म्लेच्छ n. एक जातिविशेष, जो नन्दिनी गौ के फेन से उत्पन्न हुयी थी । महाभारत में इनका वर्णन ‘मुण्ड’, ‘अर्धमुण्ड’, ‘जटिल’, एवं ‘जटिलानन’ शब्दों में किया गया है
[म.द्रो.६८.४४] । सर्वप्रथम ये लोग भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रदेश में रहते थे । किन्तु धर्म से भ्रष्ट हुए सारी जातियों को ‘म्लेच्छ’ सामान्य नाम मनुस्मृति के काल में दिये जाने लगा ।
म्लेच्छ n. शतपथ ब्राह्मण में म्लेच्छ भाषा का निर्देश प्राप्त है, जहॉं उसे अनार्य लोगों की बर्बर भाषा कहा गया है
[शा.ब्रा.३.२.१.२४] ।
म्लेच्छ n. युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में, म्लेच्छों का राजा भगदत्त समुद्रतटवर्ति म्लेच्छ लोगों के साथ उपस्थित हुआ था
[म.स.३१.१०] । महाभारत में सर्वत्र इन्हें नीच एवं धर्मभ्रष्ट माना गया है । प्रलय के पहले पृथ्वी पर म्लेच्छों का राज्य होने की, एवं विष्णुयशस् कल्कि के द्वारा इनका संहार होने की भविष्यवाणी वहॉं दी गयी है
[म.व.१८८.२९-८९] । युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ में, ब्राह्मणों को देने के बाद जो धन बचा हुआ था, वह शूद्र एवं म्लेच्छ लोगों ने उठा लिया
[म.आश्व.९१.२५] । युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय, भीमसेन ने अपने पूर्व-दिग्विजय में समुद्रतट पर रहनेवाले म्लेच्छ लोगों को जीता था, एवं उन से मणि, रत्न, सुवर्ण, रजत, चंदन आदि भेंटवस्तुएँ प्रात की थी
[म.स.२७.२५-२६] । सहदेव ने अपनी दक्षिण दिग्विजय में, एवं नकुल ने अपनी पश्चिम दिग्विजय में, इन लोगों पर विजय प्राप्त की थी
[म.स.२८.४४, २९.१५] । युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ के समय भी, अर्जुन ने इन्हे जीता था । इससे प्रतीत होता है कि, महाभारतकाल में इन लोगों के उपनिवेश पश्चिम, पूर्व एवं दक्षिण भार्त में समुद्र के तट पर भी थे । भारतीय युद्ध में ये लोग कौरवपक्ष में शामिल थे । इस युद्ध में, इन्होंने पाण्डवसेना पर क्रोधी गजराज छोड दिये थे
[म.क.१७.९] । किन्तु अर्जुन ने समस्त ‘जटिलानन’ म्लेच्छों का संहार किया
[म.द्रो.६८.४२] । यादवराजा सात्यकि ने भी इनका संहार किया था
[म.द्रो.९५.३६] । इनके अंग नामक राजा का वध नकुल के द्वारा हुआ था
[म.क.१४.१४-१७] ।