प्रायश्चित्तव्रत - व्रत २१ से २५

व्रतसे ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, मेधा, भक्ति तथा पवित्रताकी वृद्धि होती है ।


( २१ ) अतिसांतपन - उपर्युक्त पदार्थोंको दो - दो दिन पीनेसे 'अतिसांतपन ' २ होता है ।

एतान्येव यदा पेयादेकैकं तु द्वयहं द्वयहम् ।

अतिसांतपनं नाम श्वपाकमपि शोधयेत् ॥ ( यम )

( २२ )

ब्रह्मकूर्चव्रत

( मिताक्षरा ) - इसमें ताम्रवर्णकी गौके ८ माशे गोमूत्रको गायत्री - मन्त्नसे, सुश्वेत रंगकी गौके १६ माशे गोबरको ' गन्धद्वारां०' से, नीली गौके १० माशे दहीको ' दधिक्राव्णो०' से, सुनहरे रंगकी गौके १२ माशे दूधको ' आप्यायस्व०' से, काले रंगकी गौके ९ माशे घीको ' देवस्य त्वा०' से और यथाविधि लाये हुए कुशके चार माशे जलको ' देवस्य त्वा०' से ग्रहण करके पञ्चगव्य बनाकर ' इरावती०', ' इदं विष्णु०', ' मा नस्तोके०' और ' शंवती०' - इन २० ऋचाओंसे हवन करे । फिर हवनसे बचे हुए पञ्चगव्यको प्रणव ( ॐ ) से मिलाये, ॐ से ही उठाये और ॐ से ही ढाकके मध्यपत्र या सुवर्णपात्र अथवा ताम्रपात्र या ' ब्रह्मतीर्थ ' ( हथेलीमें लेकर चरणामृतकी भाँति मणिबन्धके ऊपर ) से पीये और पीते समय

' यत्त्वगस्थिगतं पापं देहे तिष्ठति मामके । ब्रह्मकूर्चोपवासस्तु दहत्वग्निरिवेन्धनम् ॥'

इस मन्त्नका उच्चारण करे । इस प्रकार तीन बार पीनेसे ' ब्रह्मकूर्च ' ३ सम्पन्न होता है ।

एताभिश्चैव होतव्यं हुतशेषं पिबेद् द्विजः ।

ब्रह्मकूर्चोपवासस्तु० । ( पराशर )

( २३ ) यतिसांतपन ( याज्ञवल्क्य ) - उक्त प्रकारसे तैयार किये हुए ( गोमूत्र, गोबर, दूध, दही और घी ) के पञ्चगव्यको तीन दिनतक पीनेसे ' यतिसांतपन ' होता है । जाबालिके मतसे उक्त पञ्चगव्यको कुशोदकमें मिलाकर सात दिन पीनेसे ' कृच्छ्रसांतपन ' होता है ।

( २४ ) पराकव्रत ( धर्मशास्त्र ) - निरन्तर बारह अहोरात्रका उपवास करने और २, ३ या ५ गोदान अथवा तन्मूल्योपकल्पित द्रव्य देनेसे ' पराकव्रत ' सम्पन्न होता है ।

( २५ ) सौम्यकृच्छ्रव्रत ( प्रायश्चित्तेन्दुशेखर ) - व्रत आरम्भ करके पहले दिन प्राणरक्षाप्रमाण पिण्याक ( जितनेसे प्राण रह सके, उतने तिलोंकी खली), दूसरे दिन आचाम ( उबाले हुए चावलोंका पानी - माँड़ ), तीसरे दिन तक्र ( छाछ - मठा ), चौथे दिन जल और पाँचवे दिन सत्तू पीये । फिर तीन दिन उपवास करे तब ' सौम्यकृच्छ्रव्रत ' होता है ।

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Last Updated : January 16, 2012

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