जो धुनियाँ तौ भी मैं राम तुम्हारा ।
अधम कमीन जाति मतिहीना, तुम तौ हौ सिरताज हमारा ॥टेक॥
कायाका मंत्र सबद मन मुठिया, सुखमन ताँत चढ़ाई ।
गगनमँडलमें धनुआँ बैठा, मेरे सतगुर कला सिखाई ॥१॥
पाप पान हर कुबुध काँकड़ा, सहज सहज झड़ जाई ।
घुंडी-गाँठ रहन नहिं पावै, इकरंगी होय आई ॥२॥
इकरँग हुआ भरा हरि चोला, हरि कहै कहा दिलाऊँ ।
मैं नाहीं मेहनतक लोभी, बकसौ मौज भगति निज पाऊँ ॥३॥
किरपा कर हरि बोले बानी, तुम तौ हौ मम दास ।
दरिया कहै, मेरे आतम भीतर, मेलौ राम भगति बिस्वास ॥४॥