बाल बिभुषन बसन धर, धूरि धूसरित अंग ।
बालकेलि रघुबर करत बाल बंधु सब संग ॥१॥
श्रीरघुनाथजी बालकोपयुक्त आभुषण और वस्त्र पहिने बालक्रीडा़ कर रहे हैं । उनका शरीर धूलिसे सना हैं और साथमें छोटे भाई तथा अन्य बालक हैं ॥१॥
( प्रश्न-फल शुभ है ।)
राम भरत लछिमन ललित सत्रुसमन सुभ नाम ।
सुमिरत दसरथ सुवन सब पूजिहिं सब मन काम ॥२॥
श्रीराम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न-ये सुन्दर शुभ नाम हैं । महाराज दशरथके इन पुत्रोका स्मरण करनेसे सभी मनोकामनाएँ पूरी होंगी ॥२॥
नाम ललित लीला ललित ललित रूप रघुनाथ ।
ललित बसन भूषन ललित ललित अनुज सिसु साथ ॥३॥
श्रीरघुनाजीका नाम सुन्दर है, लीलाएँ सुन्दर हैं, स्वरूप सुन्दर है, वस्त्र सुन्दर हैं आभुषण सुन्दर हैं तथा छोटे भाई एवं साथके बालक भी सुन्दर हैं ॥३॥
( प्रश्न - फल उत्तम हैं । )
सुदिन साधि मंगल किए, दिए भूप ब्रतबंध ।
अवध बधाव ब्रिलोकि सुर बरषत सुमन सुगंध ॥४॥
महाराज दशरथने शुभ दिन शोधकर मंगल-कर्य करके ( पुत्रोंका ) यज्ञोपवीत-संस्कार कराया । अयोध्यामें बधाईके बाजे बजते देख देवता सुगन्धित पुष्पोंकी वर्षा कर रहे हैं ॥४॥
( प्रश्न - फल शुभ है । )
भूपति भूसुर भाट नट जाचक पुर नर नारि ।
दिए दान सनमानि सब, पूजे कुल अनुहारि ॥५॥
महराजने ब्राह्मण, भाट, नट भिक्षुक तथा नगरके सभी स्त्री-पुरुषोकें उनके कुलके अनुसार सम्मानपूर्वक दान देकर उनकी पूजा की ॥५॥
( प्रश्न-फल श्रेष्ठ है । )
सखीं सुआसिनि बिप्रतिय सनमानीं सब रायँ ।
ईस मनाय असीस सुभ देहिं सनेह सुभायँ ॥६॥
महाराजने ( रानियोंकी ) सखियों, सौभाग्यवती स्त्रियों तथा ब्राह्मणोंकीं स्त्रियों- सबका सम्मान किया । वे स्वाभाविक प्रेमवश ईश्वरको मनाकर शुभाशीर्वाद देती हैं ॥६॥
( प्रश्न फल उत्तम है । )
राम काज कल्यान सब सगुन सुमंगल मूल ।
चिर जीवहु तुलसीस सब , कहि सुर बरषहिं फुल ॥७॥
श्रीरामचंद्रजीके कल्याणके लिये सभी सुमंगलोंके मुल ( अत्यन्त कल्याणकारी ) शकुन हो रहा हैं । तुलसीदासके सब स्वामी ( चारों भाई ) चिरंजीवी हों, यह कहकर देवता पुष्पवर्षा कर रहे हैं ॥७॥
( प्रश्न - फल शुभ है । )