सूर्यस्मरण
प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.
प्रात: स्मरामि खलु तत्सवितुर्वरेण्यं
रुपं हि मण्डलमृचोऽथ तनुर्यजूंषि ।
सामानि यस्य किरणा: प्रभवादिहेतुं
ब्रह्माहरात्मकमलक्ष्यमचिन्त्यरुपम् ॥
'सूर्यका वह प्रशस्त रुप जिसका मण्डल ऋग्वेद, कलेवत यजुर्वेद तथा किरणें सामवेद हैं । जो सृष्टि आदिके कारण हैं, ब्रह्मा और शिवके स्वरुप हैं तथा जिनका रुप अचिन्त्य और अलक्ष्य है प्रात:काल मैं उनका स्मरण करता हूँ ।'
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Last Updated : November 25, 2018
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