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निमि

   { nimiḥ, nimi }
Script: Devanagari

निमि     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
Son of Dattātreyamuni of the Atri family. [Anuśāsana Parva, Chapter 91, Verse 5] .
NIMI I   A famous emperor who was the son of Ikṣvāku.
1) Genealogy.
Descended from Viṣṇu thus: Brahmā-- Marīci--Kaśyapa--Vivasvān--Vaivasvata Manu-- Ikṣvāku--Nimi. Among the sons of Ikṣvāku, Daṇḍa, Vikukṣi and Nimi became famous.
2) Vasiṣṭha's curse.
Emperor Nimi was very generous with his gifts. He was interested in performing yajñas. The feeding hall that can be seen even today near the āśrama of Gautama Maharṣi was built by emperor Nimi. The emperor, a person of rājasic nature, decided to conduct a Yajña which would take a long time to end and which required much money for gifts; and he got his father Ikṣvāku's permission for it. Arrangements were made for the Yajña, and Ṛṣis like Bhṛgu, Aṅgiras Vāmadeva, Pulastya, Pulaha and Ṛcīka who were competent to perform yajña and great scholars in the Vedas were invited for the Yajña. Lastly he met his family preceptor Vasiṣṭha and told him thus: “Oh preceptor! I have made all arrangements for a Yajña, which it is my desire should last for five hundred years. You would also come with me and see that the Yajña is duly performed.” Vasiṣṭha listened to Nimi's request with great attention. But, he had already been invited by Indra to conduct a Yajña which would last for five hundred years, and he would be able to oblige Nimi only after that period of time. So Vasiṣṭha asked the emperor to postpone his proposed yajña by five hundred years. Nimi returned disappointed. Nimi had no patience to wait for five hundred years. So he started the yajña with Gautama as his preceptor. After Indra's Yajña for 500 years was over, Vasiṣṭha came to Nimi's Yajña hall. Nimi, at the time, was in the inner apartment of his palace. Though his servants went to him to tell him that his preceptor Vasiṣṭha had come, they waited outside his chamber as he was sleeping then. Within a few moments Vasiṣṭha was ablaze with anger. He raised his hands and cursed Nimi thus: “Oh! Nimi, you have insulted me, your preceptor. You disobeyed my injunction and began the Yajña. Therefore, let your body be parted from the soul and fall on the ground.” This curse of Vasiṣṭha alarmed the servants of Nimi so much that they roused him from sleep and told him all about the affair. Nimi hurried to Vasiṣṭha and prostrated at his feet. But, he did not shed his anger. This made Nimi also angry. He also raised up his hands and cursed Vasiṣṭha thus: “Oh muni! you who got angry without reason are worse than a Caṇḍāla. Therefore let your body also be parted from the soul and fall to the ground.” Vasiṣṭha got alarmed at the above curse. He ran up to and submitted his grievance to Brahmā, who told him thus:--“My son, your action was really fool-hardy. Yet, I shall advise you a way out of your troubles. You dissolve your-self in the effulgence of Mitra and Varuṇa and remain there permanently. After sometime you will be able to be born without being present in the womb of a woman. Then you will remember everything about your previous birth will acquire sense of righteousness and knowledge of the Vedas will become respected by all and will be omniscient. The soul of Vasiṣṭha parted from his body on account of the curse of Nimi, saluted Brahmā, went to the āśrama of Mitrāvaruṇas and got mixed with their effulgence. Meanwhile Urvaśī one day came to the āśrama of Mitrāvaruṇas, who had seminal emission at her sight. The semen fell into a pot. The pot duly burst open and there emerged from it Agastya and Vasiṣṭha. Nimi returned to the Yajña hall and told the munis about the curse on him of Vasiṣṭha. While the munis were helplessly looking on, Nimi's body got separated from the soul and fell down. The munis placed the dead body in an uncovered coffin, kept it free from putrefaction with the help of medicines and mantras and continued with the Yajña. At the close of the Yajña the Devas appeared and asked Nimi which did he prefer to have, a human body or body of a Deva. He preferred to have a Deva body, and accordingly ascended to Svarga along with the Devas. As Nimi had no sons to perform his obsequies the munis began churning the corpse repeating mantras and there arose from it an ideal person as glowing as Nimi. As he was created by ‘mathana’ (churning) the munis named him Mithi. Again, as he was created from a dead body he came to be known as Janaka also. Further, as he was born from the body from which the soul had departed he was called Videha also. The famous kingdom of Mithilā on the banks of the Gaṅgā was founded by this Janaka. Janaka, the father of Sītā, was a King born in this dynasty. To all the Kings born in this dynasty the surname ‘Janaka’ came to be applied. This dynasty is known as Janakavaṁśa and Videhavaṁśa after emperor Mithi. [Devī Bhāgavata, 6th Skandha] .
3) Other information.
(i) He worships Sūrya's son Yama in his court. [Sabhā Parva, Chapter 8, Verse 9] .
(ii) He gave gifts of land to brahmins. [Vana Parva, Chapter 234, Verse 26] .
(iii) He did not eat flesh. [Anuśāsana Parva, Chapter 115, Verse 65] .
NIMI III   Son of the King of Vidarbha. After giving his daughter in marriage to Agastya he attained heaven. [Anuśāsana Parva, Chapter 137, Verse 11] .

निमि     

हिन्दी (hindi) WN | Hindi  Hindi
noun  एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा   Ex. निमि का वर्णन पुराणों में मिलता है ।
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
Wordnet:
benনিমি
kasنِمی
kokनिमि
oriନିମି
panਨਿਮਿ
urdنِمی
noun  एक ऋषि जो दत्तात्रेय के पुत्र थे   Ex. निमि का वर्णन महाभारत में मिलता है ।
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
निमि ऋषि
Wordnet:
benনিমি
gujનિમિ
kasنِمی ریٚش
kokनिमी
marनिमि
oriନିମି
sanनिमिः
urdنِمِی , نِمِی رِشی

निमि     

निमि (विदेह) n.  अयोध्यापति इक्ष्वाकु राजा का बारहवॉं पुत्र, एवं ‘विदेह’ देश तथा राजवंश का पहला राजा [वा.रा.उ.५५] ;[म.स.८.९] । यह एवं इसका पुरोहित वसिष्ट के दरम्यान हुए झगडे में, इन दोनों ने परस्पर को विदेह (देहरहित) बनने का शाप दिया था । उस वेदहत्व की अवस्था के कारण, इसे एवं इसके राजवंश को ‘विदेह’ नाम प्राप्त हुआ [मत्स्य.६१.३२-३६] ;[पद्म. पा.२२,२४-३७] ;[वायु. ८९.४] । इसके नाम के लिये, ‘नेमि’ पाठभेद भी उपलब्ध है । इसका पिता इक्ष्वाकु मध्यदेह्स (आधुनिक उत्तर प्रदेश ) का राजा था । इक्ष्वाकु के पुत्रों में विकुक्षि शशाद एवं निमि, ये दो प्रमुख थे । उनमें से विकुक्षि इक्ष्वाकु के पश्चात् अयोध्या का राजा बना, एवं उसने सुविख्यात इक्ष्वाकुवंश की स्थापना की । निमि को विदेह का राज्य मिला, एवं इसने विदेह राजवंश की स्थापना की । गौतम ऋषि के आश्रम के पास, निमि ने इंद्र के अमरावती के समान सुंदर एवं समृद्ध नगरी की स्थापना की थी । उस नगरी का नाम ‘वैजंयत’ या ‘जयंत’ था । यह नगरी दक्षिण दंडकारण्य प्रदेश में थी, एवं रामायण काल में, वहॉं तिमिध्वज नामक राजा राज्य करता था [वा.रा.अयो.९.१२] । ‘जयंत’ नगरी निश्चितरुप में कहॉं बसी थी, यह कहना मुशिक्ल है । डॉ. भांडारकर के मत में, आधुनिक विजयदुर्ग ही प्राचीन जयंतनगरी होगी । श्री. नंदलाल दे के मत में आधुनिक वनवासी शहर की जगह जयंतनगरी बसी हुयी थी । निमि की राजधानी ‘मिथिला’ नामक नगरी में थी । उस नगरी का मिथिला नाम, इसके पुत्र ‘मिथि जनक’ के नाम से दिया गया था [वायु.८९.१-२] ;[ब्रह्मांड.३.६४.१-२] । एक बार, निमि ने सहस्त्र वर्षो तक चलनेवाले एक महान यज्ञ का आयोजन किया । उस यज्ञ का ‘होता’ (प्रमुख आचार्य) बनने के लिये इसने बडे सम्मान से अपने कुलगुरु वसिष्ठ को निमंत्रण दिया । उस समय वसिष्ठ और कोई यज्ञ में व्यस्त था । उसने इससे कहा, ‘पॉंचसों वर्षो तक चलनेवाले एक यज्ञ के कार्य में, मैं अभी व्यक्त हूँ । इसलिये वह यज्ञ समाप्त होने तक तुम ठहर जाओं । उस यज्ञ समाप्त होते ही, मैं तुम्हारे यज्ञ का ऋत्विज बन जाऊँगा । वसिष्ठ के इस कहने पर, निमि चुपचाप बैठ गया । उस मौनता से वसिष्ठ की कल्पना हुयी कि, यज्ञ पॉंचसौ वर्षो तक रुकाने की अपनी सूचना निमि ने मान्य की है । इस कारण, वह इंद्र का यज्ञ करने चला गया । इंद्र का यज्ञ समाप्त करने के बाद, वसिष्ठ निमि के घर वापस आया । वहॉं उसने देखा कि, राजा ने उसके कहने को न मान कर, पहले ही यज्ञ शुरु कर दिया है, एवं गौतम ऋषि को मुख्य ऋत्विज बनाया है । फिर क्रुद्ध हो कर वसिष्ठ ने पर्यक पर सोये हुये निमि को शाप दिया, ‘अपने देह से तुम्हारा वियोग हो कर, तुम विदेह बनोगे’। जागते ही इसे वसिष्ठ के शाप का वृत्तांत विदित हुआ । फिर निद्रित अवस्था में शाप देनेवाले दुष्ट वसिष्ठ गुरु से यह संतप्त हुआ, एवं इसने भी उसे वही शाप दिया [विष्णु.४.५.१-५] ;[भा.९.१३.१-६] ;[वा.रा.उ.५५-५७] । पद्म पुराण में ‘वसिष्ठशाप’ की यही कथा कुछ अलग ढंग से दी गयी है । अपने स्त्रियों के साथ, निमि द्यूत खेल रहा था । इतने में वसिष्ठ ऋषि यकायक वहॉं आ गया । द्यूत-क्रीडा में निमग्न रहने के कारण, निमि ने उसे उत्थापन आदि नही दिया । उस अपमान के कारण वसिष्ठ ने इसे ‘विदेह’ बनने का शाप दिया [पद्म.पा.५.२२] । वसिष्ठ के शाप के कारण, निमि का शरीर अचेतन हो कर गिर पडा, एवं इसके प्राण इधर-उधर भटकने लगे । इसका अचेतन शरीर सुगंधि तैलादि के उपयोग से स्वच्छ एवं ताजा रख दिया गया । निमि का यज्ञ समाप्त होने पर, यज्ञ के हविर्भाग को स्वीकार करने देवतागण उपस्थित हुये । फिर उन्होंने निमि से कुछ आशीर्वाद मॉंगने के लिये कहा । निमि ने कहा, ‘शरीर एवं प्राण के वियोग के समान दुःखदायी घटना दुनिया हर व्यक्ति की ऑंखो में मेरी स्थापना हो जाये, जिससे मानवी शरीर से मैं कभी भी जुदा न हो सकूँ’। निमि की इस प्रार्थना के अनुसार, देवों ने मानवी ऑखों में इसे जगह दिलवायी । ऑंखों में स्थित निमि के कारण, उस दिन से मानवों की ऑंखे झपाने लगी, एवं ऑंख झपाने की उस क्रिया को ‘निमिष’ कहने लगे [विष्णुधर्म.१.११७] । मत्स्य एवं पद्मपुराण के मत में, ‘विदेह अवस्था’ के शाप से मुक्ति पाने के लिये, निमि एवं वसिष्ठ ब्रह्माजी के पास गये । ब्रह्माजी ने वर प्रदान कर, निमि को मानवों के ऑंखों में रहने के लिये कहा, एवं वसिष्ठ को मित्र एवं वरुण के अंश से जन्म लेने के लिये कह दिया [मत्स्य.२०१.१७-२२] ;[पद्म. पा.२२.३७-४०] । मृत्यु के समय निमि निसंतान था; और भावी युवराज के न होने के कारण, अराजकता फैलने का धोखा था । निमि के अचेतन शरीर से पुत्र निर्माण करने के हेतु, उसे य्ञ की ‘अरुणी’ बनायी गयी । उस ‘अरणी’ का मंथन करने के एबाद, उससे एक तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ । वह ‘अरणी’ में मंथन से निकला, इसलिये उसे ‘मिथि’ कहने लगे [वायु.८०] । माता के बिना, केवल पिता से ही उसका जन्म हुआ, इस कारण उसे ‘जनक’ की उपाधि प्राप्त हुयी । ‘विदेह’ पिता का पुत्र होने के कारण, मिथि जनक को ‘वैदेह’ नामांतर भी प्राप्त [वा.रा.उ.५७] । मृत्यु के पश्चात् निमि यमसभा में प्रविष्ट हुआ, एवं सूर्यपुत्र यम की उपासना करने लगा [म.स.८.९]
निमि (विदेह) II. n.  विदर्भ देश का राजा । इसने अगस्त्य ऋषि को अपनी कन्या एवं राज्य अर्पित किया था । उस पुण्य के कारण, इसे स्वर्गलोक प्राप्त हुआ [म.अनु.१३७.११]
निमि (विदेह) III. n.  अत्रि कुल में उत्पन्न एक ऋषि । यह दत्त आत्रेय का पुत्र था [म.अनु.९१.५] । इसने श्रीमान् नामक अपने मृतपुत्र को पिंडदान किया, एवं इस तरह मृतों के लिये ‘श्राद्ध’ करने का संस्कार सर्व प्रथम आरंभ किया [म.अनु.९१.१४-१५] । इसके द्वारा स्मरण करने पर, इसके पितामह अत्रि ऋषि ने इसे दर्शन दिया था, एं इससे संभाषण किया था [म.अनु.९१.१८]
निमि (विदेह) IV. n.  एक यादव राज । विष्णु,वायु,एवं मत्स्यमत में, यह अंधक राजा का बंधु सात्वत भजमान का पुत्र था । भागवत में इसे ‘निम्लोचि’ कहा गया है [भा.९.२४.६-८]
निमि (विदेह) V. n.  (सो. कुरु.भविष्य) एक राजा । भागवतमत में यह दंडपाणि राजा का पुत्र था ।

निमि     

कोंकणी (Konkani) WN | Konkani  Konkani
noun  एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा   Ex. निमिचें वर्णन पुराणांत मेळटा
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
Wordnet:
benনিমি
hinनिमि
kasنِمی
oriନିମି
panਨਿਮਿ
urdنِمی

निमि     

मराठी (Marathi) WN | Marathi  Marathi
noun  एक ऋषी जे दत्तात्रेयचे पुत्र होते   Ex. निमि ह्यांचे वर्णन महाभारतात आढळते.
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
निमि ऋषी
Wordnet:
benনিমি
gujનિમિ
hinनिमि
kasنِمی ریٚش
kokनिमी
oriନିମି
sanनिमिः
urdنِمِی , نِمِی رِشی
noun  एक इक्ष्वाकुवंशीय राजा   Ex. निमिचे का वर्णन पुराणांत मिळते.
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
Wordnet:
benনিমি
hinनिमि
kasنِمی
kokनिमि
oriନିମି
panਨਿਮਿ
urdنِمی

निमि     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
निमि  m. 1.m.N. of sev. kings of विदेह, [Mn.] ; [MBh.] &c.
of a son of दत्तत्रेय, [MBh.]
नि-मिष   of a son of इक्ष्वाकु, [Pur.] (having lost his body through the curse of वसिष्ठ he occupied the eyes of all living beings, hence the opening and shutting of men's eyelids; cf. and See, [VP. iv, 5] )
ROOTS:
नि मिष
of 21st जैनअर्हत् of present अव-सर्पिणी (identified with the former निमि), [L.]
of a son of भजमान, [VP.]
of a son of दण्ड-पाणि, [BhP.]
डिम्भ   of a दानव, [Hariv.] (v.l.)
the closing or winking of the eyes, twinkling, [BhP. ix, 24, 64.]
N. of a तथागत, [Sukh. i] .
नि   2.-√ 1.मिP.-मिनोति (pf.-मिमा॑यPass.-मीयते), to fix or dig in, erect, raise, [RV.] ; [AV.] ; [Br.] &c.;
to perceive, notice, understand (?), [AV. iv, 16, 5. 2.]

निमि     

निमिः [nimiḥ]   1 Winking, twinkling (of the eyes).
 N. N. of one of the descendants of Ikṣvāku, and ancestor of the line of kings who ruled in Mithilā.

निमि     

Shabda-Sagara | Sanskrit  English
निमि  m.  (-मिः)
1. Twinkling.
2. A son of IKSHWAKU condemned to reside in the twinkle of the eye.

Related Words

निमि   निमि ऋषि   निमि ऋषी   ਨਿਮਿ   نِمی   নিমি   ନିମି   નિમિ   निमिः   نِمی ریٚش   निमी   उदारवसु , उदावसु   ऊर्जवह   सुतद्वाज   कृतिरथ   निम्लोचि   युयुध   ऋतुजित्   केशिध्वंज   स्वर्णरोमन्   सात्यरथि   उपगुप्त   ऊर्ध्वकेतु   कीर्तिरात   कृतिरात   मितघ्वज   प्रतित्वक   वप्रा   blink   कीर्तिरथ   कृतध्वज   हस्वरोमन्   बहुलाश्व   शाश्र्वत   सत्यध्वज   श्रीमत्   देवमीढ   उपगु   वाह्यका   सुभाषण   दैवराति   समरथ   मिथिल   नंदिवर्धन   नमी   प्रतिबंधक   wink   कुणि   शतद्युम्न   धर्मध्वज   विश्रुत   वसुमत्   twinkle   देवरात   instant   अनेनस्   सुनय   विबुध   प्रबुद्ध   हर्यश्र्व   भानुमत्   धृतिमत्   निमिष   नेमि   योनेश्वर   पुरुजित्   सत्यरथ   moment   सूर्यवंश   second   खांडिक्य   सीरध्वज   देवराज   minute   लोपामुद्रा   सुकेतु   सुधन्वन्   सुपार्श्व   मिथि   सत्यधृति   श्रुतायु   miss   कृति   विदेह   धृति   इंद्रद्युम्न   ऋत   कुशध्वज   सुश्रुत   मरु   श्रुत   जनक   अरिष्टनेमि   सुवर्चस्   धृष्टकेतु   वीतहव्य   वसिष्ठ   शुचि   सनत्कुमार   अगस्त्य   
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