श्रावण कृष्णपक्ष व्रत - संकष्टचतुर्थी

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


संकष्टचतुर्थी

( भविष्योत्तरपुराण ) -

यह व्रत श्रावण कृष्ण चतुर्थीको किया जाता है । इसमें चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी ली जाती है । यदि दो दिन वैसी हो या दोनों ही दिन न हो तो पूर्वाविद्धा लेना चाहिये । उस दिन नित्यकृत्य करके सूर्यादिसे व्रतकी भावना निवेदन कर

' मम सर्वविधसौभाग्यसिद्धयर्थं सङ्कष्टहरगणपतिप्रीतये सङ्कष्टचतुर्थीव्रतमहं करिष्ये ।'

यह संकल्प करे और वस्त्राच्छादित वेदीपर मुर्तिमान या फलस्वरुप गणेशजीको स्थापित करके

' कोटिसूर्यप्रभं देवं गजवक्त्रं चतुर्भुजम् । पाशाङ्कशधरं देवं ध्यायेत् सिद्धिविनायकम् ॥'

से गणेशजीका ध्यान करके उनका पूजन करे और २१ दूर्वा लेकर ' गणाधिपाय नमः २, उमापुत्राय नमः २, अघनाशनाय नमः २, एकदन्ताय नमः २, इभवक्त्राय नमः २, मूषकवाहनाय नमः २, विनायकाय नमः २, ईशपुत्राय नमः २, सर्वसिद्धिप्रदायकाय नमः और कुमारगुरवे नमः २ इन नामोसे प्रत्येक नामके साथ दो - दो दूर्वा और गणाधिपादि दसों नामोंके द्वारा एक दूर्वा आणि करे । अन्तमें नीराजन करके पुष्पाञ्जलि दे और

' संसारपीडाव्यथितं हि मां विघ्रविनाशनाय ॥'

से प्रार्थना करके घी, गेहूँ और गुड़से बनाये हुए २१ मोदक लेकर एक गणेशजीके अर्पण करे, १० ब्राह्माणोंको दे और शेष १० अपने लिये रख दे । तत्पश्चात् चन्द्रोदय होनेपर उनका गन्धाक्षतसे पूजन करके

' ज्योत्स्त्रापते नमस्तुभ्यं नमस्ते ज्योतिषां पते । नमस्ते रोहिणीकान गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ॥'

से चन्द्रमाको, ' गजानन नमस्तुभ्यं सर्वसिद्धिप्रदायक । गृहाणार्घ्यं मया दत्तं संकष्टं नाशयाशु मे ॥'

से गणेशजीको और ' तिथीनामुत्तमे देवि गणेशप्रियवल्लभे । सर्वसम्पत्न्पदे देवि गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ॥'

से चतुर्थीको अर्घ्य देकर भोजन करे । श्रावणमें लड्डु, भाद्रमें दही, आश्विनमें उपवास, कार्तिकमें दध्योदन, मार्गशीर्षमें निराहार, पौषमें गोंमूत्र, माघमें तिल, फाल्गुनमें घी, शक्कर, चैत्रमें पञ्चगव्य, वैशाखमें शतपत्रिका, ज्येष्ठमें घी और आषाढ़में मधु भक्षण करे । जमीनपर सोवे, जितक्रोधी, जितेन्द्रिय, निलोंभी और मोहादिसे रहित होकर प्रतिमास एक वर्ष, तीन वर्ष या जन्मभर करे तो उसके संकट दूर होकर शान्ति मिलती है और ऋद्धि - सिद्धिसे संयुक्त होकर वह सुखी रहता है । इस व्रतको यदि कुमारी करे तो उसे सुयोग्य वर मिले । सौभाग्यवती युवती करे तो सौभाग्यादिकी वृद्धि हो और विधवा करे तो जन्मान्तरमें वह सौभाग्यवती रहे ।

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Last Updated : January 20, 2009

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