सहजोबाईजी - परमात्मा

सहजोबाई का संबंध चरणदासी संप्रदाय से है ।


सच्चिदानन्द

नया पुराना होय ना, घुन नहिं लागै जासु ।
सहजो मारा ना मरै, भय नहिं ब्यापै तासु ॥
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किरै घटै छीजै नहीं, ताहि न भिजवै नीर ।
ना काहू के आसरे, ना काहू के सीर ।
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परलय में आवै नहीं, उत्पति होय न फेर ।
ब्रह्म अनादी सहजिया, घने हिराने हेर ॥
जाके किरिया करम ना, षट दर्सन को भेस ।
गुन औगुन ना सहजिया, ऐसो पुरुष अलेस ॥
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रूप बरन वा के नहीं, सहजो रंग न देह ।
मीत इष्ट वा के नहीं, जाति पाँति नहिं गेह ॥
सहजो उपजै ना मरै, सदबासी नहिं होय ।
रात दिवस ता में नहीं, सीत ऊस्न नहिं सोय ॥
आग जलाय सकै नहीं, सस्तर सकै न काटि ।
धूप सुखाय सकै नहीं, पवन सकै नहिं आटि ॥
मात पिता वा के नहीं, नहीं कुटुंब को साज ।
सहजो वाहि न रंकता, ना काहू को राज ॥
आदि अन्त ता के नहीं, मध्य नहीं तेहि माहिं ।
वार पार नहिं सहजिया, लघू दीर्घ भी नाहिं ॥
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अलख-अगम
कहा कहूँ कहा कहि सकूँ, अचरज अलख अभेव ।
सुने अचंभो सों लगै, सहजो ब्रह्म अलेव ॥
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हरि कौ कोइ न जानत भेद ।
सब के बड़े सोई पचि हारे, नेत नेत कहि बेद ॥
नाल माहिं ब्रह्मा नहिं आयो, थाकि फिरत केहि कीन ।
जोग ध्यान करि संकर हारे, थाह लेत भये लीन ॥
भेद न पायो सेस सारदा, सुरपति और गनेस ।
बामदेव और सनकादिक, निरे भक्त के भेस ॥
ज्ञानी गुनी मुनी रिषि तेते, जेते जोगेसुर साध ।
चरनदास कह सहजो बाई, पंडित पोथी लाद ॥
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निराकार और साकार
निराकार आकार सब, निर्गुन और गुनवन्त ।
है नाहीं सूँ रहित है, सहजो यों भगवन्त ॥
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नाम नहीं औ नाम सब, रूप नहीं सब रूप ।
सहजो सब कछु ब्रह्म है, हरि परगट हरि गूप ॥
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ता के रूप अनन्त हैं, जा के नाम अनेक ।
ता के कौतुक बहुत हैं, सहजो नाना भेष ॥

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Last Updated : December 19, 2023

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