समझ रस कोइक पावै हो ।
गुरु बिन तपन बुझै नहीं, प्यासा नर जावै हो ॥१॥
बहुत मनुष ढूँढ़त फिरैं अंधरे गुरु सेवैं हो ।
उनहूँकों सूझै नहीं, औरनकों देवैं हो ॥२॥
अँधरेकों अँधरा मिलौ नारीकों नारी हो ।
ह्वाँ फल कैसे होयगा, समझैं न अनारी हो ॥३॥
गुरु सिष दोऊ एक से एकै व्यवहारा हो ।
गयो भरोसे डूबिकै वै, नरक मँझारा हो ॥४॥
सुकदेव कहैं चरनदाससूँ, इनका मत कूरा हो ।
ग्यान मुकति जब पाइये, मिलै सतगुरु पुरा हो ॥५॥