उद्दालक n. एक आचार्य । आपोद धौम्य का शिष्य । एक समय इसे गुरु ने पानी (खेत का )रोकने के लिये कहा; पर इसे पानी को रोकते नहीं बन रहा था । तब इसने खुद ही नीचे सो कर पानी रोका । गुरु को खोज करते समय यह पता लगा । तब उन्होंने आरुणि पांचाल्य का नाम उद्दालक रखा
[म.आ.३.२०-२९] । इसे कुशिक की कन्या से श्वेतकेतु और नचिकेतस् दो पुत्र तथा सुजाता नामक पुत्री उत्पन्न हुई । सुजाता कहोल को व्याही गयी थी । इसका पुत्र अष्टावक्र था
[म. व.१३२] । एक निपुत्रिक ब्राह्मण ने इसकी स्त्री पुत्रोत्पादनार्थ मांगी । श्वेतकेतु को यह सहन न होने के कारण उसने नियम बनाया कि, स्त्री को केवल एक ही पति होना चाहिये
[म. आ.११३] । इस में सत्तासामान्य नामक दिव्यदृष्टि निर्माण हुई थी; इस कारण यह हमेशा समाधिसुख में रहता था । इसका शरीर सूर्य किरणों से शुष्क हो कर यह ब्रह्मरुप हुआ । इसका शव चामुंडा देवी ने खड्ग तथा खट्वांग में भूषण के समान धारण किया
[यो. वा.५.५१-५६] ; चंडी देखिये ।
उद्दालक (आरुणि) n. अध्यात्मविद्या का प्रसिद्ध आचार्य । यह अरुण औपवेशि गौतम पुत्र तथा शिष्य था
[बृ. उ.६.५.३] । इसका पुत्र श्वेतकेतु
[बृ. उ.६.२.१] ;
[छां. उ.६.१.१] । पतंचल काप्य इसका गुरु था । इसने याज्ञवल्क्य को अध्यात्म संबंधी कुछ प्रश्न पूछे । याज्ञवल्क्य ने जिनके उत्तर विस्तृत रुप से दे उसे चुप कर दिया
[बृ. उ.३.७] । एक याज्ञवल्क्य इसका शिष्य भी था
[बृ. उ.६.५.३] । इसकी ब्रह्मविद्या की परंपरा ब्रह्मा से है । इसे इसके पिता से ही ब्रह्मविद्या मिली थी
[छां. उ.३.११.४] । बडे बडे ज्ञानी लोग भी अध्यात्मविद्या संपादनार्थ इसके पास आते थे । इंद्रद्युम्न, सत्ययज्ञ, जन तथा बुडिल इसके पास अध्यात्मविद्या सीखने के लिये आये थे
[छां. उ. ५.११.१-२] । इसके कुल के मनुष्य विद्वान् थे ऐसी उस समय ख्याति थी । इसने श्वेतकेतु को सिखाया हुआ तत्त्वज्ञान प्रसिद्ध है
[छां. उ.६.१] ; श्वेतकेतु देखिये । इसका उल्लेख अन्यत्र भी आता है । राज्याभिषेक के समय कहे जाने वाले मंत्रों के संबंध में इसका मत सर्वमान्य है
[ऐ. ब्रा.८.७] ।