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देवापि

   { devāpi }
Script: Devanagari

देवापि     

Puranic Encyclopaedia  | English  English
A warrior who fought on the Pāṇḍava side in the great war. He hailed from Cedi. Karṇa killed him. [Karṇa Parva, Chapter 56, Verse 48] .
DEVĀPI I   A king born in the lunar dynasty. Genealogy. Descended from Viṣṇu thus:--Atri--Candra-- Budha--Purūravas--Āyus--Nahuṣa--Yayāti--Pūru-- Janame jaya--Prācinvān--Pravīra--Namasyu-- Vītabhaya--Śuṇḍu--Bahuvidha--Saṁyāti-- Rahovādi-- Raudrāśva--Matināra-- Santurodha-- Duṣyanta-- Bharata--Suhotra--Suhotā--Gala--Garda--Suketu-- Bṛhatkṣetra--Hasti--Ajamīḍha--Ṛkṣa--Saṁvaraṇa-- Kuru--Jahnu--Suratha-- Viḍūratha--Śārvabhauma--Jayatsena--Avyaya-- Bhāvuka--Cakroddhata-- Devātithi--Ṛkṣa--Bhīma--Pratīca--Pratīpa--Devāpi. Pratīpa had three sons named Devāpi, Śantanu and Bālhīka. Śantanu succeeded Pratīpa as king as his elder brother had taken to sannyāsa as a boy. [Ādi Parva, Chapter 94, Verse 61] .
2) Devāpi resorted to the forest.
Devāpi was the best loved by his father and was the apple of the eyes of his subjects. But he was suffering from skin disease. So, when Pratīpa wanted to crown him king the people objected. Their argument was that God would not be pleased if a man with skin disease became king. The king yielded to their wishes and crowned Śantanu as his successor. The youngest brother Bālhīka went and stayed in his mother's house. Devāpi who was disappoint ed that he was denied the crown, left for the forest and spent the rest of his life in penance. [Udyoga Parva, Chapter 149] . His end. Devāpi did tapas at the Pṛthūdaka tīrtha in the interior of Kurukṣetra and ultimately attained salvation. [Śalya Parva, Chapter 39, Verse 37] .

देवापि     

हिन्दी (hindi) WN | Hindi  Hindi
noun  एक पौराणिक ऋषि   Ex. देवापि का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है ।
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
देवापि ऋषि
Wordnet:
benদেবাপি ঋষি
gujદેવાપિ
kasدیواپہِ
kokदेवापी
marदेवापि
oriଦେବାପି ଋଷି
panਦੇਵਾਪਿ
sanदेवापिः

देवापि     

देवापि (आर्ष्टिषेण) n.  (सो. कुरु.) कुरुवंश का एक राजा एवं सूक्तद्रष्टा [ऋ.१०.९८] । इसके सूक्त में शंतनु राजा का उल्लेख भी प्राप्त है । शंतनु तथा यह दोनों कुरुवंश का राजा प्रतीप एवं सुनंदा के पुत्र थे । उनमें से यह ज्येष्ठ तथा शंतनु कनिष्ठ बंधु था । फिर भी शंतनु गद्दी पर बैठा । इसी कारण राज्य में १२ वर्षो तक अवर्षण हुआ । ब्राह्मणों ने उससे कहा, ‘तुम छोटे भाई हो कर गद्दी पर बैठे हो, इस कारण भगवान् वृष्टि नहीं करते है’। शंतनु ने देवापि को राजसिंहासन पर बैठने के लिये बुलवाया । परंतु देवापि ने उसे कहा, ‘तुम्हारा पुरोहित बन कर मैं यज्ञ करता हूँ, तब वर्षा होगी ।’ तब इसने ऋग्वेद में इसके नाम से प्रसिद्ध सूक्त का उद्‌घोष किया [नि.२.११] । त्वचारोग होने के कारण, इसने राज्य अस्वीकार कर दिया तथा यह तपस्या करने अरण्य गया । सौ वर्षे का अवर्षण होने के कारण, शंतनु की प्रार्थना से इसने यज्ञ किया [बृहद्दे. ७.१४-८.७] । इससे प्रतीत होता है, क्षत्रिय हो कर भी, इसने ब्राह्मणवर्ण स्वीकार कर पौरोहित्य किया । पृथूदक नामक तीर्थ पर तपस्या कर के, इसने यह ब्राह्मणत्व प्राप्त किया था [म.श.२३९.१०] । ‘बृहस्पति की स्तुति कर, इसने वर्षा करवाई । अपने सूक्त में इसने स्वयं को ‘औलान’ कहलाया है [ऋ. १०. ९८.११] । पुराण में कुछ भेद से यही जानकारी उपलब्ध है । महाभारत में इसे प्रतीप एवं शैब्या-स्त्री सुनंदी का पुत्र बताया गया है [म.आ.९०.४६] । भागवत, मत्स्य, वायु एवं विष्णुमत में यह प्रतीपपुत्र होने के बारे में मतभेद नहीं है । इसे शंतनु तथा वाह्रिक नामक दो भाई थे । बचपन में ही इसने विरक्ति स्वीकार की [म.आ.८९.५२, ९०.४६] ;[ह.वं.१.३२.१०६] । धर्मज्ञान की इच्छा से विरक्त हो कर, यह वन में गया । बाद में यह देवों का उपाध्याय बना । इसे च्यवन तथा इष्टक नामक दो पुत्र थे [वायु. ९९.२३२] ;[ब्रह्म.१३. ११७] । कुष्ठरोग से पीडित होने के कारण, लोगों ने इसे राजा बनाना अमान्य किया था [मत्स्य.५०.३९] । भागवत में उपरोक्त सारी कथा दे कर, उसमें और कुछ जानकारी भी दी गयी है । शंतनु ने देवापि को राज्य का स्वीकार करने की प्रार्थना की । शंतनु के प्रधानों ने कुछ बुद्धिमान् ब्राह्मणों को भेज कर इसकी मति पाखंड मतों की ओर प्रवृत्त की । अंत में शंतनु के पास आ कर यह वेदमार्ग की निंदा करने लगा । इससे यह पतित सिद्ध हो कर, राज्य के लिये अयोग्य बना, तथा शंतनु का दोष नष्ट हो गया [विष्णु.४.२०.७] । बाद में यह कलापिग्राम में रहने लगा । कलियुग में सोमवंश नष्ट होने के बाद, कृतयुगारंभ में इसने पुनः एक बार, सोमवंश की स्थापना की [भा.९.२२] । कलियुग में वर्णाश्रमधर्म नष्ट होने के बाद, नये कृतयुग के आरंभ में, वर्णाश्रमधर्म की स्थापना इसीके हाथों से होनेवाली है [भा.१२.२] ;[विष्णु. ४. २०.७,९] ; सुवर्चस् देखिये ।
देवापि (आर्ष्टिषेण) II. n.  चेदि देश का एक क्षत्रिय । कर्ण ने इसका वध किया [म.क.४०.५०]
देवापि (आर्ष्टिषेण) III. n.  आर्ष्टिषेण राजा के उपमन्यु नामक पुरोहित का पुत्र (मिथु देखिये) ।

देवापि     

मराठी (Marathi) WN | Marathi  Marathi
noun  एक पौराणिक ऋषी   Ex. देवापिचे वर्णन ऋग्वेदात आढळते.
ONTOLOGY:
पौराणिक जीव (Mythological Character)जन्तु (Fauna)सजीव (Animate)संज्ञा (Noun)
SYNONYM:
देवापि ऋषी देवापी देवापी ऋषी
Wordnet:
benদেবাপি ঋষি
gujદેવાપિ
hinदेवापि
kasدیواپہِ
kokदेवापी
oriଦେବାପି ଋଷି
panਦੇਵਾਪਿ
sanदेवापिः

देवापि     

A Sanskrit English Dictionary | Sanskrit  English
देवापि  m. m. ‘friend of the ’, N. of a ऋषि who was son of ऋष्टि-षेण, [RV. x] (according to a later legend he is a son of king प्रतिप, resigns his kingdom, retires to the woods and is supposed to be still alive, [MBh.] ; [Pur. &c.] )

देवापि     

Shabda-Sagara | Sanskrit  English
देवापि  m.  (-पिः) The son of PRATĪPA, supposed to be still alive, near the Sumeru mountain.

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