जनकनंदिनी जनकपुर जब तें प्रगटीं आइ ।
तब तें सब सुखसंपदा अधिक अधिक अधिकाइ ॥१॥
जबसे जनकपुरमें श्रीसीताजी आकर प्रकट हुई, तबसे वहाँ सभी सुख एवं सम्पत्तियाँ दिनोंदिन अधिकाधिक बढ़ती जाती हैं ॥१॥
( यह शकुन सुख सम्पत्तिकी प्राप्ति तथा उन्नतिकी सूचना देता है । )
सीय स्वयंबर जनकपुर सुनि सुनि सकल नरेस ।
आए साज समाज सजि भूषन बसन सुदेस ॥२॥
सीताजीके स्वयंवरका समाचार सुनकर सभी राजा आभुषणा और वस्त्रोंसें भली प्रकार सजकर अपना समाज समाकर जनकपुर आये ॥२॥
( प्रश्न-फल शुभ है । )
चले मुदित कौसिक अवध सगुन सुमंगल साथ ।
आए सुनि सनमानि गृहँ आने कोसलनाथ ॥३॥
महर्षि विश्वामित्र प्रसन्न होकर अयोध्या चले । श्रेष्ठ मंगलदायक शकुन उनके साथ-साथ चल रहे थे - मार्गमें होते जाते थे । महाराज दशरथ उनका आगमन सुनकर ( आगे जाकर ) आदरपूर्वक उन्हें राजभवनमें ले आये ॥३॥
( प्रश्न फल श्रेष्ठ है । )
सादर सोरह भाँति नृप पूजि पहुनई कीन्हि ।
बिनय बडा़ई देखि मुनि अभिमत आसिष दीन्हि ॥४॥
महाराज दशरथने आदरपूर्वक षोडशोपचारसे ( विश्वामित्रजीका ) पूजन करके आतिथ्य सत्कार किया । ( महाराजका ) विनम्रभाव तथा सम्मान देखकर मुनि ( विश्वामित्रजी ) ने अभीष्ट आशीर्वाद दिया ॥४॥
( प्रश्न- फल उत्तम है । )
मुनि माँग दसरथ दिए रामु लखनु दोउ भाइ ।
पाइ सगुन फल सुकृत फल प्रमुदित चले लेवाइ ॥५॥
मुनिके माँगनेपर महाराज दशरथने उन्हें श्रीराम-लक्ष्मण दोनों भाइयोंको सौंप दिया । ( पहिले हुए ) शकुनोंका फल तथा अपने पुण्योंका फल पा अत्यन्त प्रसन्न हो ( मुनि दोनों भाइयोंको ) साथ ले चले ॥५॥
( प्रश्न - फल श्रेष्ठ है । )
स्यामल गौर किसोर बर धरें तुन धनु बान ।
सोहत कौसिक सहित मग मुद मंगल कल्यान ॥६॥
साँवले और गोरे श्रेष्ठ किशोर ( दोनों भाई) तरकस और धनुष्य-बाण लिये विश्वामित्रजीके साथ मार्गमें ऐसे सुशोभित हैं, मानो ( मूर्तिमान ) आनन्द मंगल एवं कल्याण हों ॥६॥
( प्रश्न फल उत्तम है । )
सैल सरित सर बाग बन, मृग बिहंग बहुरंग ।
तुलसी देखत जात प्रभु मुदित गाधिसुत संग ॥७॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु पर्वत, नदी, सरोवर, वन, उपवन तथा अनेक रंगोके पशु-पक्षी देखते हुए आनन्दित हो विश्वामित्रजीके साथ जा रहे हैं ॥७॥
( यात्रा सुखद होगी । )