सीय राम लोने लखन तापस वेष अनुप ।
तप तीरथ जप जाग हित सगुन सुमंगल रूप ॥१॥
लावण्यमय श्रीराम-लक्ष्मण तथा सीताजीका तपस्वी-वेष अनुपम है । तपस्या, तीर्थयात्रा, जप तथा करनेके लिये यह शकुन सुमंगल-स्वरूप ( मंगल -सूचक ) है ॥१॥
सीता लखन समेत प्रभु, जमुना उतरि नहाइ ।
चले सकल संकट समन सगुन सुमंगल पाइ ॥२॥
श्रीसोताजी और लक्ष्मणजीके साथ प्रभु यमुनाजीके पार उतरकर स्नान करके, समस्त संकटोंको नष्ट करनेवाले मंगलमय शकुन पाकर आगे चले ॥२॥
( यात्राके लिये उत्तम फल सूचित होता है । )
अवध सोक संताप बस बिकल सकल नर नारि ।
बाम बिधाता राम बिनु माँगत मीचु पुकारि ॥३॥
अयोध्यामें सभी नर-नारी श्रीरामके बिना शोक -सन्तापके कारण व्याकुल होकर प्रतिकुल हुए विधातसे पुकारकर मृत्यु माँगते हैं ॥३॥
( प्रश्न-फल अनिष्ट है । )
लखन सीय रघुबंस मनि पथिक पाय उर आनि ।
चलहु अगम मग सुगम सुभ, सगुन सुमंगल खानि ॥४॥
श्रीरघुनाथजी, श्रीजानकीजी तथा लक्ष्मणजी - इन पथिकेंकि श्रीचरणोंको हृदयमें लाकर ( उनका ध्यान करके ) अगम्य ( विकट ) मार्गमें भी चलो तो वह सुगम और शुभ हो जायगा । यह शकुन कल्याणकी खानि है ॥४॥
ग्राम नारि नर मुदित मन लखन राम सिय देखि ।
होइ प्रीति पहिचान बिनु मान बिदेस बिसेषि ॥५॥
श्रीराम-लक्ष्मण तथा जानकीजीकां दर्शन करके गाँवोंकि स्त्री-पुरुष मन-ही-मन आनन्दित हो रहे हैं । ( इस शकुनका फल यह है कि ) बिना पहिचानके भी प्रेम होगा और विदेशमें विशेष प्राप्त होगा ॥५॥
बन मुनि गन रामहि मिलहिं मुदित सुकृत फल पाइ ।
सगुन सिद्ध साधम दरस, अभिमान होइ अघाइ ॥६॥
वनमें श्रीरामसे मुनिगण मिलते हैं और अपने पुण्योंका फल ( श्रीराम - दर्शन ) पाकर प्रसन्न होते हैं । यह शकुन साधकको सिद्ध पुरुषका दर्शन होते हैं । यह शकुन साधकको सिद्ध पुरुषका दर्शन होनेकी सूचना देता है, मनचाहा फल भरपूर प्राप्त होगा ॥६॥
चित्रकुट पय तीर प्रभु बसे भानु कुल भानु ।
तुलसी तप जप जोग हित सगुन सुमंगल जानु ॥७॥
सूर्यकुलके ( प्रकाशक ) सूर्य प्रभु श्रीरामने चित्रकूटमें पयस्विनी नदीके किनारे निवास किया । तुलसीदासजी कहते हैं कि तपस्या, जप तथा योगसाधनाके लिये यह शकुन मंगलप्रद समझो ॥७॥