हयग्रीव n. विष्णु का एक अवतार। यह अश्वमुखी होने के कारण इसे ‘हयग्रीव’ नाम प्राप्त हुआ था । इसे ‘हयशिरस्’ ‘अश्वशिरस्’ नामांतर भी प्राप्त थे (विष्णु देखिये) ।
हयग्रीव n. अगस्त्य ऋषि को कांची नगरी में इसके दिये दर्शन का वर्णन ब्रह्मांड में प्राप्त है, जहाँ इसे शंख, चक्र, अक्षवलय एवं ‘पुस्तक’ (ग्रंथ) धारण करनेवाला कहा गया है
[ब्रह्मांड. ४.५, ९.३५-४०] ।
हयग्रीव n. इस साहित्य में सर्वत्र इसे विष्णु का नहीं, बल्कि यज्ञ का अवतार कहा गया है । किन्तु तैत्तिरीय आरण्यक में यज्ञ को विष्णु का ही एक प्रतिरूप कथन किया गया है । इससे प्रतीत होता है कि, वैदिक एवं पौराणिक साहित्य मतें निर्दिष्ट हयग्रीवकथा का स्तोत्र एक ही है, जिसका प्रारंभिक रूप वैदिक साहित्य में पाया जाता है । पंचविश ब्राह्मण में हयग्रीव की कथा निम्नप्रकार बतायी गयी है । एक बार अग्नि, इंद्र, वायु एवं यज्ञ (विष्णु) ने एक यज्ञ किया । इस यज्ञ के प्रारंभ में यह तय हुआ था कि, यज्ञ को जो हविर्भाग प्राप्त होगा, वह सभी देवताओं में बाँट दिया जायेगा । उस समय यज्ञ को सर्वप्रथम हविर्भाव प्राप्त हुआ, जिसे ले कर वह भाग गया । इस कारण बाकी सारे देव इसका पीछा करने लगे । अपने दैवी धनुष की सहायता से यज्ञ ने सभी देवताओं को हरा दिया । अन्त में एक दीमक के द्वारा देवों ने यज्ञ के धनुष की प्रत्यंचा कटवा दी, एवं इस प्रकार असहाय हुए यज्ञ का मस्तक कटवा दिया । तत्पश्चात् अपने कृतकर्म के लिए यज्ञ देवों से माफ़ी माँगने लगा । इस पद देवों ने अश्विनों के द्वारा एक अश्वमुख यज्ञ के कबंध पर लगा दिया
[पं. ब्रा. ७.५.६] ;
[तै. आ. ५.१] ;
[तै. सं. ४.९.१] ।
हयग्रीव n. यही कथा स्कंद पुराण आदि पौराणिक साहित्य में कुछ मामूली फर्क के साथ दी गयी है । एक बार देवताओं की प्रतियोगिता में विष्णु सर्वश्रेष्ठ देव सिद्ध हुआ। इस कारण क्रुद्ध हो कर, ब्रह्मा ने उसे उसका टूट जाने का शाप दिया । आगे चल कर एक अश्वमुख लगा कर यह देवताओं के यज्ञ में शामिल हुआ । यज्ञसमाप्ति के पश्चात् इसने धर्मारण्य में तप किया, जहाँ शिव की कृपा से इसका अश्वमुख नष्ट को कर इसे अपना पूर्वरूप प्राप्त हुआ ।
हयग्रीव n. पौराणिक साहित्य में हयग्रीव एवं मधुकैटभ असुरों का वध करने के लिए श्रीविष्णु का हयग्रीव नामक अवतार होने का निर्देश प्राप्त है । एक बार हयग्रीव नामक असुर ने पृथ्वी में स्थित वेदों का हरण किया । उस पर ब्रह्मादि सारे देव हयग्रीव की शिकायत ले कर विष्णु के पास गये । पश्चात् विष्णु आदि देव हयग्रीव के पास पहुँच गये, जहाँ इन्होनें देखा कि, वह असुर भूमि पर अपने धनुष रख कर पास ही सो गया है । तदुपरांत विष्णु ने पास ही स्थित दीमक की सहायता से हयग्रीव असुर केधनुष की प्रत्यंचा को तोड़ डाला, एवं उसका नाश किया । हयग्रीव के धनुष की प्रत्यंचा टूटते ही विष्णु का स्वयं का मुख भी टूट गया, जो आगे चल कर विश्र्वकर्मन् की सहायता से पुनः जोड़ा गया । उस समय विश्वकर्मन् ने विष्णु को जो मुख प्रदान किया था, वह अश्व का था । इस कारण हयग्रीव असुर का वध करनेवाले इस अवतार को ‘हयग्रीव’ नाम प्राप्त हुआ
[दे. भा. १.५] । देवी भागवत के अनुसार, हयग्रीव असुर को देवी का आशीर्वाद था कि, केवल ‘हयग्रीव’ नाम धारण करनेवाला व्यक्ति ही उसका वध कर सकती है । इस कारण हयग्रीव का अवतार ले कर विष्णु को इसका वध करना पड़ा । विष्णु के इस अवतार का निर्देश महाभारत में भी प्राप्त है
[म. उ. १२८.४९] ;
[म. शां. १२२.४६, २३६.५६] । रसातल में रहनेवाले मधु एवं कैकटक नामक राक्षसों का वध भी इसी अवतवार के द्वारा होने का निर्देश महाभारत में प्राप्त है
[म. शां. ३३५.५२-५५] ;
[भा. ५.१८. १-६] ।
हयग्रीव n. इसीके आराधना से पंचाल ऋषि ने वेदों का क्रमपाठ प्राप्त किया था
[म. शां. ३३५.६९-७१] ।
हयग्रीव II. n. एक असुर, जो कश्यप एवं दिति के पुत्रों में से एक था
[पद्म. उ. २३०] । इसका जन्म पूर्वकल्प की रात्रि में हुआ था । पृथ्वीप्रलय के समय इसने वेदों का हरण किया जिन्हें हयग्रीव का अवतार ले कर श्रीविष्णु ने पुनः प्राप्त किया (हयग्रीव देखिये) । भागवत के अनुसार, इसका वध हयग्रीव अवतार के द्वारा नहीं, बल्कि विष्णु के मत्स्यावतार के द्वारा हुआ था
[भा. ८.२४. ९-५७] ।
हयग्रीव III. n. एक दानव, जो कश्यप एवं दनु के पुत्रों में से एक था । यह वृत्र का
[भा. ६.१०.१९] ; हिरण्यकशिपु का
[भा. ७.२.४] ; एवं तारकासुर का अनुगामी था ।
हयग्रीव IV. n. एक असुर, जो नरकासुर का प्रमुख अनुयायी, एवं उसके राज्य की रक्षा करनेवाले पाँच प्रमुख असुरों में से एक था । श्रीकृष्ण ने इसका वध किया
[म. स. परि. १.१९.१३७७] ;
[म.उ. १२८.४९] ।
हयग्रीव V. n. एक राजा, जिसने क्षात्रधर्मानुसार उत्तम रीति से राज्य कर मुक्ति प्राप्त की थी
[म. शां. २५. २२-३३] ।
हयग्रीव VI. n. विदेशवंश का एक कुलांगार राजा
[म. उ. ७२.१५] ।