गृत्समद n. यह एक व्यक्ति का तथा कुल का भी नाम है । यह अंगिरस् कुल के शुनहोत्र का पुत्र हैं (सर्वानुक्रमणीं देखिये) यह बाद में भार्गव हो गया । गृत्समद शब्द की व्युत्पत्ति, ऐतरेय आरण्यक में आयी है । गृत्स का अर्थ है प्राण, तथा मद का अर्थ है अपान । इसमें प्राणापानों का समुच्चय था, इसलिये इसे गृत्समद कहते है
[ऐ.आ.२.२.१] । यह तथा इसके कुल के व्यक्ति, ऋग्वेद के दूसरे मंडल के द्रष्टाएँ हैं
[ऐ. ब्रा५.२.४] ;
[ऐ.आ.२.२.१] ; सर्वानुक्रमणी देखिये । एक बार तपप्रभाव से इसे इंद्र का स्वरुप हुआ । इस बारे में तीन आख्यायिकाएँ प्रसिद्ध है (१) धुनि अथा चुमुरि ने इसे इंद्र समझ कर घेर लिया । ‘मैं इंद्र नहीं हूँ’ यह बताने के लिये इसने इंद्र का उत्कृष्ट वर्णन करनेवाला ‘स जनास इंद्रः’
[ऋ.२.१२] ।, अह टॆकयुक्त सूक्त कहना प्रारंभ किया। (२) इंद्रादिक देवता वैन्य के यज्ञ में गये । वहॉं गृत्समद भी था । दैत्य इंद्र का वध करने के हेतु से वहॉं आये । इंद्र गृत्समद का रुप ले कर भाग गया । असुरों ने गृत्समद को घेरा । उस समय एक सूत से इसने इंद्र का उत्कृष्ट वर्णन किया
[ऋ. २. १२] (३) गृत्समद के घर में अकेले आये इंद्र को देख कर शत्रुओं ने घेरा । तब इंद्र गृत्समद का रुप ले कर भाग गया । घर के गृत्समद को उन्हों ने इंद्र समझ कर पकड लिया । तब इसने यह सूक्त कह कर इंद्र का वर्णन किया
[ऋ. २.१२] । ऋग्वेद के दूसरे मंडल में गृत्समद का बार बार उल्लेख आता है
[ऋ. २.४.९, १९.८ इ.] । इसे शुनहोत्र भी कहा है
[ऋ. २.१८.६, ४१.१४, १७] । ऋग्वेद के दूसरे मंडल की ऋचाओं का उल्लेख गार्त्समद ऋचा के नाम से प्राप्य है
[सां. आ. २२.४,२८.२] । यह भृगुकुल का गोत्रकार, प्रवर तथा मंत्रकार है । गृत्समद भार्गव शौनक ऋग्वेद का सूक्तद्रष्टा है
[ऋ. २.१-३, ८-४३, ९.८६, ४६-४८] । एक बार चाक्षुष मनु का पुत्र वरिष्ठ इंद्र के सहस्त्रवार्षिक सत्र में आया । साम अशुद्ध गाने के लिये इसे दोष दे कर, रुक्ष अरण्य में क्रूर पशु बनने का शाप वरिष्ठ नें इसे दिया । परंतु शंकर की कृपा से यह मुक्त हुआ
[म.अनु. १८.२०-२८] । गृत्तमद का भृगुवंश में उल्लेख है
[मत्स्य. १९५.४४-४५] गृत्समद का पैतृक नाम शौनक है । यह शुनहोत्र का औरस पुत्र तथा शुनक का पुत्र था । अतः प्रथम यह आंगिरस् कुल में था, एवं बाद में भृगुकुल में गया
[ऋ.ष्यनुक्रमणी२] ।
गृत्समद II. n. एक ऋषि । भृगु के कहने पर ब्राह्मण बने वीतहव्य का पुत्र । इसका पुत्र सुचेतस ।
गृत्समद III. n. दंडकारण्य में रहनेवाला एक ऋषि । इसके सौ पुत्र थे
[अ.रा.८] ।
गृत्समद IV. n. (सौ. क्षत्र.) वायु तथा विष्णु मतानुसार सुनहोत्रसुत्र । आयुकुल के सुहोत्र वा सुतहोत्र राजा के तीन पुत्रों में कनिष्ठ । इसे शुनक नामक पुत्र था
[ब्रह्मांड. ११.३२.३४] ;
[ह. वं. १.२९.६७] ।
गृत्समद V. n. भीष्म शरपंजर में पडे थे, तब उनके पास आया हुआ एक ऋषि
[भा. १.९.७] ।
गृत्समद VI. n. इंद्र का मुकुंदा से उत्पन्न पुत्र । एक बार रुक्मांगद बाहर गया था, तब उसकी पत्नी मुकुंदा काममोहित हुई । इंद्र ने रुक्तमांगद का रुप ले उससे संभोग किया । उसे गर्भ रहा था पुत्र उत्पन्न हुआ । यही गृत्समद था । आगे चल कर, यह बडा विद्वान हुआ । यह वादविवाद में किसी से पराजित नहीं होता था । एक बार मगध देश के राजा के घर, वसिष्ठादि मुनि श्राद्ध के लिये एकत्रित हुए । तब अत्रि ने तुम पंक्तिपावन नहीं हो, कह कर इसका उपहास किया । माता के पास आकर, इसने पूछताछ की । तब मुकुंदा ने इसका जन्मवृत्त का इसे कथन किया । इसने मुकुंदा को शाप दिया ‘तुम कंटकवृक्ष बनोगी’ । उसने भी उलट शाप दिया ‘तुम्हें दैत्य पुत्र होगा’ बाद में ‘गणानां त्वा’ मंत्र का अनुष्ठान कर के, इसने गणपति को प्रसन्न कर ब्राह्मण्य भी प्राप्त किया
[गणेश. १.३७] ।