गोभिल n. वत्समित्र का शिष्य
[वं.ब्रा.३] यह कुलनाम अनेक लोगों के लिये प्रयुक्त होता है [ पूषमित्र, अश्वमित्र,, वरुणमित्र, मूलमित्र, गौग्लुवीपुत्र तथा बृहद्वसु देखिये ] । यह कश्यप कुल का एक गोत्रकार था । गोभिलगृह्यसूत्र, गोबिलगृह्यकारिका, गोबिलपरिशिष्ठ आदि इसके द्वारा रचित ग्रंथ हैं (C.C.) इनमें से गोभिलस्मृति आनंदाश्रम में छपवायीं गई है । उसमें तीन प्रपाठक है । इस ग्रंथ का आरंभ एवं अंत पढने से लगता है कि, उसका नाम कर्मप्रदीप रहा होगा । उसमें श्राद्धकर्मादि लक्षणें, नित्यकर्म, संस्कार आदि का निरुपण है ।यह स्मृति गोबिलगृह्यसूत्र के स्पष्टीकरणार्थ रची गयी । हेमाद्रि ने गोबिले को राणायनीय तथा कौथुमशाखा का सूत्रकार माना है (द्राह्यायण देखिये) गोभिलसूत्र तथा खादिरसूत्र में पर्याप्त साम्य है ।
गोभिल II. n. कुबेर का दूत । विदर्भ देश के राजा सत्यकेतु की कन्या तथा उग्रसेन की स्त्री पद्मावती, एक दिन जलक्रीडा कर रही थी । कुबेर का गोभिल नामक दूत आकाशमार्ग से जा रहा था । यह पद्मावती का सौंदर्य देख कर मोहित हुआ । उसे अंतर्ज्ञान से पहचान कर, उसकी पाप्त के लिये इसने उग्रसेन का रुप धारण किया । पास ही एक वृक्ष के नीचे गाते हुए जा बैठा । इससे मोहित हो कर वह फँस गयी
[पद्म. भू. ४९] ।