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रावणकृतशिवतांडवस्तोत्रम्

रावणकृतशिवतांडवस्तोत्रम्

शिव हि महान शक्ति असून त्रिमूर्तींपैकी एक आहेत. विश्वाची निर्मीती ब्रह्मदेवाने केली असून नाश करण्याचे कार्य शिवाचे आहे. शिवाचे वास्तव्य कैलास पर्वतावर आहे.

Shiva is one of the gods of the Trinity. He is said to be the 'god of destruction'. Shiva is married to the Goddess Parvati (Uma). Parvati represents Prakriti. Lord Shiva sits in a meditative pose on Mount Kailash against,  Himalayas.


श्रीगणेशाय नम: ॥

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरीविलोल वीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।

धगद्धगद्धगज्ज्वलललाटपट्टपावके किशोरचन्द्रशेखरे रति:प्रतिक्षणं मम ॥ १ ॥

धराधरेन्द्रनंदिनी विलासबंधुबंधुर स्फुरद्दिगंतसंततिप्रमोदमानमानसे ।

कृपा कटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिच्चिदंबरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥ २ ॥

जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।

मदांधसिंधुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदमद्‍भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥ ३ ॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभू: ।

भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखर: ॥ ४ ॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिंगभानिपीतपंचसायकं नमन्निलिंपनायकम् ॥

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदेशिरोजटालमस्तु न: ॥ ५ ॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजयाधरीकृतप्रचंडपंचसायके ।

धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥ ६ ॥

नवीनमेघमंडली निरुधदुर्धरस्फुरत्कुहूनिशीथीनीतम: प्रबंधबंधुकंधर; ।

निलिंपनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुर: कलनिधानबंधुर: श्रियं जगद्‍धुरंधर: ॥ ७ ॥

प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमच्छाटाविडंबिकंठकंधरारुचिप्रबंधकंधरम् ।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥ ८ ॥

अगर्वस सर्वमंगलाकलाकदंबमंजरी रसप्रवाहमाधुरी विजृंभणामधुव्रतम् ।

स्मरांतकं पुरांतकं भवांतक मखांतकं गजाम्तकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥ ९ ॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्‍भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्करा लभालहव्यवाट् ।

धिमद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचंडतांडव: शिव: ॥ १० ॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकस्त्रजोर्गरिष्ठरत्‍नलोष्ठयो: सुह्रद्विपक्षपक्षयो: ।

तृष्णारविंदचक्षुषो: प्रजामहीमहेन्द्रयो: समं प्रवर्तयन्मन: कदा सदाशिवं भजे ॥ ११ ॥

कदा निलिंपैर्झरीनिकुंजकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मति: सदा शिर: स्थमंजलिं वहन् ।

विमुक्तलोललोचनोललामभाललग्नक: शिवेति मंत्रमुच्चरन्‍ कदा सुखी भवाम्यहम् ॥ १२ ॥

इदं हि नित्यमेवमुक्‍तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरोविशुद्धिमेतिसंततम् ।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥ १३ ॥

पूजावसानसमये दशवक्रगीतं य: शंभुपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरांरथगजेन्द्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मींसदैव सुमुखीं प्रददाति शंभु: ॥ १४ ॥

इति श्रीरावणविरचितं शिवतांडवस्तोत्रं संपूर्णम्

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Last Updated : December 19, 2007

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