भजन - नव चक्र चूडा़ नृपति म...

हरिभक्त कवियोंकी भक्तिपूर्ण रचनाओंसे जगत्‌को सुख-शांती एवं आनंदकी प्राप्ति होती है।


नव चक्र चूडा़ नृपति मन साँवरौ,

राधिका तरुनिमनि पट्टरानी ।

सेस ग्रह आदि बैकुंठ परिजंत सब,

लोक थानैत ब्रज राजधानी ॥१॥

मेघ छ्‌यानवै कोटि बाग सींचत जहाँ,

मुक्ति चारौ तहाँ भरति पानी ।

सूर ससि पाहरु पवन जन इंदिरा,

चरनदासी भाट निगम बानी ॥२॥

धर्म कुतवाल सुक सूत नारद चारु,

फिरत चर चारि सनकादि ग्यानी ।

सत्तगुन पौरिया काल बँधुवा जहाँ,

कर्म बस काम रति सुख निसानी ॥३॥

कनक मरकत धरनि कुंज कुसुमिति महल,

मध्यकमनीय सयनीय ठानी ।

पल न बिछुरत दुऊ जात नहिं तहँ कोऊ,

ब्यास महलनि लिये पीकदानी ॥४॥

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Last Updated : December 21, 2007

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