हिंदी सूची|हिंदी साहित्य|गीत और कविता|सूर्यकांत त्रिपाठी ’निराला’|परिमल| बादल राग ४ परिमल प्रेयसी मित्र के प्रति बादल राग १ बादल राग २ बादल राग ३ बादल राग ४ बादल राग ५ बादल राग ६ सूर्यकांत त्रिपाठी ’निराला’ - बादल राग ४ सूर्यकांत त्रिपाठी की रचनाये मनको छू लेती है। Tags : niralapoemsuryakant tripathiकाव्यनिरालासूर्यकांत त्रिपाठी भाग ४ Translation - भाषांतर उमड़ सृष्टि के अन्तहीन अम्बर से,घर से क्रीड़ारत बालक-से,ऐ अनन्त के चंचल शिशु सुकुमार !स्तब्ध गगन को करते हो तुम पार !अन्धकार-- घन अन्धकार हीक्रीड़ा का आगार।चौंक चमक छिप जाती विद्युततडिद्दाम अभिराम,तुम्हारे कुंचित केशों मेंअधीर विक्षुब्ध ताल परएक इमन का-सा अति मुग्ध विराम।वर्ण रश्मियों-से कितने हीछा जाते हैं मुख पर--जग के अंतस्थल से उमड़नयन पलकों पर छाये सुख पर;रंग अपारकिरण तूलिकाओं से अंकितइन्द्रधनुष के सप्तक, तार; --व्योम और जगती के राग उदारमध्यदेश में, गुडाकेश !गाते हो वारम्वार।मुक्त ! तुम्हारे मुक्त कण्ठ मेंस्वरारोह, अवरोह, विघात,मधुर मन्द्र, उठ पुनः पुनः ध्वनिछा लेती है गगन, श्याम कानन,सुरभित उद्यान, झर-झर-रव भूधर का मधुर प्रपात।वधिर विश्व के कानों मेंभरते हो अपना राग,मुक्त शिशु पुनः पुनः एक ही राग अनुराग। N/A References : N/A Last Updated : February 16, 2008 Comments | अभिप्राय Comments written here will be public after appropriate moderation. Like us on Facebook to send us a private message. TOP