मो बिरहिनकी बात हेली, बिरहिन होइ जानिहै ।
नैन बिछोहा जानती री हेली, बिरहै कीन्हों घात ॥टेक॥
या तनकूँ बिरहा लगो रीहेली, ज्यों घुन लागो काठ ।
निसदिन खाये जातु है, देखूँ हरिकी बाट ॥
हिरदेमें पावक जरै री हेली, तपि नैना भय लाल ।
आसूँपर आसूँ गिरै, यही हमारो हाल ॥
प्रीतम बिन कल ना परै री हेली, कलकल सब अकुलाहिं ।
डिगी परूँ, सत ना रहौ कब पिय पकरैं बाँहिं ॥
गुरु सुकदेव दया करैं री हेली, मोहि मिलावै लाल ।
चरनदास दुख सब भजैं, सदा रहुँ पति नाल ॥