( १ )
प्राजापत्यव्रत
( मन्वादि धर्मशास्त्र ) - इसमें तीन दिन प्रातःकाल ( कुक्कुटाण्डके बराबर २६ या १५ ग्रास ); तीन दिन सायंकाल ( वैसे ही २५ या १२ ग्रास ) और तीन दिन अयाचित ( बिना माँगे जो कुछ जिस समय जितना मिल जाय, उसके चौबीस ग्रास ) भोजन और तीन दिन उपवास करनेसे एक ' प्राजापत्य ' १ होता है । इस प्रकार न हो सके तो एकभुक्त, नक्त, अयाचित और उपवास - ये यथाक्रम ३ - ३ दिन करे । उपवास निराहार न हो सके तो जल, फल या दुग्धपानसे करे । जपशीलको २ बारह हजार जप, तपशीलको ३ एक हजार होम तथा समर्थको १२ ब्राह्मणोंका भोजन और दो गो - दान या गोमूल्यरुपसे कुछ द्रव्यका दान करना चाहिये । इस व्रतसे ' अनादिष्ट ' ( जिनके लिये प्रायश्चित्तका विधान नहीं है उन ) पापोंकी निवृत्ति होती हैं ।
( २ )
पादोनकृच्छ्रव्रत ( मन्वादि धर्मशास्त्र ) - इसमें दो दिन प्रातःकाल, दो दिन सायंकाल, दो दिन अयाचित भोजन और दो दिन उपवास करे । यह न बने तो कुछ सोना दान दे ।
( ३ )
अर्द्धकृच्छ्रव्रत
( धर्मशास्त्र ) - इसमें एक दिन प्रातःकाल, एक दिन सायंकाल, दो दिन अयाचित भोजन और दो दिन उपवास करे । यह न बने तो सोने या चाँदीका दान दे । इस व्रतसे ऋतुकालमें स्त्रीका सहवास त्याग देने - जैसे पापोंकी निवृत्ति होती है ।
सायं प्रातस्तथैकैकं दिनद्वयमयाचितम् ।
दिनद्वयं च नाश्र्नीयात् कृच्छ्रार्धं तद् विधीयते ॥ ( आपस्तम्ब )
( ४ )
पादकृच्छ्रव्रत
( धर्मशास्त्र ) - इसमें एक दिन प्रातःकाल, एक दिन सायंकाल, एक दिन अयाचित भोजन और एक दिन उपवास करनेसे ' पादकृच्छ्र ' १ होता है ।
बालवृद्धातुरेष्वेवं शिशुकृच्छ्रमुवाच ह । ( वसिष्ठ )
( ५ )
अतिकृच्छ्र
( धर्मशास्त्र ) - नौ दिन एक - एक ग्रास भोजन और तीन दिन उपवास करने और ३ या २ गौ देनेसे ' अतिकृच्छ्र ' २ होता है । यह न बन सके तो ' पाणिपूरान्न ' ( हथेलीमें आये उतना ) भोजन और तीन दिन दूध आदिसे उपवास करे । यह व्रत ब्राह्मणके लकुट - प्रहार करने - जैसे पापोंकी निवृत्तिके निमित्त किया जाता है ।
एकैकं ग्रासमश्र्नीयात् त्र्यहणि त्रीणि पूर्ववत् ।
त्र्यहं चोपवसेदन्त्यमतिकृच्छ्रं चरन् द्विजः ॥ ( मनु )