--०६--- गुरु-आयसु मण्डप रच्यो, सब साज सजाई ।
१०३--०६--- तुलसिदास दसरथ बरात सजि,
१०३--०६--- पूजि गनेसहि चले निसान बजाई ॥
१०४--राग--- केदारा
१०४--०१--- मनमें मञ्जु मनोरथ हो, री !
१०४--०१--- सो हर-गौरि-प्रसाद एकतें, कौसिक, कृपा चौगुनो भो, री !॥
१०४--०२--- पन-परिताप, चाप-चिन्ता निसि, सोच-सकोच-तिमिर नहिं थोरी ।
१०४--०२--- रबिकुल-रबि अवलोकि सभा-सर हितचित-बारिज-बन बिकसोरी ॥
१०४--०३--- कुँवर-कुँवरि सब मङ्गल मूरति, नृप दोउ धरमधुरधर धोरी ।
१०४--०३--- राजसमाज भूरि-भागी, जिन लोचन लाहु लह्यो एक ठौरी ॥
१०४--०४--- ब्याह-उछाह राम-सीताको सुकृत सकेलि बिरञ्चि रच्यो, री ।
१०४--०४--- तुलसिदास जानै सोइ यह सुख जेहि उर बसति मनोहर जोरी ॥
१०५--०१--- राजति राम-जानकी-जोरी ।
१०५--०१--- स्याम-सरोज जलद सुन्दर बर, दुलहिनि तड़ित-बरन तनु गोरी ॥
१०५--०२--- ब्याह समय सोहति बितानतर, उपमा कहुँ न लहति मति मोरी ।
१०५--०२--- मनहुँ मदन मञ्जुल मण्डपमहँ छबि-सिँगार-सोभा इक ठौरी ॥
१०५--०३--- मङ्गलमय दोउ, अंग मनोहर, ग्रथित चूनरी पीत पिछोरी ।
१०५--०३--- कनककलस कहँदेत भाँवरी, निरखि रुप सारद भै भोरी ॥
१०५--०४--- इत बसिष्ठ मुनि, उतहि सतानँद, बंस बखान करैं दोउ ओरी ।
१०५--०४--- इत अवधेस, उतहि मिथिलापति, भरत अंक सुखसिन्धु हिलोरी ॥
१०५--०५--- मुदित जनक, रनिवास रहसबस, चतुर नारि चितवहिं तृन तोरी ।
१०५--०५--- गान-निसान-बेद-धुनि सुनि सुर बरसत सुमन, हरष कहै कोरी?॥
१०५--०६--- नयननको फल पाइ प्रेमबस सकल असीसत ईस निहोरी ।
१०५--०६--- तुलसी जेहि आनन्दमगन मन, क्यों रसना बरनै सुख सो री ॥
१०६--०१--- दूलह राम, सीय दुलही री
१०६--०१--- घन-दामिनि बर बरन, हरन-मन सुन्दरता नखसिख निबही, री ॥
१०६--०२--- ब्याह-बिभूषन-बसन-बिभूषित, सखि अवली लखि ठगि सी रही, री ।
१०६--०२--- जीवन-जनम-लाहु, लोचन-फल है इतनोइ, लह्यो आजु सही, री ॥
१०६--०३--- सुखमा सुरभि सिँगार-छीर दुहि मयन अमियमय कियो है दही, री ।
१०६--०३--- मथि माखन सिय-राम सँवारे, सकल भुवन छबि मनहु मही, री ॥
१०६--०४--- तुलसिदास जोरी देखत सुख सोभा अतुल, न जाति कही, री ।
१०६--०४--- रुप-रासि बिरची बिरञ्चि मनो, सिला लवनि रति-काम लही, री ॥
१०७--०१--- जैसे ललित लषन लाल लोने ।
१०७--०१--- तैसिये ललित उरमिला, परसपर लषत सुलोचन कोने ॥
१०७--०२--- सुखमासार सिगाँरसार करि कनक रचे हैं तिहि सोने ।
१०७--०२--- रुपप्रेम-परमिति न परत कहि, बिथकि रही मति मौने ॥
१०७--०३--- सोभा सील-सनेह सोहावनो, समौ केलिगृह गौने ।
१०७--०३--- देखि तियनिके नयन सफल भये, तुलसीदासहूके होने ॥
१०८--राग--- बिलावल
१०८--०१--- जानकी-बर सुन्दर, माई ।
१०८--०१--- इन्द्रनील-मनि-स्याम सुभग, अँग-अंग मनोजनि बहु छबि छाई ॥
१०८--०२--- अरुन चरन, अंगुली मनोहर, नख दुतिवन्त, कछुक अरुनाई ।
१०८--०२--- कञ्जदलनिपर मनहु भौम दस बैठे अचल सुसदसि बनाई ॥
१०८--०३--- पीन जानु, उर चारु, जटित मनि नूपुर पद कल मुखर सोहाई ।
१०८--०३--- पीत पराग भरे अलिगन जनु जुगल जलज लखि रहे लोभाई ॥
१०८--०४--- किङ्किनि कनक कञ्ज अवली मृदु मरकत सिखर मध्य जनु जाई ।
१०८--०४--- गई न उपर, सभीत नमित मुख, बिकसि चहूँ दिसि रही लोनाई ॥
१०८--०५--- नाभि गँभीर, उदर रेखा बर, उर भृगु-चरन-चिन्ह सुखदाई ।
१०८--०५--- भुज प्रलम्ब भूषन अनेक जुत, बसन पीत सोभा अधिकाई ॥
१०८--०६--- जग्योपबीत बिचित्र हेममय, मुक्तामाल उरसि मोहि भाई ।
१०८--०६--- कन्द-तड़ित बिच जनु सुरपति धनु रुचिर बलाक पाँति चलि आई ॥
१०८--०७--- कम्बु कण्ठ चिबुकाधर सुन्दर, क्यों कहौं दसनन की रुचिराई ।
१०८--०७--- पदुमकोस महँ बसे बज्र मनो निज सँग तड़ित-अरुन-रुचि लाई ॥
१०८--०८--- नासिक चारु, ललित लोचन, भ्रकुटिल, कचनि अनुपम छबि पाई ।
१०८--०८--- रहे घेरि राजीव उभय मनो चञ्चरीक कछु हृदय डेराई ॥
१०८--०९--- भाल तिलक, कञ्चन किरीट सिर, कुण्डल लोल कपोलनि झाँई ।
१०८--०९--- निरखहिं नारि-निकर बिदेहपुर निमि नृपकी मरजाद मिटाई ॥
१०८--१०--- सारद-सेस-सम्भु निसि-बासर चिन्तत रुप, न हृदय समाई ।
१०८--१०--- तुलसिदास सठ क्यों करि बरनै यह छबि निगम नेति कह गाई ॥
१०९--०१--- अयोध्या-आगमन
१०९--राग--- कान्हरा
१०९--०१--- भुजनिपर जननी वारि-फेरि डारी ।
१०९--०१--- क्यों तोर्यो कोमल कर-कमलनि सम्भु-सरासन भारी? ॥
१०९--०२--- क्यों मारीच सुबाहु महाबल प्रबल ताडका मारी ?
१०९--०२--- मुनि-प्रसाद मेरे राम-लषनकी बिधि बड़ि करवर टारी ॥
१०९--०३--- चरनरेनु लै नयननि लावति, क्यों मुनिबधू उधारी ।
१०९--०३--- कहौधौं तात! क्यों जीति सकल नृप बरी है बिदेहकुमारी ॥
१०९--०४--- दुसह-रोष-मूरति भृगुपति अति नृपति-निकर खयकारी ।
१०९--०४--- क्यों सौम्प्यो सारङ्ग हारि हिय, करी है बहुत मनुहारी ॥
१०९--०५--- उमगि-उमगि आनन्द बिलोकति बधुन सहित सुत चारी ।
१०९--०५--- तुलसिदास आरती उतारति प्रेम-मगन महतारी ॥
११०--०१--- मुदित-मन आरती करैं माता ।
११०--०१--- कनक-बसन-मनि वारि-वारि करि पुलक प्रफुल्लित गाता ॥
११०--०२--- पालागनि दुलहियन सिखावति सरिस सासु सत-साता ।
११०--०२--- देहिं असीस ते बरिस कोटि लगि अचल होउ अहिबाता ॥
११०--०३--- राम सीय-छबि देखि जुबतिजन करहिं परसपर बाता ।
११०--०३--- अब जान्यो साँचहू सुनहु, सखि! कोबिद बड़ो बिधाता ॥
११०--०४--- मङ्गल-गान निसान नगर-नभ आनँद कह्यो न जाता ।
११०--०४--- चिरजीवहु अवधेस-सुवन सब तुलसिदास-सुखदाता ॥