इसके आगेका कृत्य जीवित-पितृक न करे ।

इसके आगेका कृत्य जीवित-पितृक न करे ।


ॐ अमुक गोत्रा अस्मत्पितृपितामहप्रपितामहास्तृप्यन्ताम् (३) ।
ॐ अमुक गोत्रा अस्मन्मातृपितामहीप्रपितामह्यस्तृप्यन्ताम् (३) ।
ॐ अमुक गोत्रा अस्मन्मतामहप्रमातामहवृध्दप्रमातामहा:सपत्नीकास्तृप्यन्ताम् (३) । ॐ ब्रह्मादिस्तम्बपर्यन्तं जगत्तृप्यताम् (३) ।

इसके बाद तटके पास आकर जलमें स्थित होकर भूमिपर एक जलाञ्जलि दे, जिसका मन्त्र यह है --

अन्गिदग्धाश्च ये जीवा येऽप्यदग्धा: कुले मम ।
भूमौ दत्तेन तोयेन तृप्ता यान्तु परां गतिम् ॥

जलसे बाहर आकर निम्नलिखित मन्त्रसे दाहिनी ओर शिखाको पितृतीर्थ (अँगूठे और तर्जनेकी मध्यभाग ) से निचोड़े--

लतागुल्मेष वृक्षेषु पितरो ये व्यवस्थिता: ।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु मयोत्सृष्टै: शिखोदकै:॥

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Last Updated : November 25, 2018

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