कोइ दिन जीवै तौ कर गुजरान ।
कहर गरूरी छाँड़ि दिवाने, तजौ अकसकी बात ॥
चुगली-चोरि अरु निंदा लै, झूठ कपट अरु कान ।
इनकूँ डारि गहै जत सत कूँ, सोई अधिक सयान ॥
हरि हरि सुमिरौ, छिन नहिं बिसरौ, गुरुसेवा मन ठानि ।
साधुनकी संगति कर निस-दिन, आवै ना कछु हानि ॥
मुड़ौ कुमारग चलौ सुमारग, पावौ निज पुर बास ।
गुरु सुकदेव चेतावैं तोकूँ, समुझ चरन हीं दास ॥