सुधा साधु सुरतरु सुमन सुफल सुहावनि बात ।
तुलसी सीतापति भगति, सगुन सुमंगल सात ॥१॥
तुलसीदासजी कहते हैं कि अमृत, साधु, कल्पवृक्ष, पुष्प, अच्छे फल, सुहावनी बात और श्रीरघुनाथजीकी भक्ति ये सात मंगलदायक शकुन हैं ॥१॥
( प्रश्न फल श्रेष्ठ है । )
सिद्ध समागम संपदा सदन सरीर सुपास ।
सीतानाथ प्रसाद सुभ सगुन सुमंगल बास ॥२॥
सिद्ध पुरुषोंसे भेंट सम्पत्ति, घर और शरीर ( स्वास्थ्य ) का सुख देनेवाली है । श्रीसीतानाथकी कृपासे यह शुभ शकुन परम मंगलका निवास है ॥२॥
कौसल्या कल्यानमय मूरति करत प्रनामु ।
सगुन सुमंगल काज सुभ कृपा करहिं सिय रामु ॥३॥
कल्याणकी मूर्ति कौसल्याजीको प्रणाम करनेसे श्रीसीताराम कृपा करते हैं, सभी कार्योंमे परम मंगल होता है । यह शकुन शुभ है ॥३॥
सुमिरि सुमित्रा नाम जग जे तिय लेहिं सुनेम ।
सुवन लखन रिपुदवन से पावहिं पति पद प्रेम ॥४॥
जो नारियाँ दृढ़ नियमपूर्वक संसारमें श्रीसुमित्राजीका नाम लेती ( जपती ) और उनका स्मरण करती हैं, वे लक्ष्मण और शत्रुघ्नके समान पुत्र तथा पतिके चरणोंके प्रेम पाती हैं ॥४॥
( शकुन स्त्रियोंके लिये पुत्र तथा पति-प्रेमकी प्राप्तिका सूचक है । )
दसरथ नाम सुकामतरु फलइ सकल कल्यान ।
धरनि धाम धन धरम सुख सुत गुन रूप निधान ॥५॥
महाराज दशरथका नाम उत्तम कल्पवृक्षके समान है, समस्त कल्याणरूप फल फलता ( देता ) है । पृथ्वी, घर, धन, धर्म,सुख तथा गुण और रूपके निधान पुत्र प्राप्त होंगे ॥५॥
कलह कपट कलि कैकई सुमिरत काज नसाइ ।
हानि मीचु दारिद दुरित असगुन असुभ अघाइ ॥६॥
झगडा़ कपट एवं कलियुगकी मूर्ति कैकेयीका स्मरण करनेसे कार्य नष्ट हो जाता है । यह हानि, मृत्यु, दरिद्रता तथा पापसुचक अत्यन्त अशुभ अपशकुन है ॥६॥
राम बाम दिसि जानकी लखनु दाहिनी ओर ।
ध्यान सकल कल्यानमय, सुरतरू तुलसी तोर ॥७॥
श्रीरामजीकी बायीं ओर श्रीजानकीजी और दाहिनी ओर श्रीलक्ष्मणजी हैं, इस छबिका ध्यान सब प्रकार कल्याणमय है । तुलसीदासजी कहते हैं कि ( यह ध्यान ) तुम्हारे लिये तो कल्पवृक्ष ( अर्थात् सभी मनोरथ पूर्ण करनेवाला) है ॥७॥