ऋषि-तर्पण
प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.
ऋषि-तर्पण --
( इसे सपितृक भी करे ) -- उत्तरकी ओर मुँह कर निवीती होकर (जनेऊको मालाकी तरह गलेमें पहनकर) और गमछेको भी मालाकी तरह लटकाकर प्रजापतितीर्थसे दो-दो जलाञ्जलि जलमे छोड़े ।
ॐ सनकादयो मनुष्यस्तृष्यन्ताम् (२) । ॐ भूऋषयस्तृ-ष्यन्ताम् (२) । ॐ भुवऋषयस्तृष्यन्ताम् (२) । ॐ स्वऋषयस्तृष्यन्ताम् (२) । ॐ भूर्भुव:स्वऋषयस्तृष्यन्ताम् (२) ।
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Last Updated : November 25, 2018
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