रहौ कोउ काहू मनहि दियें ।
मेरे प्राननाथ श्रीस्यामा, सपथ करों तिन छियें ॥
जे अवतार कदंब भजत हैं, धरि दृढ़ ब्रत जु हियें ।
तेऊ उमगि तजत मरजादा, बन बिहार रस पियें ॥
खोये रतन फिरत जे घर-घर कौन काज इमि जियें ।
हितहरिबंस अनतु सचु नाहीं, बिन या रसहिं लियें ॥