दाइज भयउ अनेक बिधि, सुनि सिहाहिं दिसिपाल ।
सुख संपति संतोषमय, सगुन सुमंगल माल ॥१॥
अनेक प्रकारसे ( जनकजीद्वारा ) दहेज दिया गया, जिसे सुनकर दिक्पाल भी सिहाते । ( ईर्ष्या करने लगते ) हैं । यह शकुन सुख, सम्पत्ति तथा सन्तोषदायी एवं श्रेष्ठ मंगलपरम्पराका सूचक है ॥१॥
बर दुलहिनि सब परसपर मुदित पाइ मनकाम ।
चारु चारि जोरी निरखि दुहूँ समाज अभिराम ॥२॥
मनकी साध पूर्ण होनेसे सभी वर एवं दुलहिनें परस्पर प्रसन्न हो रही हैं । इन सुन्दर चारों जोड़ियोंको देखकर दोनों ( अयोध्या और जनकपूरके ) समाज अत्यन्त सुखी हैं ॥२॥
( प्रश्न - फल उत्तम है । )
चरिउ कुँवर बियाहि पुर गवने दसरथ राउ ।
भये मंजु मंगल सगुन गुर सुर संभु पसाउ ॥३॥
महाराज दशरथ चारों कुमारोंका विवाह करके अपने नगर ( अयोध्या ) को लौट गये । गुरु वसिष्ठ, देवताओं तथा शंकरजीकी कृपासे मंगलमय शकुन हुए ॥३॥
( मड्गलकार्यसम्बन्धी प्रश्नका फल उत्तम है । )
पंथ परसु धर आगमन समय सोच सब काहु ।
राज समाज विषाद बड़, भय बस मिटा उछाहु ॥४॥
मार्गमें परशुरामजीके आ जानेके समय सभीको चिन्ता हो गयी । राजसमाजमें बड़ी उदासी छा गयी, भयके कारण उत्साह नष्ट हो गया ॥४॥
( प्रश्नका फल अशुभ है । )
रोष कलुष लोचन भ्रुकुटि, पानि परसु धनु बान ।
काल कराल बिलोकि मुनि सब समाज बिलखान ॥५॥
क्रोधसे लाल नेत्र एवं टेढीं भौहें किये तथा हाथमें फरसा और धनुष्य-बाण लिये मुनि परशुरामजीको ( साक्षात ) भयंकर कालके समान देखकर पूरा समाज दुःखी हो गया ॥५॥
( प्रश्न फल निकृष्ट है । )
प्रभुहि सौपि सारंग मुनि दीन्ह सुआसिरबाद ।
जय मंगल सूचक सगुन राम राम संबाद ॥६॥
प्रभु श्रीरामको अपना शार्ड्गधनुष्य देकर मुनि परशुरामजीने उन्हें आशीर्वाद दिया । श्रीराम और परशुरामजीकीं वार्ताका यह शकुन विजय और मंगल सूचित करनेवाला है ॥६॥
अवध अनंद बधावनो, मंगल गान निसान ।
तुलसी तोरन कलस पुर चँवर पताका बितान ॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि अयोध्यामें आनन्दकी बधाई बज रही है, मंगल-गीत गाये जा रहे हैं, डंकोंपर चोट पड़ रहीं हैं: नगरमें तोरण बँधे हैं, कलश सजे हैं: चँवर -पताका सहित मंडप सजाये गये हैं ॥७॥
( प्रश्न - फल शुभ है । )