भजन - तातें भैया, मेरी सौं, कृष...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


तातें भैया, मेरी सौं, कृष्ण-गुन-संचु ।

कुत्सित बाद बिकारहि परधन सुनु सिख परतिय बंचु ।

मनि गुन पुंज ब्रजपति छाँड़त हितहरिबंस सुकर गहि कंचु ॥१॥

पायो जानि जगतमें सब जन कपटी कुटिल कलिजुगी टंचु ।

इहि परलोक सकल सुख पावत, मेरी सौं, कृष्ण-गुन संचु ॥२॥

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Last Updated : December 21, 2007

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