हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|गीत और कविता|सूर्यकांत त्रिपाठी ’निराला’|परिमल| बादल राग ३ परिमल प्रेयसी मित्र के प्रति बादल राग १ बादल राग २ बादल राग ३ बादल राग ४ बादल राग ५ बादल राग ६ सूर्यकांत त्रिपाठी ’निराला’ - बादल राग ३ सूर्यकांत त्रिपाठी की रचनाये मनको छू लेती है। Tags : niralapoemsuryakant tripathiकाव्यनिरालासूर्यकांत त्रिपाठी भाग ३ Translation - भाषांतर सिन्धु के अश्रु !धरा के खिन्न दिवस के दाह !बिदाई के अनिमेष नयन !मौन उर में चिन्हित कर चाहछोड़ अपना परिचित संसार--सुरभि के कारागार,चले जाते हो सेवा पथ पर,तरु के सुमन !सफल करकेमरीचिमाली का चारु चयन।स्वर्ग के अभिलाषी हे वीर,सव्यसाची-से तुम अध्ययन-अधीरअपना मुक्त विहार,छाया में दुख केअंतःपुर का उद्घाटित द्वारछोड़ बन्धुओं के उत्सुक नयनों का सच्चा प्यार,जाते हो तुम अपने रथ पर,स्मृति के गृह में रखकरअपनी सुधि के सज्जित तार।पूर्ण मनोरथ ! आये--तुम आये;रथ का घर्घर-नाद तुम्हारे आने का सम्वाद।ऐ त्रिलोक-जित ! इन्द्र-धनुर्धर !सुर बालाओं के सुख-स्वागत !विजय विश्व में नव जीवन भर,उतरो अपने रथ से भारत !उस अरण्य में बैठी प्रिया अधीर,कितने पूजित दिन अब तक हैं व्यर्थ,मौन कुटीर।आज भेंट होगी--हाँ, होगी निस्सन्देह,आज सदा सुख-छाया होगा कानन-गेहआज अनिश्चित पूरा होगा श्रमित प्रवास,आज मिटेगी व्याकुल श्यामा के अधरों की प्यास। N/A References : N/A Last Updated : February 16, 2008 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP