विष्णुयशस् (कल्कि) n. विष्णु का दसवाँ अवतार, जो वर्तमान युग के अंत के समय सभ्भल नामक ग्राम में अवतीर्ण होनेवाला है
[भा. १.३.२५, १२.२.१८] । विष्णु का यह अवतार आश्र्वारूढ एवं खड्गधारी होगा। विष्णु का यह अवतार याज्ञवल्क्य के पुरस्कार से उत्पन्न होनेवाला है । यह अत्यंत पराक्रमी, महात्मा, सदाचारी एवंव प्रजाहितदक्ष होगा। इच्छा करते ही नाना प्रकार के अस्त्र, वाहन, कवच इसे प्राप्त होंगे।
विष्णुयशस् (कल्कि) n. कलियुग का अंत करने के लिए इसक प्रादुर्भाव होगा। यह म्लेच्छों का एवं बौद्धधर्मियों का संहार करेगा, एवं इस प्रकार नये सत्ययुग का प्रवर्तन करेगा
[म. व. १८८.८९-९३] । इसके अश्र्व का नाम देवदत्त होगा। इस अश्र्व की सहायता से यह अश्र्वमेध करेगा, एवं सारी पृथ्वी विधिपूर्वक, ब्राह्मणों को दे देगा। यह सदैव दस्युवध में तत्पर रह कर, समस्त पृथ्वी पर फिरता रहेगा। अपने द्वारा जीते हुए देशों में यह कृष्ण, मृगचर्म, शक्ति, त्रिशूल आदि अस्त्रशास्त्रों की स्थापना करेंगा। इसके द्वारा दस्युओं का नाश होने पर अधर्म का भी नाश हो जायेगा, एवं धर्म की वृद्धि होने लगेगी। इस प्रकार सत्ययुग का प्रारंभ होगा, एवं पृथ्वी के सभी मनुष्य सत्यधर्मपरायण होंगे। सत्ययुग के इस प्रारंभकाल में, चंद्र, सूर्य, गुरु एवं शुक्र ये चारों ग्रह एक राशि में आयेंगे। इस प्रकार सत्ययुग की स्थापना करनेवाला विष्णुयशस् चक्रवर्ती एवं युगप्रवर्तक सम्राट माना जाएगा। इस प्रकार अपना अवतारकार्य समाप्त करनेपर यह वन में तपस्या के लिए चला जायेगा। किन्तु इस जगत् के निवासी इसके शील स्वभाव का अनुकरण करते ही रहेंगे
[कूर्भ. १.३१.१२] ;
[वायु. ९८.१०४-११५] ;
[ब्रह्मांड. ३.७३.१०४-११०] ;
[ह. वं. १.४१.६४-६७] ।