सहजोबाईजी - सतगुरु की दया

सहजोबाई का संबंध चरणदासी संप्रदाय से है ।


एक पहर लौं रात के, सबको दरशन दीन ।
डेढ़ पहर जब रात रहि, तभी सुरत मन कीन ॥
सहजोबाई विकल अति, तासो मिलहूँ जाय ।
सोचत भए अलेप सब, प्रगटे वा के ठांय ॥
सहजोबाई ध्यान में, बैठी थी चित लाय ।
उंही पलकें खुल गई, उठीं देखि घबराये ॥
चरणों ऊपर हाथ धरि, और कही महाराज ।
तुम तौ रामत को गये, कैसे आए आज ॥
महाराज हंस यों कही, यूँ ही आया गोप ।
बाजू बकसा हाथ का, फिर भए तुरत अलोप ॥
बूआ जप करती हुती, सहजो ही के पास ।
चरन दास का आवना, परगट देखा जास ॥
भोर भए फैली घनी, सभी हवेली माहिं ।
नर नारी पछताईयां, दरशन पायो नाहिं ॥
प्रगटे शाहजहांपुर विशे, किनहीं न पायो भेद ।
साधुन बाजू पूंछिया, हंस एन कीया निशेध ॥
हठ कर लोगन पूछिया, कही नाथ मुसकाय ।
सहजो को वह दे दीया, कही खोल समझाय ॥
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बानी
फाग महीना अष्टमी, सुकल पाख बुधवार ।
संबत अठारे सैं हुते, सहजो किया बिचार ॥
गुर अस्तुति के करन कूँ, बाढ़यो अधिक हुलास ।
होते होते हो गई, पोथी सहज प्रकास ॥
दिल्ली सहर सुहावना, प्रीछितपुर में बास ।
तहाँ समापत ही भई, नवका सहज प्रकास ॥
सहज प्रकास पोथी कही, चरनदास परताप ।
पढ़ें सुनै जो प्रीत सूँ, भाजै सबही पाप ॥

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Last Updated : December 19, 2023

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