तर्पणके बादका कृत्य

प्रस्तुत पूजा प्रकरणात भिन्न भिन्न देवी-देवतांचे पूजन, योग्य निषिद्ध फूल यांचे शास्त्र शुद्ध विवेचन आहे.


तर्पणके बादका कृत्य -- अब उपवीती होकर (जनेऊको बायें कंधेपर और दाहिने हाथके नीचे कर) आचमन करे और बाहर एक अञ्जलि यक्ष्माको दे ।

यन्मया दूषितं तोयं शारीरं मलसम्भवम् ।
तस्य पापस्य शुध्द्यर्थं यक्ष्माणं तर्पयाम्यहम् ॥

जीवितैतृक वस्त्र निचोडकर करने बैठे, किंतु जिन्हे तर्पण करना है, वे अभी वस्त्रको न निचोड़ें, तर्पंणके बाद निचोडें । स्नानके बाद यदि न पोंछी जाय, जलको यों ही सूखने दिया जाय तो अधिक अच्छा है, क्योकिं सिरसे टपकनेवाले जलको देवता, मुखभागसे टपकनेवाले जलको पितर, बीचवाले भागसे टपकनेवाले जलको गन्धर्व और नीचेसे गिरनेवाले जलको सभी जन्तु पीते है । यदि शक्ति न हो तो गीले अथवा धोये गमछेसे पोंछकर सूखा वस्त्र पहने । गड्गादि तीर्थोंमें स्नान करनेपर शरीर न पोंछनेका विशेष ध्यान रखना चाहिये । अन्य स्थलोंपर कुछ क्षण रुककर गमछेसे शरीर पोंछ सकते हैं । स्नानके बाद गीले वस्त्रसे मल-मूत्र न करे।

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Last Updated : November 25, 2018

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