अंधक n. यह पार्वती के धर्मबिंदुओं से उत्पन्न हुआ । हिराण्याक्ष पुत्रप्राप्ति के लिये तपश्चर्या कर रहा था, उस समय शंकर ने उसे यह पुत्र दिया
[लिंग.१.९४] । हिरण्याक्ष तथा हिरण्यकश्यपु की मृत्यु के पश्चात् यह गद्दी पर आया । परंतु अनन्तर पार्वती को हरण कर ले जाने की योजना इसने घनघोर युद्ध हुआ । इस युद्ध में, इसके प्रत्येक रक्तबिंदु से इसी के समान व्यक्ति उत्पन्न हो कर, अंधको से संपूर्ण संसार व्याप्त हो गया । तब शंकर ने अंधकों के रक्त को प्राशन करने के लिये, मातृका उत्पन्न कीया तथा उन्हें अंधक का रक्त प्राशन करने के लिये कहा । वे रक्त पी कर तृप्त हो जाने के बाद पुनःरक्तबिंदुओ से अगणित अंधक उत्पन्न होने लगे । उन्होने शंकर का अजगव धनुष्य भी हरण कर लिया
[पद्म. सृ.४६] । अंत में शंकर त्रस्त हो कर विष्णु के पास गया । विष्णु ने शुष्करेवती उत्पन्न की, तथा उन्होने सब अंधकों का नाश कर दिया । शंकर ने मुख्य अंधक को सूली पर चढाया, उस समय अंधक ने उसकी स्तुति की । तब शंकर ने प्रसन्न हो कर इसे गणाधिपत्य दिया
[मत्स्य. १७९] । इसने पार्वती के लिये स्पष्ट मांग की, इसलिये शंकर का तथा इसका युद्ध हुआ । परंतु शुक्राचार्य संजीवनीविद्या से मृत असुरों को जीवित कर देते थे, इससे इसकी शक्ति कम न होती थी । तब शंकर ने शुक्राचार्य को निगल लिया तथा अंधक को गणाधिपत्य दे कर संतुष्ट किया
[शिव.रुद्र. यु४८] ;
[पद्म. सृ.४६.८१] । गणों का मुख्य स्थान इसे देने के पश्चात इसका नाम भृंगीरीटी रखा गया । इसके पुत्र का नाम आडि है । कश्यप को दिति से उत्पन्न पुत्र । यह अत्यंत पराक्रमी था । अपनी उग्र तपश्चर्या के बल पर सब देवताओं को जीतने के लिये, इसने शंकर से वरदान मांगा । परंतु विष्णु तथा शंकर के सिवा सबको जीतने का वरदान उन्होंने दिया । तदनन्तर यह ससैन्य अमरावती में प्रविष्ट हुआ तथा इन्द्र इसकी शरण में आया । इसके बाद इन्द्रकी उचैःश्रवस, उर्वशी आदि अप्सरायें तथा इन्द्राणी को ले कर जब यह लौट रहा था तब देवताओं ने इसके साथ युद्ध किया । परंतु उसमें उनका पराभव हुआ । तदनंतर अंधक पाताल में रहने लगा । अन्त में देवताओं के कहने से, विष्णु ने इसके साथ युद्ध किया । उसमें इसका पराभव होने के पश्चात् इसने विष्णु की स्तुति की, तथा शंकर से युद्ध करने की संधि प्राप्त होने के लिये वरदान मांगा । तब विष्णु ने इसे कैलाशपर्वत हिलाने को कहा । ऐसा उसने करते ही शंकर का तथा इसका युद्ध प्रारंभ जागृत होते ही पुनः युद्ध प्रारंभ हुआ । अंधक के प्रत्येक रक्तबिंदु से पुनः दैत्य उत्पन्न होने लगे । उस समय शंकर ने चामुंडा का स्मरण करने पर, उसने इसका समस्त रक्त प्राशन कर लिया । तब इसने शंकर की प्रार्थना की । शंकर ने शिवगणों में इसकी स्थापना कर, इसका भृंगीश नाम रखा
[स्कंद.५.३४५] । यह उज्जयिनी में राज्य करता था । इन्द्र के कथना नुसार शंकर ने इसके साथ युद्ध किया । उस में अपना पराभव हो रहा है, यह देखते ही इसने माया निर्माण कर, अंधकार उत्पन्न किया तथा देवताओं का हरण कर लिया । अंत में नरादित्य उत्पन्न हो कर, उसके द्वारा निर्मित प्रकाश की सहायता से, शंकर ने इसका वध किया । इसका पुत्र कनकदान
[स्कंद.५.२.३६] । महिषासुर की सेना एका प्रमुख असुर । देवों के साथ हुए महिषासुर संग्राम में, विष्णु के साथ इसका अविरत पचास वर्षो तक संग्राम चल रहा था । अन्त में विष्णु ने अपने गदा प्रहार से इसे मूर्च्छित कर दिया
[दे.भा.५.६] । यह आठवॉं सुप्रसिद्ध संग्राम है
[मत्स्य. ४७.४१-४४] । इस में शंकर ने असुरों को मारा
[वायु.९७८.८१-८४] ।
अंधक II. n. (सो. यदु.) सात्वत तथा कौसल्या का पुत्र
[ह. वं. १.३७.२] । अंधक तथा काश्यदुहिता को कुकुर, भजमान, शमि तथा कम्बलबर्हिष ऐसे चार पुत्र हुए
[ह. वं. १.३७.१७] । सात्वतपुत्र अंधक से अंधक वंश का प्रारंभ होता है । अंधकपुत्र महाभोज को दो पुत्र थे । प्रथम कुकुर तथा द्वितीय भजमान । यादवों में कुकुर वंश स्वतंत्र हैं । उस में उग्रसेन कंसादि हुए । अंधक वंश भजमान शाग्वा की उपाधि है । इसी अंधकवंश में भारतीय युद्ध का प्रसिद्ध वीर कृतवर्मा उत्पन्न हुआ
[भा.९.२४.७-२४] ;
[विष्णु.४.१४.३-७] । सान्वतपुत्र भज्मान का वंश उपलब्ध नही है । भजमान के पुत्र, अंधकपुत्र भजमान के वंश में सामील हुए ऐसा ह. वं. में लिखा है
[ह. वं. १.३८.७-९]