वृंदा n. एक दैत्यकुलोत्पन्न स्त्री, जो कालनेमि एवं स्वर्णा की कन्या, एवं जालंधर दैत्य की पत्नी थी
[पद्म. उ. ४] ;
[शिव. रुद्र. यु. १४] । जालंधर दैत्य की मृत्यु के पश्र्चात् इसने अग्निप्रवेश किया था । इसकी पतिभक्ति से विष्णु प्रसन्न हुए, एवं उन्होंने इसके अग्निप्रवेश के स्थान पर गौरी, लक्ष्मी एवं स्वरा के अंश से क्रमशः आमला, तुलसी एवं मालती पेडों का निर्माण किया
[पद्म. उ. १०५] ; जालंधर देखिये । उसी दिन से ये तीनों पेड़ पवित्र माने जाने लगे, एवं यह स्वयं ‘तुलसीवृंदा’ नाम से प्रसिद्ध हुई।