बाबल कैसे बिसरो जाई ।
यदि मैं पति सँग रल खेलूँगी, आपा धरम समाई ॥टेक॥
सतगुरु मेरे किरपा कीनी, उत्तम बर परणाई ।
अब मेरे साईंको सरम पड़ैगी लेगा ह्रदय लगाई ॥
थे जानराय, मैं बाली-भोली, थे निरमल, मैं मैली ।
थे बतलाओ, मैं बोल न जानूँ, भेद न सकूँ सहेली ॥
थे ब्रह्मभाव, मैं आतप कन्या, समझ न जानूँ बानी ।
दरिया कहै परि पूरा पाया, यह निश्चै कर जानी ॥