वालखिल्य n. एक ऋषिसमुदाय, जो अंगुष्ठ के आकार के साठ हज़ार ऋषियों से बना हुआ था । प्रजा उत्पन्न करने के लिए तपस्या करनेवाले प्रजापति के केशों से ये उत्पन्न हुए थे
[तै. आ. १.२३.३] ।
वालखिल्य n. ऋग्वेद में वालखिल्य नामक ग्यारह सूक्त हैं
[ऋ. ८. ४९-५९] , जिनका निर्देश ब्राह्मण ग्रंथों में ऋग्वेद के परिशिटात्मक सूक्तों के नाते से किया गया है
[ऐ. ब्रा. ५.१५.१, ३] ;
[कौ. ब्रा. ३०.४.८] ;
[पं. ब्रा. १३.११.३] ;
[ऐ. आ. ५.२.४] । तैत्तिरीय आरण्यक में इन सूक्तों के प्रणयन का श्रेय इन्हीं ऋषियों को दिया गया है
[तै. आ. १.२३] । एक ब्रह्मचारी ऋषिगण के नाते इनका निर्देश मैत्र्युपनिषद में प्राप्त है
[मैत्र्यु. २.३] ।
वालखिल्य n. इन ग्रंथों में इन्हें ब्रह्मापुत्र क्रतु के पुत्र कहा गया है, एवं इनकी माता का नाम सन्नति अथवा क्रिया बताया गया है
[विष्णु. १.१०] ;
[भा. ४.९.९] । वायु के अनुसार, इनका जन्म कुशदर्भों से हुआ था, एवं वारुणियज्ञ के कारण इन्हें अप्रहित तपःसामर्थ्य प्राप्त हुआ था
[वायु. ६५.५५, १०१.२१३] । इसी कारण, इन्हें ‘मनोज्व,’ ‘सर्वगत’ एवं ‘सार्वभौम’ कहा गया है ।
वालखिल्य n. इस समुदाय में से हरएक ऋषि कद से बहुत ही छोटा, याने कि अंगुष्ठ के मध्यभाग के बराबर शरीरवाला था । सूर्य के अनन्य भक्त होने के कारण, ये सूर्यलोक में रहते थे, एवं वहॉं पक्षियों की भाँति एक एक दाना बीन कर उसीसे ही अपना जीवननिर्वाह करते थे । सूर्यकिरणों का पान करते हुए, ये तपस्या में व्यग्र रहते थे । सूर्यकिरणों का पान करते हुए, ये तपस्या में व्यग्र रहते थे
[म. स. ११.१२२] । ब्रह्मांड के अनुसार, ये ब्रह्मलोक में रहते थे, एवं केवल वायु भक्षण करते थे
[ब्रह्मांड. २.२५.४] । अपने पिता क्रतु के समान ये भी पवित्र, सत्यवादी एवं व्रतपरायण
[म. आ. ६०.८] । प्रातःकाल से सायंकाल तक ये सूर्य के ‘गौरवस्तोत्र’ गाते गाते उसीके ही सम्मुख चलते थे । मृगछाला, चीर एवं वत्कल ये इनके वस्त्र रहते थे । ये वटवृक्ष की शाखा पर उल्टे लटक कर तपस्या करते थे ।
वालखिल्य n. एक बार कश्यप ऋषि ने पुत्र प्राप्ति के लिए एक यज्ञ का आयोजन किया। उस समय यज्ञ में सहाय्यता करने के लिए एक छोटी सी पलाश की टहनी पर लटक कर ये उपस्थित हुए। इनकी अंगुष्ठमात्र शरीरयष्टि देख कर बलाढ्य इंद्र ने इनका उपहास किया। तदुपरान्त अत्याधिक क्रुद्ध हो कर इन्होंनें एक नया इंद्र निर्माण करने का निश्र्चय किया, एवं इस हेतु एक यज्ञ का आयोजन किया। उस समय कश्यप ऋषि ने इन्हें बार बार समझाया एवं कहा, ‘देवराज इंद्र के स्थान पर अन्य इन्द्र को उत्पन्न करना उचित नहीं है । अतएव यही अच्छा है कि, आप देवों के नहीं, बल्कि पक्षियों के इन्द्र का निर्माण करे’। इसी समय, इंद्र भी इनकी शरण में आया । फिर कश्यप ऋषि के अनुरोध पर, देवेंद्र का निर्माण करने का अपना निश्र्चय इन्होंने छोड़ दिया, एवं अपने यज्ञ का फल कश्यप को प्रदान किया। वही फल आगे चल कर कश्यप ने विनता को दिया, जिससे खगेन्द्र गरुड का निर्माण हुआ
[म. आ. २६-२७] ; गरुड देखिये ।
वालखिल्य n. अपनी तपस्या के बल पर ये सिद्धमुनि एवं ऋषि बन गये थे
[मत्स्य. १२६.४५] । ये सर्व धर्मों के ज्ञात थे, एवं अपनी तपस्या से सृष्टि के समस्त पापों को दग्ध कर, अपने तेज़ से समस्त दिशाओं को प्रकाशित करते थे । इनके तपोबल पर ही सारा जग निर्भर था, एवं इन्ही की तपस्या, सत्य, एवं क्षमा के प्रभाव से संपूर्ण भूतों की स्थिति बनी रहती थी
[म. अनु. १४१-१४२] । इन्होंने सरस्वती नदी के तट पर यज्ञ किया था
[म. व. ८८.९] । ये पृथु राजा के मंत्री बने थे
[म. शां. ५९.११७] । दिवाली के समय, प्रकाशित किये जाने वाले आकाशदीप का महत्त्व सर्वप्रथम इन्होंने ही कथन किया था
[स्कंद. २.४.७] । इन्होंने चित्ररथ को कौशिक ऋषि की अस्थियाँ सरस्वती नदीं में विसर्जित कर मुक्ति प्राप्त कराने की सलाह दी थी
[भा. ६.८.४०] ।
वालखिल्य n. इनकी पुण्या एवं आत्म सुमति नामक दो कनिष्ठ बहनों का निर्देश वायु में प्राप्त है
[वायु. २८.३३] ।