( १६ ) श्रीकृच्छ्र ( धर्मशास्त्र ) - यह तीन प्रकारसे किया जाता है । यथा बेलके फल उबालकर उनका जल एक मास पीनेसे ' श्रीकृच्छ्र ' या आँवले उबालकर उनका जल पीनेसे ' दूसरा श्रीकृच्छ्र ' २ होता है ।
श्रीकृच्छ्रः श्रीफलैः प्रोक्तः । ( मार्क० ) मासेनामलकैरेवं
श्रीकृच्छ्रमपरं स्मृतम् । ( मार्कण्डेय )
( १७ ) जलकृच्छ्रव्रत ( याज्ञवल्क्य ) - शुद्ध जलको उबालकर प्रतिदिन प्रातः स्त्रान आदि नित्यकर्मके पीछे एक मासतक पीनेसे ' जलकृच्छ्र ' ३ होता है ।
तोयकृच्छ्रो जलेन तु ।
( १८ ) सांतपन ( विश्वकोश ) - छः रात्रिका उपवास करनेसे ' सांतपन ' होता है ।
( १९ ) कृच्छ्रसांतपन ( याज्ञवल्क्य ) - एक दिन गोमूत्र, एक दिन गोबर, एक दिन दही, एक दिन दूध, एक दिन घी और एक दिन कुशोदक पीने और एक दिन उपवास करनेसे ' कृच्छ्रसांतपन ' ४ होता है ।
गोमूत्रं गोमयं क्षीरं दधि सर्पिः कुशोदकम् ।
एकैकं प्रत्यहं पीत्वा त्वहोरात्रभोजनम् ।
कृच्छ्रं सांतपनं नाम सर्वपापप्रणाशनम् ॥ ( जाबालि )
( २० ) महासांतपन ( याज्ञवल्क्य ) - तीन दिन गोमूत्र, तीन दिन गोबर, तीन दिन दही, तीन दिन दूध, तीन दिन घी और तीन दिन कुशोदकपीने और तीन दिन उपवास करनेसे सम्पूर्ण पापोंको निवारण करनेवाला ' महासांतपन ' १ होता है ।
त्र्यहं पिबेत्तु गोमूत्रं त्र्यहं वै गोमयं पिबेत् ।
त्र्यहं दधि त्र्यहं क्षीरं त्र्यहं सर्पिस्ततः शुचिः ॥
महासांतपनं चैतत् ....... । ( यम )