१९६--०१--- अरण्यकाण्ड
१९६--०१--- भगवान का वन-विहार
१९७--राग--- मलार
१९७--०१--- देखे राम पथिक नाचत मुदित मोर ।
१९७--०१--- मानत मनहु सतड़ित ललित घन, धनु सुरधनु, गरजनि टँकोर ॥
१९७--०२--- कँपे कलाप बर बरहि फिरावत, गावत कल कोकिल-किसोर ।
१९७--०२--- जहँ जहँ प्रभु बिचरत, तहँ तहँ सुख, दण्डकबन कौतुक न थोर ॥
१९७--०३--- सघन छाँह-तम रुचिर रजनि भ्रम, बदन-चन्द चितवत चकोर ।
१९७--०३--- तुलसी मुनि खग-मृगनि सराहत, भए हैं सुकृत सब इन्हकी ओर ॥
१९८--राग--- कल्याण
१९८--०१--- सुभग सरासन सायक जोरे ।
१९८--०१--- खेलत राम फिरत मृगया बन, बसति सो मृदु मूरति मन मोरे ॥
१९८--०२--- पीत बसन कटि, चारु चारि सर, चलत कोटि नट सो तृन तोरे ।
१९८--०२--- स्यामल तनु स्रम-कन राजत, ज्यों नव घन सुधा-सरोवर खोरे ॥
१९८--०३--- ललित कन्ध, बर भुज, बिसाल उर, लेहिं कण्ठ-रेखैं चित चोरे ।
१९८--०३--- अवलोकत मुख देत परम सुख, लेत सरद-ससिकी छबि छोरे ॥
१९८--०४--- जटा मुकुट सिर, सारस-नयननि गौहैं तकत सुभौंह सकोरे ।
१९८--०४--- सोभा अमित समाति न कानन, उमगि चली चहुँ दिसि मिति फोरे ॥
१९८--०५--- चितवत चकित कुरङ्ग-कुरङ्गिनि, सब भए मगन मदनके भोरे ।
१९८--०५--- तुलसिदास प्रभु बान न मोचत, सहज सुभाय प्रेमबस थोरे ॥
१९९--०१--- मारीच-वध
१९९--राग--- सोरठ
१९९--०१--- बैठे हैं राम-लषन अरु सीता ।
१९९--०१--- पञ्चबटी बर परनकुटी तर, कहैं कछु कथा पुनीता ॥
१९९--०२--- कपट-कुरङ्ग कनकमनिमय लखि प्रियसों कहति हँसि बाला ।
१९९--०२--- पाए पालिबे जोग मञ्जु मृग, मारेहु मञ्जुल छाला ॥
१९९--०३--- प्रिया-बचन सुनि बिहँसि प्रेमबस गवहिं चाप-सर लीन्हें ।
१९९--०३--- चल्यो भाजि, फिरि फिरि चितवत मुनिमख-रखवारे चीन्हें ॥
१९९--०४--- सोहति मधुर मनोहर मूरति हेम-हरिनके पाछे ।
१९९--०४--- धावनि, नवनि, बिलोकनि, बिथकनि बसै तुलसी उर आछे ॥
२००--राग--- कल्याण
२००--०१--- कर सर-धनु, कटि रुचिर निषङ्ग ।
२००--०१--- प्रिया-प्रीति-प्रेरित बन-बीथिन्ह बिचरत कपट-कनक-मृग सङ्ग ॥
२००--०२--- भुज बिसाल, कमनीय कन्ध-उर, स्रम-सीकर सोहैं साँवरे अंग ।
२००--०२--- मनु मुकुता मनि मरकत गिरिपर लसत ललित रबि-किरनि प्रसङ्ग ॥
२००--०३--- नलिन नयन, सिर जटा-मुकुट, बिच सुमन-माल मनु सिव-सिर गङ्ग ।
२००--०३--- तुलसिदास ऐसी मूरति की बलि, छबि बिलोकि लाजैं अमित अनङ्ग ॥
२०१--राग--- केदारा
२०१--०१--- राघव, भावति मोहि बिपिनकी बीथिन्ह धावनि ।
२०१--०१--- अरुन-कञ्ज-बरन-चरन सोकहरन, अंकुस-कुलिस-
२०१--०१--- केतु-अंकित अवनि ॥
२०१--०२--- सुन्दर स्यामल अंग, बसन पीत सुरङ्ग, कटि निषङ्ग
२०१--०२--- परिकर मेरवनि ।
२०१--०२--- कनक-कुरङ्ग सङ्ग, साजे कर सर-चाप, राजिवनयन
२०१--०२--- इत उत चितवनि ॥
२०१--०३--- सोहत सिर मुकुट जटा-पटल-निकर, सुमन-लता
२०१--०३--- सहित रची बनवनि ।
२०१--०३--- तैसेई स्रम-सीकर रुचिर राजत मुख, तैसिए ललित
२०१--०३--- भ्रकुटिन्हकी नवनि ॥
२०१--०४--- देखत खग-निकर, मृग रवनिन्हजुत थकित बिसारि
२०१--०४--- जहाँ-तहाँकी भँवनि ।
२०१--०४--- हरि-दरसन-फल पायो है ग्यान बिमल, जाँचत भगति,
२०१--०४--- मुनि चाहत जवनि ॥
२०१--०५--- जिन्हके मन मगन भए हैं रस सगुन, तिन्हके लेखे
२०१--०५--- अगुन-मुकुति कवनि ।
२०१--०५--- श्रवन-सुख करनि, भवसरिता-तरनि, गावत तुलसिदास
२०१--०५--- कीरति पवनि ॥
२०२--राग--- सोरठ
२०२--०१--- रघुबर दूरि जाइ मृग मार्यो ।
२०२--०१--- लषन पुकारि, राम हरुए कहि, मरतहु बैर सँभार्यो ॥
२०२--०२--- सुनहु तात! कोउ तुम्हहि पुकारत प्राननाथकी नाईं ।
२०२--०२--- कह्यो लषन, हत्यो हरिन, कोपि सिय हठि पठयो बरिआईं ॥
२०२--०३--- बन्धु बिलोकि कहत तुलसी प्रभु भाई! भली न कीन्हीं ।
२०२--०३--- मेरे जान जानकी काहू खल छल करि हरि लीन्हीं ॥
२०३--०१--- सीता-हरण
२०३--०१--- आरत बचन कहति बैदेही ।
२०३--०१--- बिलपति भूरि बिसूरि दूरि गए मृग सँग परम सनेही ॥
२०३--०२--- कहे कटु बचन, रेख नाँघी मैं, तात छमा सो कीजै ।
२०३--०२--- देखि बधिक-बस राजमरालिनि, लषन लाल! छिनि लीजै ॥
२०३--०३--- बनदेवनि सिय कहन कहति यों, छल करि नीच हरी हौं ।
२०३--०३--- गोमर-कर सुरधेनु, नाथ! ज्यौं त्यौं परहाथ परी हौं ॥
२०३--०४--- तुलसिदास रघुनाथ-नाम-धुनि अकनि गीध धुकि धायो ।
२०३--०४--- पुत्रि पुत्रि! जनि डरहि, न जैहै नीचु, मीचु हौं आयो ॥
२०४--०१--- जटायु-वध
२०४--०१--- फिरत न बारहि बार प्रचार्यो ।
२०४--०१--- चपरि चोञ्च-चङ्गुल हय हति, रथ खण्ड खण्ड करि डार्यो ॥
२०४--०२--- बिरथ-बिकल कियो, छीन लीन्हि सिय, घन घायनि अकुलान्यो ।
२०४--०२--- तब असि काढ़ि, काटि पर, पाँवर लै प्रभु-प्रिया परान्यो ॥
२०४--०३--- रामकाज खगराज आजु लर्यो, जियत न जानकि त्यागी ।
२०४--०३--- तुलसिदास सुर-सिद्ध सराहत, धन्य बिहँद बड़भागी ॥
२०५--०१--- रामकी वियोग-व्यथा
२०५--०१--- हेमको हरिन हनि फिरे रघुकुल-मनि,
२०५--०१--- लषन ललित कर लिये मृगछाल ।
२०५--०१--- आश्रम आवत चले, सगुन न भए भले,
२०५--०१--- फरके बाम बाहु, लोचन बिसाल ॥
२०५--०२--- सरित-जल मलिन, सरनि सूखे नलिन,
२०५--०२--- अलि न गुञ्जत, कल कूजैं न मराल ।
२०५--०२--- कोलिनि-कोल-किरात जहाँ तहाँ बिखात,
२०५--०२--- बन न बिलोकि जात खग-मृग-माल ॥
२०५--०३--- तरु जे जानकी लाए, ज्याये हरि-करि-कपि,
२०५--०३--- हेरैं न हुँकरि, झरैं फल न रसाल ।
२०५--०३--- जे सुक-सारिका पाले, मातु ज्यों ललकि लाले,
२०५--०३--- तेऊ न पढ़त न पढ़ावैं मुनिबाल ॥
२०५--०४--- समुझि सहमे सुठि, प्रिया तौ न आई उठि,
२०५--०४--- तुलसी बिबरन परन-तृन-साल ।
२०५--०४--- औरे सो सब समाजु, कुसल न देखौं आजु,
२०५--०४--- गहबर हिय कहैं कोसलपाल ॥
२०६--०१--- आश्रम निरखि भूले, द्रुम न फले न फूले,
२०६--०१--- अलि-खग-मृग मानो कबहुँ न हे ।
२०६--०१--- मुनि न मुनिबधूटी, उजरी परनकुटी,
२०६--०१--- पञ्चबटी पहिचानि ठाढ़ेइ रहे ॥
२०६--०२--- उठी न सलिल लिए, प्रेम प्रमुदित हिए,
२०६--०२--- प्रिया न पुलकि प्रिय बचन कहे ।
२०६--०२--- पल्लव-सालन हेरी, प्रानबल्लभा न टेरी,
२०६--०२--- बिरह बिथकि लखि लषन गहे ॥
२०६--०३--- देखे रघुपति-गति बिबुध बिकल अति,
२०६--०३--- तुलसी गहन बिनु दहन दहे ।
२०६--०३--- अनुज दियो भरोसो, तौलों है सोचु खरो सो,
२०६--०३--- सिय-समाचार प्रभु जौलों न लहे ॥
२०७--राग--- सोरठ
२०७--०१--- जबहि सिय-सुधि सब सुरनि सुनाई ।
२०७--०१--- भए सुनि सजग, बिरहसरि पैरत थके थाह-सी पाई ॥
२०७--०२--- कसि तूनीर-तीर धनु-धर-धुर धीर बीर दोउ भाई ।
२०७--०२--- पञ्चबटी-गोदहि प्रनाम करि, कुटी दाहिनी लाई ॥
२०७--०३--- चले बूझत बन-बेलि-बिटप, खग-मृग, अलि-अवलि सुहाई ।
२०७--०३--- प्रभुकी दसा सो समौ कहिबेको कबि उर आह न आई ॥
२०७--०४--- रटनि अकनि पहिचानि गीध फिरे करुनामय रघुराई ।
२०७--०४--- तुलसी रामहि प्रिया बिसरि गई, सुमिरि सनेह-सगाई ॥
२०८--०१--- जटायुसे भेण्ट
२०८--०१--- मेरे एकौ हाथ न लागी ।
२०८--०१--- गयो बपु बीति बादि कानन ज्यों कलपलता दव दागी ॥
२०८--०२--- दसरथसों न प्रेम प्रतिपाल्यौ, हुतो जो सकल जग साखी ।
२०८--०२--- बरबस हरत निसाचर पतिसों हठि न जानकी राखी ॥
२०८--०३--- मरत न मैं रघुबीर बिलोके तापस बेष बनाए ।
२०८--०३--- चाहत चलन प्रान पाँवर बिनु सिय-सुधि प्रभुहि सुनाए ॥
२०८--०४--- बार-बार कर मीञ्जि, सीस धुनि गीधराज पछिताई ।
२०८--०४--- तुलसी प्रभु कृपालु तेहि औसर आइ गए दोउ भाई ॥
२०९--०१--- राघौ गीध गोद करि लीन्हों ।
२०९--०१--- नयन-सरोज सनेह-सलिल सुचि मनहु अरघजल दीन्हों ॥
२०९--०२--- सुनहु लषन! खगपतिहि मिले बन मैं पितु-मरन न जान्यौ ।
२०९--०२--- सहि न सक्यौ सो कठिन बिधाता, बड़ो पछु आजुहि भान्यौ ॥
२०९--०३--- बहु बिधि राम कह्यो तनु राखन, परम धीर नहि डोल्यौ ।
२०९--०३--- रोकि, प्रेम, अवलोकि बदन-बिधु, बचन मनोहर बोल्यौ ॥
२०९--०४--- तुलसी प्रभु झूठे जीवन लगि समय न धोखो लैहौं ।
२०९--०४--- जाको नाम मरत मुनिदुरलभ तुमहि कहाँ पुनि पैहौं ?॥
२१०--०१--- नीके कै जानत राम हियो हौं ।
२१०--०१--- प्रनतपाल, सेवक-कृपालु-चित, पितु पटतरहि दियो हौं ॥
२१०--०२--- त्रिजगजोनि-गत गीध, जनम भरि खाइ कुजन्तु जियो हौं ।
२१०--०२--- महाराज सुकृती-समाज सब-ऊपर आजु कियो हौं ॥
२१०--०३--- श्रवन बचन, मुख नाम, रुप चख, राम उछङ्ग लियो हौं ।
२१०--०३--- तुलसी मो समान बड़भागी को कहि सकै बियो हौं ॥
२११--०१--- मेरे जान तात कछू दिन जीजै ।
२११--०१--- देखिअ आपु सुवन-सेवासुख, मोहि पितुको सुख दीजै ॥
२११--०२--- दिब्य-देह, इच्छा-जीवन जग बिधि मनाइ मँगि लीजै ।
२११--०२--- हरि-हर-सुजस सुनाइ, दरस दै, लोग कृतारथ कीजै ॥
२११--०३--- देखि बदन, सुनि बचन-अमिय, तन रामनयन-जल भीजै ।
२११--०३--- बोल्यो बिहग बिहँसि रघुबर बलि, कहौं सुभाय, पतीजै ॥
२११--०४--- मेरे मरिबे सम न चारि फल, होंहि तौ, क्यों न कहीजै
२११--०४--- तुलसी प्रभु दियो उतरु मौन हीं, परी मानो प्रेम सहीजै ॥
२१२--०१--- मेरो सुनियो, तात सँदेसो ।
२१२--०१--- सीय-हरन जनि कहेहु पितासों, ह्वैहै अधिक अँदेसो ॥
२१२--०२--- रावरे पुन्यप्रताप-अनल महँ अलप दिननि रिपु दहिहैं ।
२१२--०२--- कुलसमेत सुरसभा दसानन समाचार सब कहिहैं ॥
२१२--०३--- सुनि प्रभु-बचन, राखि उर मुरति, चरन-कमल सिर नाई ।
२१२--०३--- चल्यो नभ सुनत राम-कल-कीरति, अरु निज भाग बड़ाई ॥
२१२--०४--- पितु-ज्यों गीध-क्रिया करि रघुपति अपने धाम पठायो ।
२१२--०४--- ऐसो प्रभु बिसारि ,तुलसी सठ तू चाहत सुख पायो ॥
२१३--०१--- शबरीसे भेण्ट
२१३--राग--- सूहो
२१३--०१--- सबरी सोइ उठी, फरकत बाम बिलोचन-बाहु ।
२१३--०१--- सगुन सुहावने सूचत मुनि-मन-अगम उछाहु ॥
२१३--०१--- मुनि-अगम उर आनन्द, लोचन सजल, तनु पुलकावली ।
२१३--०१--- तृन-पर्नसाल बनाइ, जल भरि कलस, फल चाहन चली ॥
२१३--०१--- मञ्जुल मनोरथ करति, सुमिरति बिप्र-बरबानी भली ।
२१३--०१--- ज्यों कलप-बेलि सकेलि सुकृत सुफूल-फूली सुख-फली ॥
२१३--०२--- प्रानप्रिय पाहुने ऐहैं राम-लषन मेरे आजु ।
२१३--०२--- जानत जन-जियकी मृदु चित राम गरीबनिवाज ॥
२१३--०२--- मृदु चित गरीबनिवाज आजु बिराजिहैं गृह आइकै ।
२१३--०२--- ब्रह्मादि सङ्कर-गौरि पूजित पूजिहौं अब जाइकै ॥
२१३--०२--- लहि नाथ हौं रघुनाथ-बानो पतितपावन पाइकै ।
२१३--०२--- दुहु ओर लाहु अघाइ तुलसी तीसरेहु गुन गाइकै ॥
२१३--०३--- दोना रुचिर रचे पूरन कन्द-मूल, फल-फूल ।
२१३--०३--- अनुपम अमियहुतें अंबक अवलोकत अनुकूल ॥
२१३--०३--- अनुकूल अंबक अंब ज्यों निज डिम्ब हित सब आनिकै ।
२१३--०३--- सुन्दर सनेहसुधा सहस जनु सरस राखे सानिकै ॥
२१३--०३--- छन भवन, छन बाहर, बिलोकति पन्थ भूपर पानिकै ।
२१३--०३--- दोउ भाइ आये सबरिकाके प्रेम-पन पहिचानिकै ॥
२१३--०४--- स्रवन सुनत चली, आवत देखि लषन-रघुराउ ।
२१३--०४--- सिथिल सनेह कहै,
२१३--०४--- "है सुपना बिधि, कैधौं सति भाउ ॥
२१३--०४--- सति भाउ कै सपनो? निहारि कुमार कोसलरायके ।
२१३--०४--- गहै चरन, जे अघहरन नत-जन-बचन-मानस-कायके ॥
२१३--०४--- लघु-भाग-भाजन उदधि उमग्यो लाभ-सुख चित चाय कै ।
२१३--०४--- सो जननि ज्यों आदरी सानुज, राम भूखे भायकै ॥
२१३--०५--- प्रेम-पट पाँवड़े देत, सुअरघ बिलोचन-बारि ।
२१३--०५--- आस्रम लै दिए आसन पङ्कज-पाँय पखारि ॥
२१३--०५--- पद-पङ्कजात पखारि पूजे, पन्थ-श्रम-बिरति भये ।
२१३--०५--- फल-फूल अंकुर-मूल धरे सुधारि भरि दोना नये ॥
२१३--०५--- प्रभु खात पुलकित गात, स्वाद सराहि आदर जनु जये ।
२१३--०५--- फल चारिहू फल चारि दहि, परचारि-फल सबरी दये ॥
२१३--०६--- सुमन बरषि, हरषे सुर, मुनि मुदित सराहि सिहात ।
२१३--०६--- "केहि रुचि केहि छुधा सानुज माँगि माँगि प्रभु खात ॥
२१३--०६--- प्रभु खात माँगत देति सबरी, राम भोगी जागके ।
२१३--०६--- पुलकत प्रसंसत सिद्ध-सिव-सनकादि भाजन भागके ॥
२१३--०६--- बालक सुमित्रा कौसिलाके पाहुने फल-सागके ।
२१३--०६--- सुनि समुझि तुलसी जानु रामहि बस अमल अनुरागके ॥
२१३--०७--- रघुबर अँचै उठे, सबरी करि प्रनाम कर जोरि ।
२१३--०७--- हौं बलि बलि गई, पुरई मञ्जु मनोरथ मोरि ॥
२१३--०७--- पुरई मनोरथ, स्वारथहु परमारथहु पूरन करी ।
२१३--०७--- अघ-अवगुनन्हिकी कोठरी करि कृपा मुद मङ्गल भरी ॥
२१३--०७--- तापस-किरातिनि-कोल मृदु मूरति मनोहर मन धरी ।
२१३--०७--- सिर नाइ, आयसु पाइ गवने, परमनिधि पाले परी ॥
२१३--०८--- सिय-सुधि सब कही नख-सिख निरखि-निरखि दोउ भाइ ।
२१३--०८--- दै दै प्रदच्छिना करति प्रनाम, न प्रेम अघाइ ॥
२१३--०८--- अति प्रीति मानस राखि रामहि, राम-धामहि सो गई ।
२१३--०८--- तेहि मातु-ज्यों रघुनाथ अपने हाथ जल-अंजलि दई ॥
२१३--०८--- तुलसी-भनित, सबरी-प्रनति, रघुबर-प्रकृति करुनामई ।
२१३--०८--- गावत, सुनत, समुझत भगति हिय होय प्रभु पद नित नई ॥