पुरुकुत्स n. अंगिराकुल के कुत्स नामक उपगोत्रकार के तीन प्रवरों में से एक । एक मंत्रद्रष्टा के रुप में भी इसका निर्देश प्राप्त है (अंगिरस् देखिये) ।
पुरुकुत्स (ऐश्वाक) n. (सू.इ.) पुरु देश का एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा
[श. ब्रा.१३.५.४.५] । सुविख्यात वैदिक राजा सुदास के समकालिन राजा के नाते से, इसका निर्देश ऋग्वेद में कई बार आया है
[ऋ.१.६३.७] । संभवतः दाशराज्ञ युद्ध में सुदास राजा ने इसे पराजित किया था
[ऋ.७.१८] । इस युद्ध में यह मारा अथवा पकडा गया था, जिसके बाद इसकी पत्नी पुरुकुत्सानी ने ‘पुरुओं’ के भाग्य को लौटाने के लिये, एक पुत्र की उत्पत्ति थी की । उस पुत्र का नाम त्रसदस्यु था
[ऋ. ४.४२.८] ; एवं उसे ‘पौरुकुत्स्य’
[ऋ.५.३३.८] ; तथा ‘पौरुकुत्सि’
[ऋ.७.१९.३] , नामांतर भी प्राप्त थे । दासों पर विजय पानेवाला पुरु राज के नाम से, पुरुकुत्स का निर्देश ऋग्वेद में प्राप्त है
[ऋ.६.२०.१०] । दिव्य अत्रों की सहायता से, यह अनेक युद्धों में विजित हुआ
[ऋ.१.११२,.७ १४] । ऋग्वेद में एक स्थान पर पुरुकुत्स को ‘दौर्गह’ विशेषण लगाया गया है
[ऋ.४.४२.८] । इससे प्रतीत होता है की, यह ‘दुर्गह’ का पुत्र या वंशज था । किंतु ‘सीग’ के अनुसार, ‘दौर्गह’ किसी अश्व का नाम हो कर, पुरुकुत्स के पुत्रप्राप्ति के लिये आयोजित किये अश्वमेध यज्ञ की ओर संकेत करता है
[सा.ऋ.९६-१०२] पुराणों में भी पुरुकुत्स का निर्देश कई बार प्राप्त है । भागवत, विष्णु तथा वायु के अनुसार, यह इक्ष्वाकुवंशीय राजा मांधाता का बिंदुमती से उत्पन्न पुत्र था । नागकन्या नर्मदा इसकी पत्नी थी । नागों से शत्रुता करनेवाले गंधर्वों का इसने नाश किया जिस कारण नागों ने इसे वर दिया, ‘तुम्हारा नाम लेते ही, किसी भी आदमी को सर्पदंश के भय से छुटकारा प्राप्त होगा’
[भा.९.६.३८,९.७.३] । इसके वसुद, त्रसदस्यु, तथा अनरण्य नामक तीन पुत्र थे । पदम के अनुसार, इसके धर्मसेतु, मुचकुंड तथा शक्तामित्र नमक तीन भाई तथा दुःसह नामक एक पुत्र था
[पद्म. सृ.८] । मत्स्य के अनुसार इसे ‘पुरुकृत्’ नामांतर भी प्राप्त है। कुरुक्षेत्र के वन में तपस्या कर, इसने ‘सिद्धि’ प्राप्ति की थी, जिस कारण यह स्वर्गलोक में पहुँच गया
[म.आश्व.२६.१२.१३] । यह यम सभा में रह कर, यम की उपासना करता था
[म.स.८.१३] ।