शुक्रवार की आरती
आरती लक्ष्मण बाल जती की । असुर संहारन प्राणपति की ॥
जगमग ज्योति अवधपुरी राजे । शेषाचल पर आप विराजे ॥
घंटाताल पखावज बाजै । कोटि देव आरती साजै ॥
क्रीटमुकुट कर धनुष विराजै । तीन लोक जाकि शोभा राजै ॥
कंचन थार कपूर सुहाई । आरती करत सुमित्रा माई ॥
प्रेम मगन होय आरती गावैं । बसि बैकुण्ठ बहुरि नहीं आवैं ॥
भक्ति हेतु हरि लाड़ लड़ावै । जब घनश्याम परम पद पावैं ॥
शुक्रवार के दिन संतोषीमाताकी आरती भी मान्य है ।
संतोषी माता की आरती
जय संतोषी माता, जय जय संतोषी माता ।
अपने सेवक जन को सुख संपत्ति दाता ॥
सुंदरी चीर सुनहरी मां धारण कीन्हो ।
हीरा पन्ना दमके तन सिंगार लीन्हो ॥
गेरू लाल छटा छवि बदन कमल सोहे ।
मंद हंसत करुणामयी त्रिभुवन जन मोहे ॥
स्वर्ण सिंहासन बैठी चंवर ढुरे प्यारे ।
धूप, दीप, नैवेद्य, मधुमेवा भोग धरे न्यारे ॥