घर घर अवध बधावने, मुदित नगर नर नारि ।
बरषि सुमन हरषहिं बिबुध, बिधि त्रिपुरारि मुरारि ॥१॥
अयोध्याके प्रत्येक घरमें बधाई बज रही हैं । नगरके नर नारी सब आनन्दित हैं । पुष्प - वर्षा करके देवता, ब्रह्माजी, शंकरजी और विष्णुभगवान् प्रसन्न हो रहे हैं ॥१॥
( प्रश्न - फल श्रेष्ठ है । )
मंगल गान निसान नभ, नगर मुदित नर नारि ।
भूप सुकृत सुरतरु निरखि फरे चारु फल चारि ॥२॥
आकाशमें ( देवताओंद्वारा ) मंगल-नाग हो रहा हैं तथा नगारे बज रहे हैं, नगरके स्त्री-पुरुष महाराज दशरथके पुण्यरूपी कल्पवृक्षमें ( पुत्ररूपी ) चार सुन्दर फल लगे देखकर आनन्दमग्न हैं ॥२॥
( प्रश्न फल शुभ है । )
पुत्र काज कल्यान नृप दिए बहु भाँति ।
रहस बिबस रनिवास सब मुद मंगल दिन राति ॥३॥
पुत्रोंके कल्याणके लिये महाराजने बहुत प्रकारसे दान दिये । पूरा रनिवास आनन्दमें मग्न है । दिन-रात आनन्दमंगल हो रहा है ॥३॥
( प्रश्न फल श्रेष्ठ है । )
अनुदिन अवध बधावने, नित नव मंगल मोद ।
मुदित मातु पितु लोग लखि रघुबर बाल बिनोद ॥४॥
अयोध्यामें प्रतिदिन बधाइके बाजे बज रहे हैं । नित्य नवीन आनन्द- मंगल हो रहा है । श्रीरघुनाथजीकी बालक्रिडा़ देखकर माताएँ, पिता तथा सब लोग प्रसन्न होते हैं ॥४॥
( प्रश्न - फल उत्तम है । )
करनबेध चूडा़करन लौकिक बैदिक काज ।
गुरु आयसु भूपति करत मंगल साज समाज ॥५॥
गुरुदेवकी आज्ञासे महाराज मंगल-साज सजाकर कर्णवेध, चूडा़करण ( मुण्डन ) आदि लौकिक-वैदिक विधियेंसहित वे समाजके साथ करते हैं ॥५॥
( प्रश्न - फल शुभ है । )
राज अजिर राजत रुचित कोसल पालक बाल ।
जानु पानि चर चरित बर सगुन सुमंगल माल ॥६॥
राजभवनके आँगनमें कोसलनरेश महाराज दशरथके सुन्दर बालक घुटनों तथा हाथोंके बल चलते एवं सुन्दर चरित ( क्रीडा़ ) करते सुशोभित होते हैं । यह शकुन सुमड्गलोंकी माला ( सदा कल्याणकारी ) है ॥६॥
लहे मातु पितु भोग बस सुत जग जलधि ललाम ।
पुत्र लाभ हित सगुन सुभ, तुलसी सुमिरहु राम ॥७॥
माता पिताने सौभाग्यवश संसार-सागरमें रत्नस्वरूप पुत्र पाये । तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीरामका स्मरण करो, यह शकुन पुत्र-प्राप्तिके लिये शुभ है ॥७॥