गुरु आयुस आये भरत निरखि नगर नर नारि ।
सानुज सोचत पोच बिधि लोचन मोचत बारि ॥१॥
गुरु ( वसिष्ठ ) की आज्ञासे भरतजी ( ननिहालसे ) लौट आये । अयोध्याके स्त्री पुरुषों ( की दशा ) को देखकर छोटे भाई ( शत्रुघ्न ) के साथ वे सोचते हैं कि 'विधाता बडा़ नीच काम करनेवाला है' और नेत्रोसें आँसु बहाते हैं ॥१॥
( प्रश्न - फल अशुभ है । )
भूप मरनु प्रभु बन गवनु सब बिधि अवध अनाथ ।
रीवत समुझि कुमात कृत्त, मीजि हाथ धुनि माथ ॥२॥
महाराज दशरथकी मृत्यु, प्रभु, श्रीरामका वन जाना तथा सब प्रकारसे अयोध्याका अनाथ होना-इन सबको दुष्टहृदया माता ( कैकेयी ) की करतूत समझकर वे हाथ मलते और सिर पीटकर रोते हैं ॥२॥
( प्रश्न फल निकृष्ट है । )
बेदबिहित पितु करम करि, लिये संग सब लोग ।
चले चित्रकूटहि भरत ब्याकुल राम बियोग ॥३॥
वैदिक विधिसे पिताका अन्त्येष्टि-कर्म करके भरतजीने सब लोगोंको साथ ले लिया और श्रीरामके वियोगमें व्याकुल होकर वे चित्रकूटको चल पड़े ॥३॥
राम दरस हियँ हरषु बड़ भूपति मरन बिषादु ।
सोचत सकल समान सुनि राम भरत संबादु ॥४॥
श्रीरामके दर्शनसे ( सबके ) हृदयमें बडी़ प्रसन्नता है, ( साथ ही ) महाराज दशरथकी मृत्युका दुःख ( भी ) है । अब श्रीराम तथा भरतका परस्पर वार्तालाप सुनकर समस्त समाज चिन्ता करने लगा है ॥४॥
( प्रश्न फल असफलता तथा दुःखसूचक है । )
सुनि सिख आसिष पाँवरी पाइ नाइ पद माथ ।
चले अवध संताप बस बिकल लोग सब साथ ॥५॥
( प्रभुकी ) शिक्षा सुनकर, आशीर्वाद तथा चरण पादुका पाकर एवं उनके चरणींमें मस्तक झुकाकर सन्तापवश ( दुःखित चित्त ) भरत अयोध्या चले साथके सभी लोग व्याकुल हैं ॥५॥
( प्रश्न फल अशुभ है ॥ )
भरत नेम ब्रत धरम सुभ राम चरन अनुराग ।
सगुन समुझि साहस करिय, सिद्ध होइ जप जाग ॥६॥
श्रीभरतजीके शुभ नियम व्रत, धर्माचरण तथा श्रीरामके चरणोंमें प्रेमको उत्तम शकुन समझकर साहसपूर्वक ( कार्य प्रारम्भ ) करो; इससे जप और यज्ञ सिद्ध ( सफल ) होंगे ॥६॥
चित्रकुट सब दीन बसत प्रभु सिय लखन समेत ।
राम नाम जप जापकहि तुलसी अभिमत देत ॥७॥
प्रभु श्रीराम श्रीजानकीजी तथा ॥ लक्ष्मणजीके साथ सर्वदा चित्रकूटमें निवास करतें हैं । तुलसीदासजी कहते हैं की श्रीराम नामका जप जापकको अभीष्ट फल देता है ॥७॥
( जप आदि साधन सफल होंगे । )