एक नगर में चित्ररथ नाम का राजा रहता था । उसके पास एक पद्मसर नाम का तालाब था । राजा के सिपाही उसकी रखवाली करते थे । तालाब में बहुत से स्वर्णमय हंस रहते थे । प्रति छः महीने बाद अनेक सोने के पंख मिल जाते थे ।
कुछ दिन बाद वहाँ एक बहुत बड़ा स्वर्णपक्षी आ गया । हंसों ने उस पक्षी से कहा कि तुम इस तालाब में मत रहो । हम इस तालाब में प्रति छः मास बाद सोने का पंख देकर रहते हैं । मूल्य देकर हम ने यह तालाब किराये पर ले रखा है ।" पक्षी ने हंसों की बात पर कान नहीं दिये । दोनों में संघर्ष चलता रहा ।
एक दिन वह पक्षी राजा के पास जाकर बोला---"महाराज ! ये हंस कहते हैं कि यह तालाब उनका है, राजा का नहीं; राजा उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता । मैंने उस से कहा था कि तुम राजा के प्रति अपमानभरे शब्द मत कहो, किन्तु वे न माने ।"
राजा कानों का कच्चा था । उसने पक्षी के कथन को सत्य मानकर तालाब के स्वर्णमय हंसों को मारने के लिए अपने सिपाहियों को भेज दिया । हंसों ने जब सिपाहियों को लाठियाँ लेकर तालाब की ओर आते देखा तो वे समझ गए कि अब इस स्थान पर रहना उचित नहीं । अपने वृद्ध नेता की सलाह से वे उसी समय वहाँ से उड़ गये ।
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स्वजनों को यह कहानी कहने के बाद हरिदत्त शर्मा ने फिर क्षेत्रपाल सांप की पूजा का विचार किया । दूसरे दिन वह पहले की तरह दूध लेकर वल्मीक पर पहुँचा, और साँप की स्तुति प्रारम्भ की । सांप बहुत देर बाद वल्मीक से थोड़ा बाहर निकल कर ब्राह्मण से बोला ----
"ब्राह्मण ! अब तू पूजा भाव से नहीं, बल्कि लोभ से यहाँ आया है । अब तेरा मेरा प्रेम नहीं हो सकता । तेरे पुत्र ने जवानी के जोश में मुझ पर लाठी का प्रहार किया । मैंने उसे डस लिया । अब न तो तू ही पुत्र-वियोग के दुःख को भूल सकता है और न ही मैं लाठी-प्रहार के कष्ट को भुला सकता हूँ ।"
यह कहकर वह एक बहुत बड़ा हीरा देकर अपने बिल में घुस गया, और जाते हुए कह गया कि "आगे कभी इधर आने का कष्ट न करना ।"
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यह कहानी कहने के बाद रक्ताक्ष ने कहा, "इसीलिए मैं कहता था कि एक बार टूटकर जुड़ी हुई प्रीति कभी स्थिर नहीं रहती ।"
रक्ताक्ष से सलाह लेने के बाद उलूकराज ने दूसरे मन्त्री क्रूराक्ष से सलाह ली कि स्थिरजीवी का क्या किया जाय ?
क्रूराक्ष ने कहा----"महाराज ! मेरी राय में तो शरणागत की हत्या पाप है । शरणागत का सत्कार हमें उसी तरह करना चाहिए जिस तरह कबूतर ने अपना माँस देकर किया था ।
राजा ने पूछा---"किस तरह ?"
तब क्रराक्ष ने कपोत-व्याध की यह कहानी सुनाई----