बड़ कलेस कारज अलप, बडी़ आस लहु लाहु ।
उदासीन सीता रमन, समय सरिस निरबाहु ॥१॥
बडा़ कष्ट उठानेपर थोडा़-सा कार्य होगा, बडी़ आशा होगी, किन्तु लाभ थोडा़ होगा । श्रीसीतानाथ प्रभुकी ओरसे उदासीनता रहेगी , समयके अनुसार ( किसी प्रकार ) निर्वाहमात्र हो जायगा ॥१॥
दस दिसि दुख दारिद दुरित, दुसह दसा दिन दोष ।
फेरे लोचन राम अब, सनमुख साज सरोष ॥२॥
श्रीरामके अब नेत्र फेर लेने ( उदासीन हो जाने ) से दसों दिशाओंमें ( सर्वत्र ) दुःख दरिद्रता, पाप, असहनीय दशा प्राप्त होगी । दिनोंका दोष ( दुर्भाग्य ) क्रोध करके साज सजाकर सामने आ गया है ॥२॥
खेती बनिज न भीख भलि, अफल उपाय कदंब ।
कुसमय जानब बाम बिधि, राम नाम अवलंब ॥३॥
( इस समय ) न खेती करना अच्छा, न व्यापार करना और न भीख माँगना । सभी उपाय असफल होंगे, अभी बुरा समय आया समझो, विधाता प्रतिकूल है ।( इस समय ) राम-नाम ही ( एकमात्र ) सहारा है ॥३॥
पुरुषारथ स्वारथ सकल परमारथ परिनाम ।
सुलभ सिद्धि सब सगुन सुभ, सुमिरत सीताराम ॥४॥
श्रीसीता-रामके स्मरणसे स्वार्थके लिये किये गये मनुष्यके सभी प्रयत्न परमार्थमें परिणत हो जाते हैं तथा सभी सिद्धियाँ सुलभ हो जाती हैं । यह शकुन शुभ है ॥४॥
भानु भाग तजि भाल थलु, आलस ग्रसे उपाउ ।
असुभ अमंगल सगुन सुनि, सरन रामकें आउ ॥५॥
भाग्य ललाटका स्थान छोड़्कर भाग गया है ( सौभाग्यका समय रहा नहीं ) । उपायोंको आलस्यने ग्रस्त कर लिया है । ( प्रयत्न समयपर हो नहीं सकेगा । ) अमंगलकारी यह अशुभ शकुन सुनकर ( अब ) श्रीरामकी शरणमें आ जाओ ( वे ही रक्षा करनेमें समर्थ हैं । ) ॥५॥
गइ बरषा करषक बिकल, सूखत सालि सुनाज ।
कुसमय कुसगुन कलह कलि, प्रजहि कलेसु कुराज ॥६॥
वर्षा चली जानेसे भली प्रकार जमा हुआ धान सुख रह है, किसान व्याकुल हो रहे हैं । यह अपशकुन बतलाता है कि बुरा समय रहेगा, लडा़ई-झगडा़ होगा, बुरे शासनके कारण प्रजाको कष्ट होगा ॥६॥
तुलसी तुलसी राम सिय, सुमिरहु लखन समेत ।
दिन दिन उदउ अनंद अब, सगुन सुमंगल देत ॥७॥
तुलसीदासजी ( अपने आपसे ) कहते हैं- तुलसीका तथा श्रीराम-जानकी एवं लक्ष्मणका स्मरण करो । अब दिनों-दिन अभ्युदय एवं आनन्द होगा । यह शकुन परम मंगलदायक है ॥७॥