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बिंबिसार श्रेणिय शिशुनाग

   
Script: Devanagari

बिंबिसार श्रेणिय शिशुनाग     

बिंबिसार श्रेणिय शिशुनाग n.  मगध देश का एक सुविख्यात सम्राट्, जो गौतम बुद्ध एवं वर्धमान महावीर के अनन्य उपासकों में से एक था । इसे ‘ श्रेण्य ’ एमं ‘ हर्यणक ’ नामांतर भी प्राप्त थे । इसका राज्यकाल ५२८ इ. पू. - ५०० इ. पू. माना जाता है । इसके पिता का नाम भट्टिय था, जो कुमारसेन राजा का सेनापति था । भट्टिय ने तालजंघ राजा के द्वारा कुमारसेन का वध करवा कर, इसे मगध देश के राजगद्दी पर बैठाया । राज्य पर आते ही इसने अंगराज ब्रह्मदत्त पर आक्रमण कर, आंगदेश का राज्य मगध राज्य में शामिल किया । पश्चात् लिच्छवी राजकुमारी चेल्लना एवं कोशलराजकुमारी से विवाह कर इसने कोशल एवं वृजि देशों से मैत्री संपादन की । महावग्ग के अनुसार, इसके राज्य का विस्तार तीन सौ योजन था, एवं उसमें अस्सी हजार ग्राम थे । इसके पूर्वकाल में मगध देश की राजधानी गिरिवज्र नगरी में थी । इसने उसे बदल कर ‘ राजगृह ’ नामक गयी राजधानी बसायी । इस नगर की रचना महागोविंद नामक स्थापत्यविशारद के द्वारा की गयी थी ।
बिंबिसार श्रेणिय शिशुनाग n.  बौद्ध साहित्य के अनुसार, बिंबिसार एवं गौतम बुद्ध शुरु से ही अत्यंत परम मित्र थे, एवं सारनाथ में किये गये ‘ धर्मचक्रप्रवर्तन ’ के प्रवचन के पश्चात् गौतम बुद्ध सर्वप्रथम इससे ही मिलने आया था । तत्पश्चात् अपने परिवार के ग्यारह लोगों के साथ यह बौद्ध बन गया । अपने सारे जीवनकाल में यह बौद्धधर्म की सहायता करता रहा [विनय. १.३५]
बिंबिसार श्रेणिय शिशुनाग n.  बौद्ध एवं जैन साहित्य में, बिंबिसार के द्वारा बौद्ध एवं जैन धर्मों को स्वीकार किये जाने के निर्देश प्राप्त है । पौराणिक साहित्य में भी इसके द्वारा अनेक ब्राह्मणों की परामर्ष लेने का उल्लेख किया गया है । इससे प्रतीत होता है कि, यह किसी भी एक धर्म को स्वीकार न कर, तत्कालीन भारतीय परंपरा के अनुसार सभी धर्मौं का एवं धर्मप्रचारकों की समान रुप से परामर्श लेता था । इसके काल में बौद्धधर्म संघ विशेष क्रियाशील एवं संगठित था, जिस कारण जैन एवं पौराणिक साहित्य की अपेक्षा बौद्ध साहित्य में इसका निर्देश एवं कथाएँ विशेषरुप से पायी जाती हैं । अजातशत्रु, उदयन, महापद्म नंद, चंद्रगुप्त मौर्य आदि बौद्धकालीन समाट् जैन, हिन्दु एवं बौद्ध धर्म का समानरुप से आदर करते थे, जिससे प्रतीत होता है कि तत्कालीन राजा किसी एक धर्म को स्वीकार न कर सभी धर्मौं को आश्रय प्रदान करते थे ।
बिंबिसार श्रेणिय शिशुनाग n.  बिंबिसार का अन्त अत्यंत दुःखपूर्ण हुआ । इसके पुत्र अजातशत्रु को बुद्ध के एक शिष्य देवदत्त ने अपनी सिद्धि के प्रभाव से मोहित किया । पश्चात् देवदत्त ने अजातशत्रु को अपने पिता बिंबिसार का वध करने की मंत्रणा दी । किन्तु यह प्रयत्न असफल हुआ, एवं उस प्रयत्न में अजातशत्रु देवदत्त के साथ पकडा गया । पश्चात् इसने अजातशत्रु को क्षमा कर उसे मगधदेश का राज्य प्रदान किया, एवं यह स्वयं राज्यनिवृत्त हुआ । राज्यसत्ता प्राप्त होते ही अजातशत्रु ने इसे कैद कर लिया, एवं इसे भूखा प्यासा रख कर इस पर अनन्वित - अत्याचार करना प्रारंभ किया । इसका कोठरी में घूमना फिरना बंद करने के लिए नाई के द्वारा उसके पैरों में व्रण उत्पन्न कराये, एवं उसमें नमक एवं मद्यार्क भरवाया । पश्चात् अजातशत्रु ने कोयले के द्वारा इसके पाँव जला दिये । उसी क्लेश में इसकी मृत्यु हो गयी ।
बिंबिसार श्रेणिय शिशुनाग n.  इसके समकालीन राजाओं मे निम्नलिखित प्रमुख थे : - १. कोसलराज प्रसेनजित्, जो इसका सबसे बडा मित्र था, एवं जिसके कोसलादेवी नामक बहन से इसने विवाह किया था; २. तक्षशिला का राजा पुष्कलाति ३. उज्जैनी का राजा चंद्र प्रद्योत, जिसकी ऋग्णपरिचर्या के लिए इसने अपना राजवैद्य जीवक उज्जैनी नगरी में भेजा था; ४. रोरुक देश का राजा रुद्रायण ।
बिंबिसार श्रेणिय शिशुनाग n.  इसकी निम्नलिखित पत्नियाँ थी : - १. कोसलादेवी, जो कोसल देश के महाकोशल राजा की कन्या, एवं प्रसेनजित् राजा की बहन थी । इसके विवाह के समय महाकोशल राजा ने बिंबिसार राजा को काशीनगरी दहेज के रुप प्रदान की थी; २. क्षेमा; ३. पद्मावती, जो उज्जैनी नगरी की गणिका थी ।
बिंबिसार श्रेणिय शिशुनाग n.  इसके निम्नलिखित पाँच पुत्र थे : - १. अजातशत्रु; २. विमल; ३. दर्शक; ४. अभय; ५. शीलवन्त । इसकी मृत्यु के बाद, अजातशत्रु मगध देश का राजा बन गया ।
बिंबिसार श्रेणिय शिशुनाग n.  $वैशालि के आम्रपालि नामक गणिका से इसे द्वीमल कोंडन्न नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था । इनके अतिरिक्त इसेक सीसव, जयसेन नामक दो पुत्र, एवं चंडी नामक एक कन्या उत्पन्न हुई थी ।

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