भजन - समझ रस कोइक पावै हो । गु...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


समझ रस कोइक पावै हो ।

गुरु बिन तपन बुझै नहीं, प्यासा नर जावै हो ॥१॥

बहुत मनुष ढूँढ़त फिरैं अंधरे गुरु सेवैं हो ।

उनहूँकों सूझै नहीं, औरनकों देवैं हो ॥२॥

अँधरेकों अँधरा मिलौ नारीकों नारी हो ।

ह्वाँ फल कैसे होयगा, समझैं न अनारी हो ॥३॥

गुरु सिष दोऊ एक से एकै व्यवहारा हो ।

गयो भरोसे डूबिकै वै, नरक मँझारा हो ॥४॥

सुकदेव कहैं चरनदाससूँ, इनका मत कूरा हो ।

ग्यान मुकति जब पाइये, मिलै सतगुरु पुरा हो ॥५॥

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Last Updated : December 20, 2007

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