रामज्ञा प्रश्न - सप्तम सर्ग - सप्तक ४

गोस्वामी तुलसीदासजीने श्री. गंगाराम ज्योतिषीके लिये रामाज्ञा-प्रश्नकी रचना की थी, जो आजभी उपयोगी है ।


मध्यम दिन मध्यम दसा मध्यम सकल समाज ।

नाइ माथ रघुनाथ पद, जानब मध्यम काज ॥१॥

दिन मध्यम है, दशा मध्यम है, सब समाज ( योग ) मध्यम हैं, श्रीरघुनाथजीके चरणोंमें मस्तक झुकाकर ( प्रणाम करके ) कार्य करो, मध्यम फल ( विशेष हानि-लाभ नहीं ) होगा ॥१॥

हित पर बढ़‍इ बिरोधु जब, अनहित पर अनुराग ।

राम बिमुख बिधि बामगत, सगुन अघाइ अभाग ॥२॥

जब दूसरोंकी भलाईसे ( अथवा हितैषीके साथ ) विरोध बढे़ दुसरोंकी बुराईसे ( अथवा बुरा चाहनेवालेसे ) प्रेम हो तथा मनुष्य श्रीरामसे मुँह मोड़ ले तो ( इसके लिये ) विधाता ही उलटे हो गये हैं । यह शकुन भरपुर दुर्भाग्य-से-दुर्भाग्यका सूचक है ॥२॥

कृपनु देइ पाइय परो, बिनु साधन सिधि होइ ।

सीतापति सनमुख समुझि जो कीजिअ सुभ होइ ॥३॥

जब कृपण कुछ दे, कहीं पडा़ हुआ ( धन या सामान ) मिल जाय अथवा बिना किसी साधनके सफलता प्राप्त हो तो श्रीरघुनाथजीको अनुकूल समझो जो कुछ ( इस समय ) किया जायगा, शुभ होगा ॥३॥

पहिलें हित परिनाम गत, बीच बीच भल पोच ।

सगुन कहब अस राम गति कहबि समेत सकोच ॥४॥

( अत्यन्त ) संकोचपूर्वक मैं शकुनका फल यह कहूँगा अथवा श्रीरामकी गति ( इच्छा ) ही ऐसी कहूँगा कि ( पूछे गये कार्यमें ) पहिले भलाई होगी, किन्तु अन्तिम फल बुरा होगा और बीच-बीचमें अच्छाई- बुराई दोनों आती रहेंगी ॥४॥

रमा रमापति गौरि हर सीता राम सनेहु ।

दंपति हित संपति सकल, सगुन सुमंगल गेहु ॥५॥

श्रीलक्ष्मी - नारायण, गौरि-शंकर तथा सीता-राममें प्रेम समस्त सम्पत्ति देनेवाला है । दम्पतिके लिये यह शकुन श्रेष्ठ मंगलका घर है ॥५॥

प्रीति प्रतीत न राम पद, बडी आस बड़ लोभ ।

नहिं सपनेहुँ संतोष सुख, जहाँ तहाँ मन छोभ ॥६॥

श्रीरामके चरणोंमें प्रेम और विश्र्वास है नहीं बडीं-बडी़ आशाएँ हैं बडा़ लोभ है । ( फलतः ) स्वप्रमें भी सन्तोष और सुख नहीं मिलेगा, जहाँ तहाँ ( सर्वत्र ) मनमें अशान्ति रहेगी ॥६॥

( प्रश्‍न-फल अशुभ है । )

पय नहाइ फल खाइ जपु राम नाम षट मास ।

सगुन सुमंगल सिद्धि सब करतल तुलसीदास ॥७॥

पयस्विनी नदीमें स्नान करके, फल खाकर छः महिने राम-नामका जप करो । तुलसीदासजी कहते हैं कि यह शकुन ( यह साधन भी ) परम मंगलदायक हैं सभी सिद्धियाँ ( सफलताएँ ) हाथमें आयी हुई समझो ॥७॥

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Last Updated : January 22, 2014

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