धीर बीर रघुबीर प्रिय सुमिरि समीर कुमारु ।
अगम सुगम सब काज करु, करतल सिद्धि बिचारु ॥१॥
धैर्यशाली वीर रघुनाथजीके प्रिय श्रीहनुमान्जीका स्मरण करके कठिन या सरल - जो भी कार्य करो, सबकी सफलता हाथमें आयी हुई समझो ॥१॥
सुमिरि सत्रु सूदन चरन सुमंगल मानि ।
परपुर बाद बिबाद जय जूझ जुआ जय जानि ॥२॥
श्रीशत्रुघ्नजीके चरणोका स्मरण करो । यह शकुन मंगलप्रद मानो । दुसरेके नगरमें वाद विवादमें विजय तथा युद्ध और जुएमें भी विजय समझो ॥२॥
सेवक सखा सुबंधु हित सगुन बिचारु बिसेषि ।
भरत नाम गुनगन बिमल सुमिरि सत्य सब लेखि ॥३॥
विशेषरूपसे सेवकों, मित्रों तथा अच्छे ( अनुकूल ) भाइयोंके लिये इस शकुनका विचार है । श्रीभरतजीके नाम तथा उनके निर्मल गुणोंका स्मरण करके सब ( कार्य ) सत्य ( सफल ) समझो ॥३॥
साहिब समरथ सीलनिधि सेवत सुलभ सुजान ।
राम सुमिरि सेइअ सुप्रभ, सगुन कहब कल्यान ॥४॥
श्रीराम शक्ति-संपन्न, शील-निधान एवं परम सयाने स्वामी हैं; उनकी अत्यन्त सुलभ है । उन श्रीरामका स्मरण करके उत्तम स्वामीकी सेवा करो । इस शकुनकी ( नौकरी आदिके लिये ) हम मंगलमय कहेंगे ॥४॥
सुकृत सील सोभा अवधि सीय सुमंगल खानि ।
सुमिरि सगुन तिय धर्म हित कहब सुमंगल जानि ॥५॥
श्रीजानकीजी पुण्य, शील और सौन्दर्यकी सीमा तथा मंगलकी खानी है; उनका स्मरण करो । इस शकुनको हम मंगलकारी जानकर स्त्रियोंके पातिव्रत धर्मके अनुकुल कहेंगे ॥५॥
ललित लखन मूरति हृदयँ आनि धरें धनु बान ।
करहु काज सुभ सगुन सब मुद मंगल कल्यान ॥६॥
धनुष्य बाण लिये लक्ष्मणजीकी सुन्दर मूर्ति हृदयमें ले आकर कार्य करो । शकुन शूभ है । सब प्रकारसे आनन्दमंगल एवं कल्याण होगा ॥६॥
राम नाम पर राम ते प्रीति प्रतीति भरोस ।
सो तुलसी सुमिरत सकल सगुन सुमंगल कोस ॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि मेरा प्रेम, विश्वास और भरोसा श्रीरामसे अधिक राम नामपर है । उस ( राम-नाम ) का स्मरण करनेसे शकुन सभी सुमड्गलका कोष हो जाता है ॥७॥